Ajmer : दरगाह दीवान को सालाना सवा दो करोड़ रुपए नजराने के दिए जाने पर अब कानूनी राय ली जाएगी।

Ajmer : दरगाह दीवान को सालाना सवा दो करोड़ रुपए नजराने के दिए जाने पर अब कानूनी राय ली जाएगी।

ख्वाजा साहब की दरगाह के चढ़ावे पर फिर विवाद।

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अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में आने वाले चढ़ावे की राशि को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। दरगाह के खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन को नजराने के रूप में प्रतिवर्ष जो सवा दो करोड़ रुपए की राशि दी जा रही है उस पर कुछ खादिमों ने कानूनी आपत्तियां दर्ज करवाई है। इन आपत्तियों को देखते हुए ही अंजुमन की एक बैठक बुलाई जा रही है। इस बैठक में दरगाह दीवान को दी जाने वाले नजराने की राशि पर निर्णय लिया जाएगा। कानून विशेषज्ञों की राय लेकर नजराना राशि रोकने पर निर्णय होगा। चिश्ती ने बताया कि आगामी 12 अगस्त को दीवान को सवा दो करोड़ रुपए की राशि दी जानी है। इस तिथि से पहले पहले निर्णय ले लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि उनकी जानकारी के अनुसार दरगाह दीवान ने दरगाह में अपने पद को लेकर न्यायालय की शरण ली थी। लेकिन यह कानूनी विवाद दरगाह में आने वाले चढ़ावे तक पहुंच गया। इस मामले में अंजुमन के पूर्व पदाधिकारियों की क्या भूमिका रही इस संबंध में भी खादिम समुदाय के समक्ष तथ्य रखे जाएंगे। उन्होंने कहा कि खादिम समुदाय जो निर्णय करेगा वही अंतिम होगा।
नजराना रोकने की मांग:
दरगाह के खादिम और सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार पीर नफीस मियां चिश्ती ने अंजुमन के सचिव को एक पत्र लिखकर दरगाह दीवान को दी जाने वाली नजराने की राशि रोकने की मांग की है। सचिव को लिखे पत्र में बताया गया है कि वर्ष 1933 में तत्कालीन दीवान आले रसूल की डिग्री और मौजूदा दीवान जैनुअल आबादी के न्यायालय में प्रस्तुत प्रार्थना पत्र के प्रकरण में वे स्वयं पक्षकार है। 13 नवंबर, 2013 को राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप दरगाह कमेटी (केंद्र सरकार द्वारा संचालित) को रिसीवर नियुक्त किया था। इस आदेश के अनुरूप ही दरगाह परिसर में पीले रंग की पेटियां लगाई गई। ताकि आने वाले जायरीन नजराना राशि डाल सके। पत्र में बताया गया कि दरगाह दीवान और खादिमों की संस्था अंजुमन की ओर से जो समझौता न्यायालय में प्रस्तुत किया गया, उसे आज तक भी न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया है। समझौता किन बिंदुओं पर हुआ इसकी जानकारी पक्षकार होते हुए भी मुझे नहीं दी गई है। दरगाह दीवान को मौजूदा समय में जो सवा दो करोड़ रुपए की राशि प्रतिवर्ष दी जा रही है, उसका आदेश किसी भी न्यायालय ने नहीं दिया है। जब राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश से दरगाह परिसर में पेटियां लगाकर चढ़ावे को एकत्रित किया जा रहा है, तब दीवान को एकमुश्त प्रतिवर्ष सवा दो करोड़ रुपए की राशि देना सही नहीं है। पीर नफीस मियां चिश्ती ने कहा कि दरगाह दीवान को दी जाने वाली राशि खादिम समुदाय की है। यदि न्यायालय ने दरगाह दीवान मुकदमा हार जाते हैं, तब इतनी बड़ी राशि की रिकवरी कैसे होगी। पत्र में भविष्य में दरगाह दीवान को नजराना राशि न दिए जाने की मांग की गई है। इस संबंध में जब दरगाह दीवान के प्रतिनिधि और उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती से पक्ष रखने का आग्रह किया गया तो उन्होंने कहा कि यह कानूनी मामला है, इसलिए मैं अभी कुछ भी नहीं कह सकता हंू।