नरेंद्र मोदी की आलोचना करने और अशोक गहलोत का भरोसा जीतने का इनाम मिला राजस्थान के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा को।

नरेंद्र मोदी की आलोचना करने और अशोक गहलोत का भरोसा जीतने का इनाम मिला राजस्थान के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा को।

नरेंद्र मोदी की आलोचना करने और अशोक गहलोत का भरोसा जीतने का इनाम मिला राजस्थान के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा को।
यदि गुजरात में भाजपा को हरा पाते हैं तो दो वर्ष बाद राजस्थान में भी मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी बनेगी।
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राजनीति में ऐसे बहुत से लोग होते हैं जो अपने प्रदेश में लंबे समय से सक्रिय रहते हैं, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में नहीं जा पाते। लेकिन राजस्थान के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा उन सफल राजनेताओं में से हैं, जिन्हें प्रदेश की राजनीति से निकल राष्ट्रीय राजनीति में जाने का अवसर मिल गया है। 7 अक्टूबर को ही रघु को गुजरात और केंद्र शासित प्रदेश दमन दीव और दादर नागर हवेली का कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया है। माना जा रहा है कि जल्द ही रघु को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त कर दिया जाएगा। गुजरात में अगले वर्ष ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। कांग्रेस के लिए गुजरात के चुनाव बहुत मायने रखते हैं, क्योंकि गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का गृह प्रदेश है। सवाल उठता है कि आखिर एक प्रदेश स्तरीय नेता को इतने महत्वपूर्ण राज्य का प्रभारी क्यों बनाया गया? राजनीतिक क्षेत्रों में इसके अलग अलग कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन रघु शर्मा की सबसे बड़ी उपलब्धि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करना है। सब जानते हैं कि कोरोना काल में चिकित्सा मंत्री के पद पर रहते हुए रघु शर्मा ने ऑक्सीजन और इंजेक्शन की कमी के लिए सीधे पीएम मोदी पर हमला किया। बाद में वैक्सीन की कमी बता कर राजस्थान में कई बार टीके लगाने का काम बंद कर दिया। यानी कोरोना काल में मोदी और केंद्री सरकार की आलोचना करने में रघु ने कोई कसर नहीं छोड़ी। एक और मोदी की आलोचना कर रघु ने कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार को खुश कर दिया तो दूसरी ओर राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भी भरोसा जीता। गत जुलाई में जब राजनीतिक संकट के समय गहलोत को सचिन पायलट पर हमले की जरुरत हुई तो पायलट का विरोध करने के लिए रघु शर्मा ही आगे आए। इससे पहले भी रघु ने पायलट की आलोचना की थी। रघु शर्मा का नाम आगे बढ़ाने में गहलोत की ही भूमिका रही। गहलोत की सिफारिश पर ही रघु शर्मा ने विगत दिनों दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद ही रघु का राष्ट्रीय राजनीति में जाना तय हो गया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि रघु को राजनीति में बड़ी जिम्मेदारी मिली है। अहमद पटेल के निधन के बाद गुजरात में कांग्रेस की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है। कांग्रेस के विधायक भ पार्टी छोड़ रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस को एकजुट करने की चुनौती भी रघु के सामने है। इस काम में रघु को अशोक गहलोत का मार्ग दर्शन ही काम आएगा। 2017 के चुनाव में गहलोत ही गुजरात के प्रभारी थे और तब कांग्रेस को 77 सीटें मिली थी, जबकि भाजपा को 99 सीटें हासिल हुई। यानी मुकाबला बराबर का था। अशोक गहलोत इस समय गुजरात के पड़ोसी राज्य राजस्थान के मुख्यमंत्री और उन्होंने अपने सबसे भरोसेमंद मंत्री को गुजरात का प्रभारी बनाया है। एक तरह से गहलोत के पास ही गुजरात चुनाव की कमान रहेगी। यह जरूरी नहीं कि रघु शर्मा राजस्थान में मंत्री पद से हटाया जाए। मंत्री पद बरकरार रखते हुए भी रघु शर्मा से गुजरात में काम करवाया जा सकता है। गहलोत के पास पहले आठ मंत्रियों और 38 विभागों का काम है। पिछले एक वर्ष से गहलोत इन 38 विभागों का काम कर ही रहे हैं। रघु शर्मा के विभागों का काम करने में भी गहलोत सक्षम है। सब जानते हैं कि गुजरात में पिछले 27 वर्षों से भाजपा का शासन है। यदि अगले वर्ष गुजरात में कांग्रेस की सरकार बनती है तो रघु शर्मा का राजनीतिक ग्राफ बहुत ऊंचा हो जाएगा। नवम्बर 2023 में राजस्थान में भी चुनाव होंगे और तब रघु शर्मा की मुख्यमंत्री पद पर सशक्त दावेदारी होगी। जब पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो फिर राजस्थान में रघु शर्मा क्यों नहीं? उतार चढ़ाव के बीच रघु शर्मा का राजनीतिक सफर सफल ही रहा है। 2008 से 2013 के कार्यकाल में जब अशोक गहलोत ने रघु को अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया, तब रघु शर्मा, गहलोत की आलोचना ही करते थे। तब गहलोत ने रघु को सिर्फ मुख्य सचेतक ही बनाया। 2013 में रघु शर्मा केकड़ी से चुनाव हार गए, लेकिन जनवरी 2018 में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने रघु को अजमेर के लोकसभा उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया और रघु शर्मा सांसद बने। रघु ने सांसद रहते हुए ही नवंबर 2018 मे केकड़ी में विधानसभा का चुनाव लड़ा। यह बात अलग है कि चिकित्सा मंत्री बनने के बाद रघु शर्मा गहलोत के सबसे भरोसेमंद मंत्री हो गए। राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता।

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