ग्रामीण क्षेत्रों तक फैलने वाली कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के साथ नई चुनौतियां सामने आ रही हैं।यहां तक की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस बारे में चेतावनी दी है। उन्होंने कहा, “ग्रामीणों के बीच कोविड-19 के बारे में जागरूकता पैदा करना और पंचायत राज संस्थानों का सहयोग समान रूप से महत्वपूर्ण है।”
शहरी क्षेत्रों की तुलना में परीक्षण सुविधाओं और स्वास्थ्य की बुनियादी ढांचे की कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 के प्रसार को रोकना एक अपेक्षाकृत जटिल प्रक्रिया है।हालांकि, नांदेड़ स्थित भोकर तालुका में 6,000 की आबादी वाला भोसीगांव ने सामान्य तरीके से आइसोलेशन का तरीका अपना कर कोविड-19 महामारी से लड़ने कारास्ता दिखाया है।
दो महीने पहले एक शादी समारोह के बाद गांव की एक लड़की कोरोना वायरस से संक्रमित पाई गई थीं। अगले हफ्ते पांच और मरीज मिले, जिससे पूरे गांव में खलबली मच गई।
उस समयजिला परिषद सदस्य प्रकाश देशमुख भोसीकर नेग्राम पंचायत और स्वास्थ्य विभाग के समन्वय से गांव में कोविड जांच कराने के लिए स्वास्थ्य शिविर लगाने की पहल की थी। रैपिड एंटीजन टेस्ट और आरटी-पीसीआर टेस्ट के बाद 119 लोग कोविड-19 से संक्रमित पाए गए।
इसके बाद अन्य लोगों तक फैलने वाले कोविड-19 की श्रृंखला को तोड़ने के लिए मरीजों को आइसोलेट करने का फैसला किया गया।इसके अनुसार, हल्के लक्षणों वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुरूप सभी संक्रमित लोगों को 15-17 दिनों की अवधि के लिए अपने खेतों में जाने और वहां रहने के लिए तैयार किया गया।खेत मजदूर और अन्य, जिनके पास अपना खेत नहीं था, उन्हें भोसीकर के अपने खेत पर निर्मित 40’ x 60’के आकार के एक शेड में रखा गया था।
गांव की स्वास्थ्य कर्मी आशाताई और आंगनवाड़ी सेविका प्रतिदिन खेतों में जाकर मरीजों से बातचीत करती थीं। मरीजों को इन जगहों पर भोजन और दवाइयां भी प्रदान की गईं।सभी लोगों ने सहयोग किया।15 से 20 दिनों के आइसोलेशन के बाद ग्रामीण अपनीस्वास्थ्य जांच के बाद ही कोरोना-मुक्त व्यक्ति के रूप में घर वापिस लौटे।
भोसीकर कहते हैं, “डेढ़ महीने हो चुके हैं, उसके बाद से अब तक गांव में अब तक कोई नया मरीज नहीं मिला है। आइसोलेशन के सदियों पुराने रास्ते को अपना कर कोविड से प्रभावी ढंगे से लड़ा जा सकता है- जैसा कि प्लेग के दिनों के दौरान किया जाता था- यहां तक की पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव वाले गांवों में भी ऐसा किया जा सकता है।”
खेतों में एक पखवाड़ा क्वारांटीन रहने वाली लक्ष्मीबाई अक्कमवाड कहती हैं, “संक्रमण से ग्रामीणों को बचाने का एकमात्र रास्ता आइसोलेशन है।”
नांदेड़ जिला परिषद की सीईओ वर्षा ठाकुर घुघे ने कहा कि भोसी पैटर्न ग्रामीणों, जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के बीच संयुक्त समन्वय का एक अच्छा उदाहरण है, यह जिले के अन्य गांवों और अन्य जगहों पर लागू करने योग्य है।
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