सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को जासूसी के खिलाफ साजिश के मामले में जस्टिस डीके जैन की अध्यक्षता में बनी कमेटी की ओर से सौंपी गई जांच रिपोर्ट आरोपित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आगे बढ़ने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है।
जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि सीबीआई को आरोपितों के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र रूप से सामग्री एकत्र करनी चाहिए और केवल जस्टिस डीएके जैन कमेटी की रिपोर्ट पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए।
इस मामले के एक आरोपित अधिकारी सिबी मैथ्यूज की ओर से पेश वकील अमित शर्मा और कालीश्वर राज ने कहा कि जस्टिस डीके जैन कमेटी की रिपोर्ट आरोपितों के साथ साझा नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि सीबीआई की ओर से रिपोर्ट साझा करने से इनकार करने से अभियुक्तों को सीबीआई की ओर से एफआईआर के खिलाफ जमानत जैसे उपायों का लाभ उठाने में परेशानी हो रही है। उन्होंने कहा कि सीबीआई जस्टिस डीके जैन की रिपोर्ट पर ही एफआईआर में ज्यादा भरोसा कर रही है। तब कोर्ट ने कहा कि उस रिपोर्ट पर कुछ नहीं होगा। रिपोर्ट आधार नहीं हो सकती है। रिपोर्ट केवल एक प्रारंभिक जानकारी है।
15 अप्रैल को कोर्ट ने इस मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जज जस्टिस डीके जैन की अध्यक्षता में बनी कमेटी की रिपोर्ट सीबीआई को सौंपी थी। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाने में लगे नंबी नारायणन को 1994 में केरल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने तकनीक विदेशियों को बेच दी। बाद में सीबीआई जांच में पूरा मामला झूठा निकला था। सुप्रीम कोर्ट ने 14 सितंबर, 2018 में नारायणन को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया था। नंबी नारायण ने अपनी अर्जी में केरल के पूर्व डीजीपी सिबी मैथ्यू और अन्य के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। सिबी मैथ्यू ने जासूसी कांड की जांच की थी।
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