अफगानिस्तान में चरमपंथियों के सत्ता में आ जाने से क्या अब आतंकवाद पर अंकुश लग सकेगा? या फिर आतंकवाद और बढ़ेगा?

अफगानिस्तान में चरमपंथियों के सत्ता में आ जाने से क्या अब आतंकवाद पर अंकुश लग सकेगा? या फिर आतंकवाद और बढ़ेगा?
फिलहाल तो इन चरमपंथियों के सामने विश्व की सभी महाशक्तियों ने घुटने टेक दिए हैं। भारत के लिए भी चिंता का विषय है।
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आखिरकार अफगानिस्तान में मुस्लिम चरमपंथियों की सरकार बन ही गई है। जो मुल्ला हसन अखुंद संयुक्त राष्ट्र संघ की आतंकियों की सूची में शामिल हैं, वह अब अफगानिस्तान का प्रधानमंत्री बन गया है। आतंकवादी होने के कारण जो मुल्ला अब्दुल बरादर पांच साल तक पाकिस्तान की जेल में बंद रहा वह अब उपप्रधानमंत्री है। खूंखार आतंकी संगठन तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला याकूब रक्षा मंत्री तथा अमरीका का जानी दुश्मन सिराजुद्दीन हक्कानी गृह मंत्री बना है। अफगानिस्तान का नाम भी अब इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान हो गया है। 33 सदस्यों वाली सरकार का ऐलान हो चुका है। सब जानते हैं कि इन्हीं चरमपंथियों ने इस्लाम के नाम पर पहले 12 वर्ष तक सोवियत रूस से लड़ाई लड़ी और 2001 से 2021 तक यानी 20 साल अमरीका की फौज से लड़ते रहे। न तो रूस हरा सका और न ही अमरीका इन चरमपंथियों को हरा सका। अमरीका को अफगानिस्तान से निकलने के लिए उसी पाकिस्तान की मदद लेनी पड़ी जो इन चरमपंथियों को अमरीका के खिलाफ ही उकसा रहा था। अमरीका तो अब चला गया, लेकिन सवाल उठता है कि क्या आतंक पर अंकुश लग पाएगा? क्या भारत में 9/11 तथा अमरीका में 26/11 जैसे आतंकी हमले नहीं होंगे? सब जानते हैं कि 1997 में रूस को भगाने के बाद जब चरमपंथियों ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया, तब वर्ष 2000 में अमरीका पर आतंकी हमला हुआ था। चरमपंथियों से बदला लेने के लिए ही अमरीका को अफगानिस्तान आना पड़ा। अब इस बात की क्या गारंटी है कि अमरीका पर फिर से हमला नहीं होगा? हाल ही में जब अमरीका के सैनिकों की वापसी अंतिम चरण में थी, तब आईएसआईएस ने काबुल एयरपोर्ट पर आत्मघाती विस्फोट कर 13 अमरीकी सैनिकों को और 100 अफगानी नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया। यानी जाते जाते भी अमरीका को 13 सैनिकों के शव दे दिए। रूस और अमरीका से जिस तरह चरमपंथियों ने संघर्ष किया उससे अब विश्व की महाशक्तियां अफगानिस्तान के चरमपंथियों के सामने नतमस्तक है। हर देश चाहता है कि चरमपंथी उनके देश में कोई आतंकी गतिविधि नहीं करें। इसके लिए सभी देशों के प्रतिनिधि इन चरमपंथियों से लगातार संपर्क बनाए हुए है। चरमपंथियों की सरकार बनवाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका पाकिस्तान की है। लेकिन सरकार बनने से पहले ही पाकिस्तान में आतंकी धमाके होना शुरू हो गए हैं। कुछ नहीं कहा जा सकता कि किस देश में कब धमाका हो जाए। अब तक जो चरमपंथी इधर उधर छुपे हुए थे, वे आज एक देश की सरकार चला रहे हैं। अफगानिस्तान के नागरिकों का क्या हश्र होगा यह तो ऊपर वाला ही जानता है। लेकिन अफगानिस्तान में चरमपंथियों की सरकार बनने से भारत भी चिंतित है। पाकिस्तान में हमारे कश्मीर के जिस हिस्से पर कब्जा कर रखा है उस क्षेत्र की सीमा अफगानिस्तान से लगी हुई है। यही वजह है कि अफगानिस्तान के चरमपंथियों का कश्मीर में आना आसान है। इसलिए यह आशंका जताई जा रही है कि अफगानिस्तान की घटनाओं का असर कश्मीर पर पड़ेगा। जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो प्रधानमंत्री इमरान खान अफगानिस्तान के चरमपंथियों को कश्मीर में घुसपैठ करवाने के लिए तैयार बैठे हैं।