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अधिकारियों की इस घोर अमानवीय हरकत से इंजीनियरिंग विभाग के कर्मचारियों में गहरा आक्रोश व्याप्त है।
इंजीनियरिंग विभाग टीटीएम मशीन में टेक्नीशियन के पद पर कार्यरत ओमप्रकाश, जो बयाना का रहने वाला है, उसकी ड्यूटी इन दिनों भौंरा स्टेशन पर चल रही थी। ओमप्रकाश को सुबह करीब 5.30 बजे सूचना मिली कि बयाना में उनकी मां का देहांत हो गया है।
जीवन की इस सबसे दुखद सूचना पर ओमप्रकाश तुरंत बयाना जाने की तैयारी करने लगे। साथियों ने बताया कि ओमप्रकाश को समय पर बयाना पहुंचाने के लिए पूरा स्टाफ जुट गया और उन्होंने दयोदय ट्रेन को रुकवाने की गुहार लगाई।
कर्मचारियों ने कोटा मंडल के अधिकारियों से दयोदय ट्रेन (12181) को 1 मिनट के लिए भौंरा स्टेशन पर रुकवाने का आग्रह किया। इसका उद्देश्य यह था कि ओमप्रकाश तुरंत कोटा पहुंच सकें और वहां से मुंबई-अमृतसर स्वर्ण मंदिर मेल (12903) पकड़कर समय रहते बयाना पहुंच जाएं ताकि अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल हो सकें।
लेकिन, कोटा मंडल के अधिकारियों ने मानवीय नियम कायदे कानून को ताक पर रखते हुए और पीसीसीएम मनीष तिवारी के आने की बात कहते हुए दयोदय ट्रेन को भौंरा स्टेशन पर रोकने से साफ मना कर दिया।
दयोदय ट्रेन नहीं रुकने से पहले से दुखी ओमप्रकाश अधिकारियों के इस रवैये से और ज्यादा निराश हो गए।
इसके बाद सहकर्मी कर्मचारियों ने ओमप्रकाश को भौंरा स्टेशन से जैसे-तैसे तीन-चार किलोमीटर दूर हाईवे पर पहुंचाया। यहां से ओमप्रकाश निजी वाहन से कोटा पहुंचे।
गनीमत यह रही कि मुंबई-अमृतसर स्वर्ण मंदिर मेल (12903) उस दिन करीब आधा घंटा देरी से चल रही थी। भागते-दौड़ते ओमप्रकाश को लेट होने के बावजूद यह मेल मिल गई। अगर ट्रेन समय पर होती या ओमप्रकाश को आने में थोड़ी भी देर हो जाती, तो उन्हें मेल नहीं मिलती और उन्हें अगली ट्रेन (बरौनी-बांद्रा अवध एक्सप्रेस, जो करीब 4:30 बजे बयाना पहुंचती) का इंतजार करना पड़ता, जिससे उनका मां के अंतिम संस्कार में शामिल होना मुश्किल हो जाता।
रेल मंडल के इस दोहरे मापदंड पर गहरा आक्रोश है। कर्मचारियों ने बताया कि मां की मौत पर भी अपने ही कर्मचारी के लिए ट्रेन नहीं रोकने वाला कोटा मंडल रेल प्रशासन नेताओं के लिए कई बार आधे घंटे से अधिक समय तक ट्रेन को स्टेशन पर रोके रखता है। ऐसा संभवतः एक बार भी नहीं हुआ जब किसी नेताजी के इंतजार में ट्रेन को स्टेशन पर नहीं रोका गया हो। 15-20 मिनट तो मामूली बात है।
यह घटना रेलवे प्रशासन की प्राथमिकताओं और मानवीय मूल्यों पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगाती है।
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