बालक के साथ कुकर्म नहीं करते तो भरतपुर के एडीजे जितेंद्र सिंह गुलिया माफी मांगने घर नहीं जाते।

बालक के साथ कुकर्म नहीं करते तो भरतपुर के एडीजे जितेंद्र सिंह गुलिया माफी मांगने घर नहीं जाते।

बालक के साथ कुकर्म नहीं करते तो भरतपुर के एडीजे जितेंद्र सिंह गुलिया माफी मांगने घर नहीं जाते।
न्यायिक गरिमा को बनाए रखने के लिए सख्त कार्यवाही होना जरूरी है। पुलिस तो है ही ऐसी। डिप्टी एसपी परमेश्वर लाल यादव जैसे अधिकारी पुलिस की इमेज नहीं सुधरने देंगे।
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क्या कोई कल्पना कर सकता है कि एडीजे स्तर का न्यायिक अधिकारी एक 14 वर्षीय नाबालिग बालक के साथ कुकर्म करे? लेकिन ऐसा हुआ है। राजस्थान के भरतपुर के एसीबी कोर्ट के न्यायाधीश जितेंद्र सिंह गुलिया पर एक बालक ने ऐसा गंभीर आरोप लगाया है। न्यायिक गरिमा को तार तार करने वाले इस प्रकरण में शर्मनाक बात यह है कि न्यायाधीश गुलिया इसी बालक के साथ टेनिस खेलते थे।
आरोप है कि न्यायाधीश गुलिया ने एक बार नहीं बल्कि कई बार कुकर्म किया। एक बालक के साथ कुकर्म करने से न्यायाधीश गुलिया की मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसी मानसिकता वाला व्यक्ति कैसा न्याय करता होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। न्यायाधीश गुलिया ने अपने बचाव में अब बालक के परिजन पर ब्लैक मेलिंग का आरोप लगाया है। सवाल उठता है कि यदि गुलिया ने कोई अपराध नहीं किया तो वे बालक के घर जाकर परिजन से माफी क्यों मांग रहे हैं?
क्या किसी व्यक्ति में इतनी हिम्मत है कि वह एडीजे स्तर के न्यायिक अधिकारी पर ऐसा गंभीर आरोप लगाए? सवाल न्यायाधीश के सम्मान का नहीं है, बल्कि बालक की इज्जत का भी है। सब जानते हैं कि पिछले एक माह से राजस्थान में रेप और हत्या के तीन प्रकरणों में एडीजे स्तर के न्यायिक अधिकारियों ने ही आरोपियों को फांसी की सजा दी है। तीनों न्यायाधीशों ने बलात्कार को एक सामाजिक बुराई माना। लेकिन वहीं भरतपुर के न्यायाधीश गुलिया ने वो ही कृत्य किया, जिसे सामाजिक बुराई माना जाता है। हालांकि हाईकोर्ट ने गुलिया को निलंबित कर दिया है, लेकिन इससे काम नहीं चलेगा। चूंकि इस प्रकरण से न्यायिक व्यवस्था की छवि भी खराब हो रही है, इसलिए गुलिया को बर्खास्त किया जाना चाहिए। साथ ही फास्ट ट्रेक कोर्ट में मुकदमा चलाकर सख्त से सख्त सजा दिलाई जाए। न्यायिक अधिकारी समाज से तो उम्मीद करते हैं कि बलात्कार जैसी घटनाएं नहीं हो, लेकिन जो न्यायाधीश स्वयं ऐसे कृत्यों में शामिल हो उसका क्या? जहां तक पुलिस की छवि का सवाल है तो परमेश्वर लाल यादव जैसे डिप्टी एसपी पुलिस की छवि सुधरने नहीं देंगे।
भरतपुर के डिप्टी एसपी यादव को इस कुकर्म के प्रकरण में कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए थी, लेकिन यादव ने उल्टे बालक और उसके परिजन को ही धमकाया। जब पुलिस और न्यायाधीश मिल जाएं तो पीडि़त व्यक्ति का क्या होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। यह तो अच्छा हुआ कि यह मामला उजागर हो गया, नहीं तो न जाने कितने बालक कुकर्म के शिकार होते रहते। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस प्रकरण में सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। यह मामला राजस्थान पुलिस की छवि से भी जुड़ा है। राजस्थान पुलिस में तो एक से एक नायाब हीरे भरे पड़े हैं। ब्यावर के डिप्टी एसपी रहे हीरालाल सैनी का एक महिला कांस्टेबल के साथ स्विमिंग पुल का अश्लील वीडियो पूरे देश में चर्चित हुआ था।

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