⚖️ राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बहू की सैलरी से हर माह ₹20,000 काटकर ससुर को देने का आदेश

⚖️ राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बहू की सैलरी से हर माह ₹20,000 काटकर ससुर को देने का आदेश

जोधपुर/अजमेर। राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate Appointment) के सिद्धांतों पर जोर दिया है। हाईकोर्ट ने अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (AVVNL) में कार्यरत एक महिला कर्मचारी को उसके ससुर का भरण-पोषण करने का आदेश दिया है।

न्यायाधीश फ़रज़ंद अली की एकल पीठ ने आदेश दिया कि महिला कर्मचारी के वेतन से हर माह ₹20,000 काटकर उसके ससुर के बैंक खाते में जमा किए जाएं।

👵 ससुर ने बहू को दी थी अनुकंपा नियुक्ति

यह मामला अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में कार्यरत कर्मचारी राजेश कुमार की 2015 में सेवा के दौरान हुई मृत्यु से संबंधित है।

  • याचिकाकर्ता (ससुर): याचिकाकर्ता भगवान सिंह की ओर से अधिवक्ता प्रियांशु गोपा और श्रेयांश रामदेव ने कोर्ट को बताया कि उनके पुत्र राजेश कुमार की मृत्यु के बाद विभाग ने उनसे अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन मांगा था।

  • पुत्रवधू को सिफारिश: भगवान सिंह ने उदारता दिखाते हुए पुत्रवधू शशि कुमारी के नाम की सिफारिश कर दी थी, जिसके बाद शशि कुमारी को लोअर डिवीजन क्लर्क (LDC) के पद पर नियुक्त कर दिया गया।

  • शपथ पत्र का उल्लंघन: पुत्रवधू ने नियुक्ति से पहले शपथ पत्र (हलफनामा) दिया था कि वह अपने सास-ससुर का पालन-पोषण करेगी, लेकिन उसने बाद में ऐसा नहीं किया। ससुर ने गुजारा भत्ता के लिए बहू के वेतन का 50 प्रतिशत मांगा था।

🛑 हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

कोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति की भावना के विपरीत व्यवहार करने पर सख्त टिप्पणी की।

  • अनुकंपा कोई अधिकार नहीं: एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति कोई अधिकार नहीं है, बल्कि यह करुणा के आधार पर दी जाने वाली सहायता है। यह सहायता मृत कर्मचारी के पूरे परिवार की भलाई के लिए होती है, न कि केवल किसी एक व्यक्ति के लिए।

  • हलफनामे से मुकरना गलत: कोर्ट ने माना कि याची (ससुर) ने जो हलफनामा दिया था, वह नियुक्ति का आधार था, इसलिए अब उससे मुकरा नहीं जा सकता।

  • बेसहारा छोड़ना न्यायसंगत नहीं: पीठ ने कहा कि चूंकि विभाग ने प्रारंभिक रूप से नियुक्ति का प्रस्ताव स्वयं भगवान सिंह को दिया था, इसलिए अब उन्हें बेसहारा छोड़ना न्यायसंगत नहीं है।

कोर्ट ने इस तरह के व्यवहार को अनुकंपा नियुक्ति की भावना के विपरीत मानते हुए बहू के वेतन से ₹20,000 काटकर ससुर को देने का आदेश दिया है, ताकि उनकी आजीविका सुनिश्चित हो सके।


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