पाले एवं शीत लहर से करें फसलों का बचाव
सवाईमाधोपुर, 22 दिसम्बर। जिले में तापमान गिरना शुरू हो गया है। जल्द ही पाले का प्रकोप सामने आ सकता है। सर्दी के मौसम में जिस रोज दोपहर से पहले ठण्डी हवा चलती है एवं हवा का तापमान जमाव बिन्दु से नीचे गिर जाए तथा दोपहर बाद अचानक हवा चलना बंद हो जाए एवं आसमान साफ रहे या आधी रात के बाद से ही हवा रूक जाए तो पाला पडने की संभावना रहती है। साधारणतया तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाये, यदि शीतलहर हवा के रूप में चलती रहे तो कोई नुकसान नहीं होता है, परन्तु यदि इसी बीच हवा चलना रूक जाये तथा आसमान साफ हो तो पाला पड़ता है जो कि फसलों के लिये नुकसानदायक है।
पाले से बचाव के लिये कृषि विभाग के सहायक निदेशक (विस्तार) सी.पी. बडाया ने एडवाइजरी जारी की है। इसके अनुसार सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों/नगदी फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिये फसलों को टाट, पॉलिथिन अथवा भूसे से ढक दें। वायुरोधी टाटियाँ, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर-पश्चिम की तरफ बांधे। नर्सरी, किचन गार्डन एवं कीमती फसल वाले खेतों में उत्तर-पश्चिम की तरफ बांधकर क्यारियों के किनारे पर लगायें तथा दिन में पुनः हटायें।
जब पाला पड़ने की सम्भावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिये। नमी युक्त जमीन में काफी देर तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है। जिस दिन पाला पड़ने की सम्भावना हो, फसल पर 2 ग्राम गंधक प्रति लीटर पानी का घोल छिड़कें। एक छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर एवं पाले की संभावना बनी रहे तो छिडकाव को 15-15 दिन के अन्तर से दोहराते रहे या थायो यूरिया 500 की आधा ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी वाले घोल का छिडकाव करें।
सरसों, गेहूँ, चना, मटर, सब्जियों जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक का छिडकाव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौह तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ जाती है, जो पौधों में रोग प्रतिरोधकता बढाने एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है।
फसलों को बचाने के लिए दीर्घकालीन उपाय के रूप में खेत की उŸारी-पश्चिमी मेढों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजडी, जामुन आदि लगा दिये जायें तो पाले और ठण्डी हवा के झौंकों से फसल का बचाव हो जावेगा।
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