Sawai Madhopur : रणथंभौर अभ्यारण्य में बाघों की बढ़ती जनसंख्या बनी उनकी जान की दुश्मन।

Sawai Madhopur : रणथंभौर अभ्यारण्य में बाघों की बढ़ती जनसंख्या बनी उनकी

जान की दुश्मन।

स्वछंद विचरण करते बाघों की अठखेलियों को लेकर विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बना चुके राजस्थान के सवाई माधोपुर में स्थित रणथंभौर नेशनल पार्क में लगातार बढ़ रही बाघों की संख्या वनाधिकारियों के लिए चिंता का सबब बनती जा रही है।रणथंभौर में वन विभाग की मॉनिटरिंग एंव उनके लाख प्रयासों के बावजूद टेरेटरी को लेकर आये दिन बाघों के बीच आपसी संघर्ष थमने का नाम नही ले रहा। जिसके चलते रणथंभौर के वनाधिकारी भी चिंतित है।
 दरअसल सवाई माधोपुर स्थित रणथंभौर बाघों की अठखेलियों को लेकर देश ही नही अपितु विदेशों में भी अपनी एक अलग ही पहचान बना चुका है। सरकार के प्रयास एंव वन विभाग की अथक मेहनत के चलते रणथंभौर में लगातार बाघों की संख्या में वृद्धि हो रही है।लेकिन अब रणथंभौर में लगातार बढ़ती बाघों की संख्या वनाधिकारियों के लिए चिंता का सबब भी बनती जा रही है। 1300 स्कवायर किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र में फैले रणथंभौर नेशनल पार्क में वर्तमान में तकरीबन 78 बाघ बाघिन एंव शावक है। जिसके चलते यहाँ बाघों के लिए जगह कम पड़ने लगी है। ऐसे में टेरेटरी को लेकर आये दिन रणथंभौर में बाघों के बीच आपसी संघर्ष होता रहता है।
 जिसमें कई मर्तबा जहाँ बाघ बाघिन घायल हो जाते है वही कई बार उनकी मौत भी हो जाती है। जैसा कि 24 मई को खंडार रेंज में एक बाघिन के शावक की मौत हो गई थी। रणथंभौर के सीसीएफ सेडूराम यादव की माने तो टाईगर टेरोटिरियल बिहेवियर का एनिमल है। जिसके चलते टेरेटरी को लेकर इनमें आपसी संघर्ष होता रहता है।
सीसीएफ के मुताबिक रणथंभौर में बाघ एंव बाघिन का रसो वन प्लस वन का है। रणथंभौर में बढ़ती बाघों की संख्या के मध्यनजर सरकार एंव वन विभाग द्वारा रणथंभौर का क्षेत्रफल बढ़ाने का भी प्रयास किया जा रहा है।सीसीएफ का कहना है कि रामगढ़ विषधारी अभ्यारण एंव कैलादेवी कॉरिडोर को डवलप किया जायेगा।ताकि टाईगर को आवश्यता के मुताबिक पर्याप्त जगह मिल सके। दोनों इलाके डवलप होने के बाद टाईगर को पर्यावास के लिए पर्याप्त जगह मिल जायेगी तो टाईगर के बीच होने वाला आपसी टकराव भी समाप्त हो जायेगा।
बाघों की अठेखेलिया देखने के लिए वर्ष भर सैलानियों का रहता है सैलाब।
बाघों की अठेखेलिया देखने के लिए रणथंभौर में वर्ष भर सैलानियों का तांता लगा रहता है। लेकिन रणथंभौर में बढ़ती बाघों की संख्या के चलते आये दिन बाघों के बीच होने वाली आपसी मुठभेड़ वन विभाग के अधिकारियों के लिए बड़ी चिंता का विषय है। रणथंभौर में अधिकतर बाघ बाघिन रणथंभौर के कोर एरिया में विचरण करते है। ऐसे में पर्यटन गतिविधिया में यही अधिक है।रणथंभौर के बाहरी इलाके में कम ही टाईगर है जो विचरण करते है।सीसीएफ की माने तो कैलादेवी कॉरिडोर एरिया में अभी 43 गांव ऐसे है जिन्हें विस्तापित किया जाना है।
 इन 43 गाँवो को विस्तापित करना बड़ा कठिन कार्य है और जब तक ये गांव विस्तापित नही होंगे तब तक रणथंभौर के बाघों को पर्याप्त जगह नही मिल पायेगी। इन गाँवो के विस्तापित होने और फिर यहाँ जंगल डवलप होने के बाद ही रणथंभौर के बाघों को उनके मुताबिक जगह मिल पायेगी जो फिलहाल इतना आसान नही है।विभागीय अधिकारियों के अनुसार जगह के मुताबिक रणथंभौर में बढ़ती बाघों की बाघों के लिए ही खतरा बनती जा रही है। टेरेटरी को लेकर ताकतवर बाघ के सामने कमजोर बाघ को अपनी जगह छोड़नी ही पड़ती है।ऐसे में कई बार बाघ बाघिन रणथंभौर से सटे आबादी क्षेत्रो के नजदीक पहुंच जाते है और कई बार यहाँ हादसे भी घटित हो जाते है। जिन्हें लेकर वनाधिकारियों को बहुत परेशान होना पड़ता है। वही रणथंभौर में बढ़ती मानवीय दखल भी बाघों के लिए किसी खतरे से कम नही है ।
जगह की कमी बनती बाघों के लिए खतरा।
रणथंभौर में बढ़ती लगातार बाघों की संख्या वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक सुखद खबर है। लेकिन जगह की कमी बाघों के लिए खतरा भी बनती जा रही है। हालांकि रणथंभौर से अभी करीब आधा दर्जन बाघ बाघिनों को अन्यत्र शिफ्ट भी किया जाना है। लेकिन बाघों की शिफ्टिंग के बाद भी यहाँ के बाघों के लिए जगह बेहद कम है। ऐसे में सरकार एंव वन विभाग द्वारा रणथंभौर का क्षेत्रफल बढ़ाने का प्रयास तो किया जा रहा है लेकिन अभी उसमें बहुत वक्त लगेगा। ऐसे में रणथंभौर में बढ़ती बाघों की संख्या रणथंभौर के वनाधिकारियों के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। ऐसे में सरकार को जल्द से जल्द रणथंभौर कोई रास्ता निकालना ही होगा ।