Railways:  मानवीय भूल से होने वाली दुर्घटनाओं से कोटा रेल मंडल अब पूरी तरह सुरक्षित हो गया है। कोटा-नागदा रेल खंड में भी कवच सिस्टम 4.0 (ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम) स्थापित हो गया है। सोमवार को रेल और ठेका कर्मचारियों ने डीआरएम ऑफिस में एक दूसरे का मुंह मीठा कराकर इसका जश्न मनाया। उल्लेखनीय कि इससे पहले कोटा-मथुरा रेलखंड में कवच सिस्टम का काम पूरा हो चुका है।
पूरे रेल खंड में कवच स्थापित करने वाला कोटा मंडल पहला देश भर में पहली मंडल बन गया है। ऐसा कर कोटा मंडल ने फिर से इतिहास रचा है। इससे पहले कोटा रेल मंडल में ट्रायल ट्रेन को अधिकतम 180 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ा कर इतिहास रचा था।
 
लगाए 130 कवच टावर
मथुरा-नागदा के बीच करीब 545 किलोमीटर में ऐसे कुल 130 कवच टावर लगाए गए हैं। इस पर करीब 428.26 करोड रुपए खर्च हुए हैं।
कवच सिस्टम लगने से अब कोटा रेल मंडल में दो ट्रेनें आपस में नहीं टकरा सकेंगी। किसी कारण से लोको पायलट द्वारा ब्रेक नहीं लगने पर भी आमने-सामने आने पर दोनों ट्रेनें अपने आप रुक जाएंगी।
 
160 का रास्ता साफ
कवच सिस्टम लगने से कोटा रेल मंडल में अब ट्रेनों को अधिकतम 160 किलोमीटर प्रति घंटा रफ्तार से दौड़ आने का रास्ता भी पूरी तरह साफ हो गया है। सिग्नल नहीं दिखने के कारण कोहरे में भी कवच के कारण ट्रेन चलाने में परेशानी नहीं होगी। सिग्नल के लिए बाहर देखने की आवश्यकता नहीं होगी। उन्हें सारी जानकारी केबिन के अंदर लगे डैशबोर्ड पर दिखाई देगी।
 
सवा साल में पूरा हुआ काम
कोटा मंडल में कवच सिस्टम लगाने का काम रिकॉर्ड करीब सवा साल में साल में पूरा हुआ है। जबकि कई विकसित देशों को ऐसी ट्रेन सुरक्षा प्रणाली को विकसित और स्थापित करने में 20 से 30 वर्ष लग गए। जब की कोटा-मथुरा रेलखंड पर कवच 4.0 बहुत कम समय में स्थापित किया गया है। जो कि एक बड़ी उपलब्धि है।
स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित इस सिस्टम को जुलाई-2024 में आरडीएसओ (रिसर्च डिज़ाइंस एंड स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइज़ेशन) द्वारा स्वीकृति दी गई थी। इसके तुरंत बाद टावर लगाने का काम शुरू कर दिया गया था।
पहला कवच टावर मथुरा-गंगापुर रेलखंड स्थित पिंगोरा-सेवर स्टेशनों के बीच क्रासिंग गेट पर तथा दूसरा बयाना स्टेशन पर लगाया गया धा। पश्चिम-मध्य रेलवे में कोटा मंडल में यह टावर सबसे पहले लगाए गए।
 
रेल मंत्री कर चुके परीक्षण
उल्लेखनीय है कि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव गत वर्ष 24 सितंबर को सवाई माधोपुर से इंद्रगढ़ सुमेरगंजमंडी रेलखंड के बीच इस कवच सिस्टम का परिक्षण कर चुके हैं। ट्रायल के दौरान स्पेशल ट्रेन के इंजन में सवार अश्विनी ने देखा था की फाटक खुला होने पर ट्रेन ऑटोमेटिक रुक गई थी। फाटक आने पर ट्रेन ने अपने आप ही हॉर्न बजाया। साथ ही लूप लाइन में रफ्तार को भी नियंत्रित किया। इसके अलावा स्टेशन मास्टर से अनियमितता का मैसेज मिलते ही कवच सिस्टम से ट्रेन ऑटोमैटिक रुक गई। कवच सिस्टम के कारण चालक के प्रयास के बाद भी ट्रेन लाल सिग्नल पार नहीं कर सकी थी।
 
अभी विदेशों में है यह तकनीक
उल्लेखनीय है कि कवच टॉवर का निर्माण तकनीकी दृष्टि से बेहद ही जटिल है। इसमें टावर के बेस को तीन किस्तों में मिलीमीटर के स्तर तक लेवल किया जाता है। इस सिस्टम से ट्रेन की संरक्षा अभी केवल विकसित राष्ट्रों में ही है। इस सिस्टम का सफल ट्रायल मुंबई-दिल्ली एवं मुंबई-हावड़ा रूट दक्षिण-मध्य रेलवे में किया था।
 
6 वर्षों में देश भर में स्थापित
इस सिस्टम को अगले 6 वर्षों में देशभर के विभिन्न रेल मार्गों पर स्थापित करने की तैयारी है। अब तक 35 हजार से अधिक कर्मचारी को कवच प्रणाली पर प्रशिक्षित किया जा चुका है।
 
कोटा-नागदा में भी पूरा हुआ काम
कवच सिस्टम का काम कोटा-नागदा रेलखंड में भी पूरा हो गया है। इसके चलते इस रूट पर भी मानवीय गलती से होने वाली ट्रेन दुर्घटना की आशंका लगभग समाप्त हो गई है। - सौरभ जैन, वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंध कोटा मंडल