अमरूद-बगीचों में कैनॉपी (छत्र) प्रबंधन है जरूरी कृषि अधिकारियों ने कटाई-छंटाई का तरीका बताया

अमरूद-बगीचों में कैनॉपी (छत्र) प्रबंधन है जरूरी
कृषि अधिकारियों ने कटाई-छंटाई का तरीका बताया
सवाई माधोपुर यदि अमरूद एवं अन्य फलदार पौधों को बिना कटाई-छंटाई के यूं ही छोड़ दिया जाये तो वह कुछ वर्षो के बाद बहुत बड़े हो जाते हैं, जिनका प्रबंधन करना काफी मुश्किल होता है। इस तरह से पौधों का फलन भी घट जाता है और अंदर के हिस्से में फल नहीं लगते।
कृषि अधिकारी खेमराज मीना, सहायक कृषि अधिकारी चैथमल मीना एवं करमोदा के कृषि पर्यवेक्षक विजय जैन ने किसानों को सलाह दी है कि नये पौधरोपण के तीन माह बाद जमीन से 30 से.मी. की ऊंचाई पर पौधे को काट दें ताकि कटे हुए स्थान से नई वृद्धि उत्पन्न हो सके। तीन-चार समान दूरी वाले प्ररोहों को तने के चारों ओर छोड़ दिया जाता है, जिससे पौधे की मुख्य संरचनात्मक शाखा का निर्माण हो सके। कटाई के बाद इन प्ररोहों को 4-5 महीने तक बढ़ने दिया जाता है, जब तक की ये 30-40 से.मी. के नहीं हो जाते। इन चुनिंदा प्ररोहों को इनकी लम्बाई के 50 प्रतिशत तक काटा जाता है, जिससे कटे हिस्से से कल्लों का पुनः सृजन हो सके। नये सृजित कल्लों को 30-40 से.मी.लम्बाई तक बढ़ने देने के 4-5 माह बाद उनकी पुनः कटाई-छंटाई की जाती है, इससे पौधों के वांछित आकार मिलने के साथ ही छत्र प्रबंधन हो जाता है।
कृषि अधिकारियों ने बताया कि छत्र प्रबंधन के लिए कटाई-छंटाई का कार्य दूसरे भी किया जाता है, दो वर्षों के बाद कैनॉपी (छत्र) की परिधि के भीतर वाली छोटी शाखायें सघन तथा सशक्त ढांचे का निर्माण करती है। सही तरीके से छंटाई द्वारा तैयार किये गये पौधे का व्यास 2-3 मीटर तथा ऊंचाई 3 मीटर तक सीमित रखने हेतु प्रत्येक वर्ष फरवरी – मार्च माह एवं मई – जून में कल्लों की कटाई की जाती है।
कृषि विस्तार प्रबंधक एवं फैसिलिटेटर विजय जैन ने किसानों को भ्रमण के दौरान बताया कि 3 वर्ष से अधिक आयु के बगीचों में गुणवत्तायुक्त फलोत्पादन एवं बेहतर कैनॉपी देने के लिये पौधों की फलन उतार के बाद मार्च माह के अंत तक कटाई-छंटाई करना जरूरी है, जिससे शीत ऋतु में आने वाली मृग बहार फूल जुलाई – अगस्त से तथा फलों का उत्पादन नवंबर – दिसंबर से शुरू हो सके, जिससे अधिकतम उपज ली जा सकें। कटाई-छंटाई करते समय पौधे की रोगग्रस्त एवं अवांच्छित शाखाओं को हटाना बहुत जरूरी है। इसके बाद बगीचों में गुड़ाई करके छोड़ दें और तर्पण काल में यानि जून महीने से पहले सिंचाई नहीं करें। यदि खेत में नमी बनी रहेगी तो अंबे बहार आने से बरसात में ही फलों का उत्पादन शुरू हो जाएगा और शीत ऋतु में फल – फूल बहुत कम लगेंगे।