रेप और मर्डर के आरोपी को चार माह में फांसी की सजा दिलवाने के प्रयासों का श्रेय अजमेर के पूर्व पुलिस अधीक्षक जगदीश शर्मा को भी मिलना चाहिए।

रेप और मर्डर के आरोपी को चार माह में फांसी की सजा दिलवाने के प्रयासों का श्रेय अजमेर के पूर्व पुलिस अधीक्षक जगदीश शर्मा को भी मिलना चाहिए।
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26 अक्टूबर को अजमेर की पॉक्सो कोर्ट के न्यायाधीश रतनलाल मूड ने 11 वर्षीय बालिका के साथ रेप और फिर पत्थर मार कर निर्मम हत्या करने के आरोपी सत्तू उर्फ सुरेंद्र को फांसी की सजा सुनाई है। पुलिस ने सुरेंद्र के विरोध 22 जून को हत्या और रेप का मुकदमा दर्ज किया था। यानी चार माह की अवधि में कोर्ट में चालान पेश करने से लेकर आरोपों के निर्धारण, गवाहों के बयान आदि सभी वैधानिक कार्य पूरे हो गए। कोर्ट में आरोपी को सजा दिलवाने में पुलिस की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आईपीएस जगदीश शर्मा 13 अक्टूबर तक अजमेर के पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात रहे। यानी आरोपी सुरेंद्र को फांसी की सजा दिलाने की अधिकांश वैधानिक कार्यवाही जगदीश शर्मा के कार्यकाल में हुई। अजमेर के लोगों को पता है कि 22 जून को जब पुष्कर के निकट होकर की पहाड़ी पर 11 वर्षीय बालिका का कुचला हुआ शव मिला था, तब माहौल तनावपूर्ण था। उस समय राजेश मीणा पुष्कर के थाना अधिकारी थे। एसपी शर्मा के निर्देश पर टीम गठित कर आरोपी को दूसरे दिन ही गिरफ्तार कर लिया गया। मात्र तीन दिन की अवधि में 25 जून को आरोपी के विरुद्ध अदालत में चालान भी पेश कर दिया। पुलिस की तत्परता से ही न्यायाधीश रतनलाल मूड को कोर्ट की कार्यवाही जल्द पूर्ण करने में मदद मिली। आमतौर पर पुलिस पर अदालतों में ढिलाई बरतने का आरोप लगता रहा है। लेकिन इस मामले में एसपी शर्मा ने संवेदनशीलता दिखाते हुए अदालत को भी पूरा सहयोग करवाया। इसलिए अब जब हत्यारे को फांसी की सजा मिली है, तब एसपी शर्मा के प्रयासों की सराहना भी की जानी चाहिए। यदि पुलिस अधीक्षक के स्तर पर गंभीरता और तत्परता नहीं दिखाई जाती तो चार माह में हत्यारे को फांसी की सजा नहीं मिल पाती। जहां तक न्यायाधीश मूड का सवाल है तो उन्होंने समाज के सामने एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है। ऐसे सख्त फैसलों से अपराधों पर अंकुश लगेगा। हत्यारे सुरेंद्र ने वाकई घिनौना काम किया था। 11 वर्षीय बालिका के साथ बलात्कार करने और फिर हत्या करने का अपराध वाकई बहुत गंभीर है। समाज में ऐसी प्रवृत्तियों पर रोक लगनी चाहिए।