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इस फैसले से रेलवे को इन कर्मचारियों की ट्रेनिंग पर खर्च हुए लाखों रुपए का सीधा चूना लगा है, जिससे प्रशासनिक कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े हो रहे हैं।
कर्मचारियों का कहना है कि जब उन्हें C&W विभाग में ही वापस लगाना था तो उन्हें पहले सरप्लस क्यों किया गया? और यदि सरप्लस कर दिया गया था और ट्रेनिंग पर भेजा गया था, तो अब उन्हें गार्ड की ड्यूटी क्यों नहीं दी जा रही? यह निर्णय रेलवे के संसाधनों की बर्बादी और अधिकारियों की मनमानी को दर्शाता है।
यह पूरा मामला पहले भी काफी चर्चा में रहा था और अब एक बार फिर गर्माया हुआ है। यह सामने आया है कि अधिकारियों ने इस पूरे प्रकरण को अपनी नाक का सवाल बना लिया था।
अधिकारियों ने पहले 14 जुलाई को इन 6 कर्मचारियों को सरप्लस कर गार्ड की ट्रेनिंग के लिए लेटर जारी किया।
लेकिन, बाद में अधिकारियों ने कर्मचारियों को ट्रेनिंग पर जाने से रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। उन्होंने अंतिम समय तक भी रोकने की कोशिशें जारी रखीं।
यहां तक कि अधिकारियों ने कर्मचारियों को अनुपस्थित बताकर उनके घरों के दरवाजे पर चार्जशीट तक चिपका दी।
इन सबके बावजूद, कर्मचारी 16 जुलाई को ट्रेनिंग के लिए उदयपुर पहुँच गए।
ट्रेनिंग के दौरान भी अधिकारियों ने उन्हें वापस बुलाने का प्रयास जारी रखा, जिससे परेशान होकर कर्मचारियों की पत्नियों ने डीआरएम से भी शिकायत की थी।
अब उदयपुर से 3 महीने की ट्रेनिंग पूरी कर वापस आने के बाद, कर्मचारियों का आरोप है कि अधिकारियों ने अपनी भड़ास निकालने के लिए उन्हें गार्ड की जगह वापस से सोमवार से C&W विभाग में ड्यूटी पर लगा दिया।
गार्ड की ट्रेनिंग के बावजूद C&W विभाग में वापस लगाने से आक्रोशित कर्मचारियों ने डीआरएम अनिल कालरा से मिलने की कोशिश की, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी उनकी मुलाकात नहीं हो सकी है। यह स्थिति तब है, जब डीआरएम कालरा ने सभी कर्मचारियों से किसी भी परेशानी की बात उनके व्हाट्सएप नंबर पर शेयर करने की बात कर रखी है। कर्मचारियों का डीआरएम से मुलाकात न हो पाना मामले में सब कुछ नियम अनुसार नहीं होने की ओर इशारा कर रहा है।
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