महाराजा भीम सिंह – एक महान राजा जिसे अपने ही लोगो ने भुला दिया-चौथ का बरवाड़ा

महाराजा भीम सिंह – एक महान राजा जिसे अपने ही लोगो ने भुला दिया
चौथ का बरवाड़ा आजादी के बाद राजतंत्रात्मक व्यवस्था समाप्त कर लोकतंत्र अपनाया गया, सत्ता की बागडोर राजे रजवाड़ो के हाथ से सीधी जनता के हाथ में आगयी। जनता अब खुद अपनी सरकारे चुन ने लगी, लेकिंन जनता ने उसके बाद भी वे राजा महाराजा जिन्होंने अपने शासन काल में अपनी प्रजा के हितार्थ अच्छे काम किए, उनके कृतित्व को, उनके व्यक्तित्व को हमेशा सम्मान दिया। लोगो ने, लोकतान्त्रिक सरकारों ने इन राजाओँ के नाम बडे बड़े स्मारक बनाये, बड़े बड़े अस्पताल बनाये, विभिन्न चैक चैराहो मार्गों के नाम उनके रखे गए है।
अनेन्द्र सिंह आमेरा का कहना है कि लेकिन बरवाड़ा के जनता ने अपने पूर्व नरेश महाराजा भीम सिंह जिन्होंने विश्व विख्तयात चैथ माता मंदिर की स्थापना की, को कभी वो सम्मान नहीं दिया जिसके वो हकदार थे। क्षेत्र के लोगो को ये तक नहीं पता उनकी जयंती कब होती है, या उनका राज्यारोहण दिवस कब होता है ? कस्बे में एक अदद प्रतिमा तक नहीं है, न ही किसी चैक -चैराहे का नाम महाराजा भीम सिंह की स्मृति में रखा गया है।
आमेरा ने बताया कि कहा जाता है कि एक बार महाराजा भीमसिंह चैहान को रात में स्वप्न आया कि शिकार खेलने की परम्परा को मैं भूलता जा रहा हूँ, इसी स्वप्न की वजह से महाराजा भीमसिंह चैहान ने शिकार खेलने जाने का निश्चय किया, महाराजा भीमसिंह चैहान बरवाड़ा से संध्या के वक्त जाने का निश्चय किया एवं शिकार करने की तैयारी करने लगे। भीमसिंह चैहान की रानी रत्नावली ने राजा भीमसिंह चैहान को शिकार पर जाने से रोकने के लिए बहुत मना किया, मगर भीमसिंह ने यह कहकर बात को टाल दिया कि चैहान एक बार सवार होने के बाद शिकार करके ही नीचे उतरते हैं। इस प्रकार रानी की बात को अनसुनी करके भीमसिंह चैहान अपने सैनिकों के साथ घनघौर जंगलों की तरफ कूच कर गए। शाम का समय था लेकिन भीमसिंह चैहान जंगलों में शिकार की खोज हेतु बढ़ते ही रहे, अचानक महाराजा भीमसिंह चैहान की नजर एक मृग पर पड़ी और उन्होंने मृग का पीछा करना शुरू कर दिया, सैनिक भी राजा के साथ बढ़ने लगे, लेकिन जंगलों में रात हो जाने के कारण सभी सैनिक आपस में एक दूसरे से भटक गए। महाराजा भीमसिंह ने रात हो जाने के कारण मृग का पीछा आवाज को लक्ष्य बनाकर करने का निश्चय किया और मृग की ओर बढ़ते चले गए। मृग धीरे धीरे भीमसिंह चैहान की नजरों से ओझल हो गया। जब तक राजा के सभी सैनिक राजा से रास्ता भटक चुके थे। भीमसिंह चैहान ने चारों तरफ नजरें दौड़ाई मगर उसके पास कोई भी सैनिक नहीं रहा। उनको प्यास बहुत सताने लगी और वे पानी के स्रोत को खोजने लगे। बहुत कोशिश के बाद भी जब पानी नहीं मिला तो भीमसिंह चैहान मूर्छित होकर जंगलों में गिर पड़े।
भीमसिंह को स्वप्न में पचाला तलहटी में चैथ माता की प्रतिमा दिखने लगी। तभी अचानक भयंकर बारिश होने लगी एवं मेघ गरजने लगे व बिजली कड़कने लगी, जब राजा की बारिश के कारण मूर्छा टूटी तो राजा देखता है कि चारों तरफ पानी ही पानी नजर आया, राजा ने पहले पानी पिया और देखा कि एक बालिका अंधकार भरी रात में स्वयं सूर्य जैसी प्रकाशमय उज्ज्वल बाल रूप में कन्या खेलती नजर आई. भीमसिंह चैहान उस कन्या को देखकर थोड़ा भयभीत हुआ और बोला कि हे बाला इस जंगल में तुम अकेली क्या कर रही हो? तुम्हारे माँ बाप कहाँ पर है, राजा की बात को सुनकर नन्ही बालिका हँसने लगी और तुतलाती वाणी में बोली कि हे राजन तुम यह बताओ की तुम्हारी प्यास बुझी या नहीं, इतना कहकर भगवती अपने असली रूप में आ गई, इतना होते ही राजा माँ के चरणों में गिर गया और बोला हे आदिशक्ति महामाया मुझे आप से कुछ नहीं चाहिए अगर आप मुझ पर खुश हो तो हमारे क्षेत्र में आप हमेशा निवास करें। राजा भीमसिंह चैहान को माता चैथ भवानी तुम्हारी इच्छा पूरी होगी कहकर अंतर्ध्यान हो गई। जहाँ पर महामाया लुप्त हुई वहाँ से राजा को चैथ माता की प्रतिमा मिली। उसी चैथ माता की प्रतिमा को लेकर राजा बरवाड़ा की ओर चल दिया।
बरवाड़ा आते ही जनता को राजा ने पूरा हाल बताया और संवत 1451 में आदिशक्ति चैथ भवानी की बरवाड़ा में पहाड़ की चोटी पर माघ कृष्ण चतुर्थी को विधि विधान से स्थापित किया, तब से लेकर आज तक इसी दिन चैथ माता का मेला भरता है जिसमें लाखों की तादाद में भारतवर्ष से भगत जन माँ का आशीर्वाद लेने आते रहते है।
भीमसिंह चैहान के लिए उक्त कहावत आज भी चल रही है –
चैरू छोड़ पचालो छोड्यों, बरवाड़ा धरी मलाण,
भीमसिंह चैहान कू, माँ दी परच्या परमाण।