श्रीकृष्ण सुदामा की मित्रता का प्रसंग सुन भाव विभोर हुए श्रोता-बड़ी उदेई

श्रीकृष्ण सुदामा की मित्रता का प्रसंग सुन भाव विभोर हुए श्रोता-

-कथावाचक कमलकिशोर शास्त्री ने कहा- जिसके पास प्रेम हैं, वह निर्धन नहीं होता-गंगापुर सिटी
गांव बड़ी उदेई में मुनीम परिवार वालों के देव स्थान पर चल रही संगीतमय भागवतकथा में अंतिम दिन बुधवार को कथा श्रवण करने के लिए काफी संख्या में धर्मप्रेमी महिला-पुरुष उपस्थित हुए। आचार्य कमलकिशोर शास्त्री की ओर से यदुवंश वर्णन द्वारका चरित्र एवं सुखदेव विदाई कथा का वर्णन किया
उन्होंने कहा कि जब जब संसार में धर्म की हानि और अधर्म का प्रभाव बढ़ने लगा है तब तब भगवान ने धरती पर अवतार लेकर पापियों का नाश किया है भगवान ने कहा कि पापियों का नाश करने के लिए  महाभारत में उनको अर्जुन का सारथी बनना पड़ा आचार्य सुखदेव जी कहते हैं कि अर्जुन भगवान शिव के अवतार थे इसलिए श्री कृष्ण महाभारत मैं उनके सारथी बने भगवान ने कहा कि उनके 4 पदों में से अब कलयुग में मात्र 1 पद दान का शेष बचा है आचार्य सुखदेव कहते हैं कि कलयुग में भगवान के एक दान के पद को ग्रहण कर व्यक्ति संसार सागर बाली सारणी नदी से पार हो सकता है लेकिन दान के लिए भी चार बातें कही गई प्रथम बात दान करने में व्यक्ति को देर नहीं करनी चाहिए जैसा कि कहा गया है तुरंत दान महा कल्याण इसी प्रकार दूसरी बात दान करते समय अहंकार नहीं करना चाहिए तीसरी बात दान का प्रचार नहीं करना चाहिए कथा में आचार्य कमल किशोर ने द्रोपदी के पांच पति होने का वर्णन किया उन्होंने कहा कि अर्जुन शंभर में विजयश्री प्राप्त करने के बाद जब द्रोपती को लेकर अपने घर पहुंचा तो उसने बाहर से ही माता कुंती को आवाज दी के माता बाहर आकर देखिए में क्या वस्तु लाया हूं इस पर माता कुंती ने कहा कि पांचों भाई बांट लो आपस में इस प्रकार माता का आदेश पालन करने के लिए द्रोपती को पांच पतियों की पत्नी बनना पड़ा इसके बाद भागवताचार्य कमल किशोर शास्त्री कारवार हिंडौन वालों ने<स्रद्ब1>श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता का प्रसंग सुनाया गया। इसे सुन भक्त भावविभोर हो गए। इस दौरान श्रीकृष्ण-सुदामा व बाल सखाओं की झांकी पेश की गई। जिसने लोगों का मन मोह लिया। कथा में फूलों की होली भी खेली गई। भजनों पर भक्त नृत्य करने को विवश हो गए। अंतिम दिन भी कथा सुनने को बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी।<स्रद्ब1>आयोजक संतोष गर्ग व सीताराम गर्ग ने बताया कि कथा का समापन गुरुवार को हवन में आहुति के साथ होगा। इसके बाद प्रसादी का वितरण किया जाएगा। कथा में प्रवचन देते हुए आचार्य कमलकिशोर शास्त्री ने कहा कि श्रीकृष्ण और सुदामा में बड़ी गहरी मित्रता थी। एक समय दोनों मित्र जंगल में लकड़ी बीनने गए थे। सुदामा के पास कुछ चने थे। बरसात होने से दोनों मित्र जंगल में फंस गए। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण पेड़ पर चढ़ गए तभी सुदामा ने अपनी पोटली से चने निकालकर खाना शुरू कर दिया। श्रीकृष्ण के पूछने पर सुदामा ने कुछ न खाने से मना कर दिया।
उन्होंने बताया कि जब सुदामा काफी गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहे थे तब उनकी पत्नी ने उनसे श्रीकृष्ण के पास जाने को कहा। सुदामा जैसे ही श्रीकृष्ण से मिलने जाते हैं तो महल के बाहर दरबारी उन्हें रोक देते हैं। सुदामा के आने की सूचना पर श्रीकृष्ण नंगे पैर ही उनके पास दौड़कर आते हैं और गले लगा लेते हैं। बाद में उनके लाए चावल खाकर सुदामा को वह राजा बना देते हैं। कथावाचक ने श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता का विस्तार से भक्तों को रसपान कराया। कथा को सुन भक्त भावविभोर हो गए। इस दौरान झांकियां पेश की गईं। भगवान श्रीकृष्ण और राधा की झांकी ने तो भक्तों का मन मोह लिया। कथा के समापन पर फूलों की होली भी खेली गई। भजनों पर भक्तों ने नृत्य भी किया। कथा की व्यवस्थाओं में श्रीराम गर्ग, जीतेन्द्र गर्ग, दिनेश गर्ग, लोकेश कुमार, आशीष गर्ग, विकास गर्ग, प्रियांशु, वंश, यश आदि का सहयोग रहा।