जयपुर। भारतीय रेलवे अब केवल पटरी पर दौड़ती ट्रेनों से ही नहीं, बल्कि अपनी खाली पड़ी जमीनों से भी मोटा राजस्व जुटाने की तैयारी में है। रेलवे बोर्ड ने एक बड़ा फैसला लेते हुए रेलवे की बेशकीमती जमीनों को पीपीपी (Public-Private Partnership) मॉडल पर निजी अस्पतालों को देने का प्रस्ताव तैयार किया है। इस योजना के पहले चरण में राजस्थान की राजधानी जयपुर समेत देश के पांच प्रमुख शहरों को मंजूरी मिल गई है।
रेलवे की आय बढ़ाने के लिए 'रेलवे भूमि विकास प्राधिकरण' (RLDA) ने यह खाका खींचा है। इस मॉडल के तहत:
रेलवे की खाली जमीन पर निजी डेवलपर सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल का निर्माण और संचालन करेंगे।
अस्पताल से होने वाली आय का एक निश्चित हिस्सा सीधे रेलवे के खजाने में जाएगा।
जमीन का मालिकाना हक रेलवे के पास ही रहेगा, लेकिन उसका व्यावसायिक उपयोग होगा।
रेलवे बोर्ड ने शुरुआती तौर पर पांच शहरों के प्रस्तावों को हरी झंडी दे दी है:
जयपुर (उत्तर पश्चिम रेलवे)
नई दिल्ली (उत्तर रेलवे)
वाराणसी (उत्तर रेलवे)
गुवाहाटी (पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे)
विशाखापट्टनम (पूर्व तट रेलवे)
रेलवे की इस पहल से न केवल राजस्व बढ़ेगा, बल्कि कई अन्य समस्याओं का समाधान भी होगा:
अवैध कब्जों पर लगाम: रेलवे की खाली जमीनों पर अक्सर भू-माफिया कब्जा कर लेते हैं। अस्पतालों के निर्माण से इन जमीनों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं: इन अस्पतालों में आधुनिक तकनीक और सुपर स्पेशिलिटी सुविधाएं मिलेंगी, जिसका लाभ आम जनता के साथ-साथ रेलवे कर्मचारियों, पेंशनरों और उनके परिजनों को भी मिलेगा।
नॉन-फेयर रेवेन्यू: किराये और मालभाड़े के अलावा रेलवे के पास आय का एक स्थाई और बड़ा स्रोत विकसित होगा।
उत्तर पश्चिम रेलवे के मुख्यालय जयपुर में इस योजना के लागू होने से शहर के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूती मिलेगी। रेलवे की प्राइम लोकेशन वाली जमीनों पर निजी अस्पतालों के आने से मरीजों को इलाज के लिए अधिक विकल्प मिल सकेंगे।
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