सवाई माधोपुर/पालीघाट। राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं में फैले राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभयारण्य को 'घड़ियाल हॉटस्पॉट' के रूप में विकसित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए, राजस्थान सरकार के वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संजय शर्मा ने गुरुवार, 13 नवम्बर 2025 को पालीघाट में 10 घड़ियाल शावकों को चम्बल नदी के उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ा।
यह देश में घड़ियाल संरक्षण की एक अनूठी और वैज्ञानिक कवायद है, जिसे 'रियरिंग फास्ट ट्रैक-हेड स्टार्टिंग' कार्यक्रम के तहत शुरू किया गया है।
वन राज्यमंत्री संजय शर्मा ने बताया कि घड़ियाल संरक्षण का यह अनूठा कार्यक्रम मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा के दिशा-निर्देशानुसार शुरू किया गया है। वन विभाग ने चंबल किनारे मादा घड़ियाल के अंडे देने के स्थान से अंडों से निकले बच्चों को संरक्षण के लिए रेस्क्यू किया था।
संरक्षण प्रक्रिया: अंडों से निकलने पर इन शावकों की लम्बाई लगभग 25 सेंटीमीटर थी। सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें अलग-अलग केबिन में रखकर नेचुरल फूड (जिंदा मछली) दी गई, ताकि वे शिकार की आदत न भूलें।
पुनर्वास: अब जब इन घड़ियाल के बच्चों की लम्बाई 75 सेंटीमीटर हो गई है, तब उन्हें प्राकृतिक वातावरण में छोड़ा जा रहा है।
कुल 30 घड़ियाल हैचलिंग्स को खण्डार स्थित पालीघाट में चम्बल नदी में छोड़ा जाना है, जिनमें से 10 शावकों को आज छोड़ा गया है। शेष शावकों को 5-6 दिन के अंतराल पर क्रमवार छोड़ा जाएगा।
वन राज्यमंत्री ने बताया कि छोड़े गए इन शावकों की निगरानी के लिए इनके शरीर पर एक डिवाइस लगाया गया है। इससे वन विभाग के अधिकारी पानी के अन्दर इनकी एक-एक गतिविधि की निगरानी कर सकेंगे।
संजय शर्मा ने चंबल अभयारण्य का अवलोकन करते हुए कहा कि:
“चम्बल नदी क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन की धुरी है। यहाँ घड़ियालों का संरक्षण वन्यजीव संरक्षण मात्र नहीं, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता का प्रतीक है।”
उन्होंने कहा कि पालीघाट में चल रहे वैज्ञानिक कार्य की तर्ज पर धौलपुर और अन्य क्षेत्रों में भी घड़ियाल संरक्षण को सशक्त किया जाएगा। साथ ही, पालीघाट और चम्बल तट को “इको-टूरिज्म जोन” के रूप में विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे चम्बल “घड़ियालों की धरती और पर्यावरणीय संतुलन का प्रतीक” बनकर उभरे।
उप वन संरक्षक डॉ. रामानंद भाकर ने बताया कि चम्बल अभयारण्य में वर्तमान में लगभग 2,200 घड़ियाल हैं, जो विश्व की कुल घड़ियाल आबादी का लगभग 80 प्रतिशत है। इस तरह यह क्षेत्र दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक घड़ियाल संरक्षण क्षेत्र बन चुका है।
उन्होंने बताया कि इस वर्ष नियंत्रित वातावरण में पाले गए 30 घड़ियाल शावकों में से एक की भी मृत्यु नहीं हुई है, और उनकी जीवितता दर (Survival Rate) 100 प्रतिशत रही है।
इस अवसर पर प्रधान मुख्य वन संरक्षक शिखा मेहरा, अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक राजेश गुप्ता, डॉ. रामानंद भाकर और रेंजर किशन कुमार सांखला सहित कई अधिकारी मौजूद रहे।
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