राजस्थान में दसवीं बोर्ड परीक्षा 2025 के दौरान एक अनूठा मामला सामने आया, जहां कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद शिक्षा विभाग को परीक्षा शुरू होने के 25 मिनट बाद एक छात्र को घर से बुलाकर परीक्षा दिलवानी पड़ी। यह मामला बूंदी जिले के कागजी देवरा क्षेत्र के निजी विद्यालय से जुड़ा है।
ओम बिड़ला से गुहार के बाद भी नहीं माना शिक्षा विभाग
राजस्थान बीज निगम के पूर्व निदेशक चर्मेश शर्मा ने बताया कि कागजी देवरा के निजी विद्यालय के 10वीं बोर्ड के छात्र कुलदीप सोनी को स्कूल में कम उपस्थिति बताकर जिला शिक्षा अधिकारी ने परीक्षा दिलवाने से मना कर दिया था. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और जिला कलेक्टर अक्षय गोदारा से छात्र ने गुहार लगाई जिसके बावजूद शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने स्कूल में 75% उपस्थिति के नियमों का हवाला देते हुए छात्र को परीक्षा दिलवाने में असमर्थता जता दी थी.
इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश पारीक से परामर्श के बाद बुधवार शाम को राजस्थान बीज निगम के पूर्व निदेशक चर्मेश शर्मा के साथ छात्र कुलदीप सोनी ने विधिक सहायता न्यायालय में वाद के माध्यम से भविष्य बचाने की गुहार लगाई. न्यायालय ने तत्काल जिला शिक्षा अधिकारी को नोटिस भेजकर जवाब मांगने और कार्यवाही के निर्देश के बाद गुरुवार सुबह प्रातः 8:30 बजे परीक्षा शुरू होने से ठीक पहले माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर ने छात्र को परीक्षा दिलवाने के आदेश जारी किए.
छात्र को घर से बुलाकर दिलवाई परीक्षा
छात्र कुलदीप सोनी की कम उपस्थिति के आधार पर शिक्षा विभाग ने उसे परीक्षा देने से रोक दिया था। इस फैसले के खिलाफ वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश पारीक के परामर्श में बुधवार शाम को राजस्थान बीज निगम के पूर्व निदेशक चर्मेश शर्मा ने न्यायालय में परिवाद पेश किया। कोर्ट ने शिक्षा विभाग को नोटिस जारी कर छात्र को परीक्षा में शामिल करने के आदेश दिए। इसके बाद शिक्षा विभाग ने परीक्षा शुरू होने के 25 मिनट बाद छात्र को घर से बुलाकर परीक्षा दिलाई।
मां की मौत के बाद अवसाद में था छात्र
छात्र के परिजन सुशील सोनी ने बताया कि कुलदीप की मां की मौत के बाद वह अवसाद में था। पिता द्वारा मां को जलाकर मारने की घटना के बाद छात्र और उसकी बहन परिजनों के पास गुप्त तरीके से रह रहे थे, जिससे उसकी स्कूल उपस्थिति प्रभावित हुई।
एडमिट कार्ड जारी होने के बावजूद रोका गया परीक्षा से
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर द्वारा छात्र का एडमिट कार्ड जारी किया गया था, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी ने 75% उपस्थिति नियम का हवाला देकर परीक्षा से रोक दिया। कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद छात्र को न्याय मिला और परीक्षा देने का अवसर प्राप्त हुआ।
छात्र ने कहा, "मैंने उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन न्यायालय ने मेरी गुहार सुनी और मुझे भविष्य संवारने का मौका दिया।"
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