वर्ल्ड क्लास स्टेशन की तैयारी के बीच, मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझते यात्री

वर्ल्ड क्लास स्टेशन की तैयारी के बीच, मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझते यात्री

कोटा, 21 अप्रैल: एक तरफ भारतीय रेलवे अमृत भारत योजना के तहत कुछ चुनिंदा स्टेशनों को आधुनिक और विश्व स्तरीय बनाने में जुटा है, वहीं दूसरी ओर कोटा मंडल के कई रेलवे स्टेशनों पर यात्री आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। ट्रेनों की बढ़ती लंबाई के मुकाबले प्लेटफार्म छोटे होने के कारण यात्रियों को अपनी जान जोखिम में डालकर ट्रेनों में चढ़ना और उतरना पड़ रहा है।

कोटा मंडल के कई स्टेशनों पर प्लेटफार्म ट्रेनों की पूरी लंबाई के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसके चलते, जब लंबी ट्रेनें इन स्टेशनों पर रुकती हैं, तो कई डिब्बे प्लेटफार्म से बाहर, गिट्टियों पर खड़े होते हैं। दो मिनट के सीमित ठहराव में इन डिब्बों में चढ़ना यात्रियों, खासकर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाता है। गिट्टियों पर फिसलने का खतरा हमेशा बना रहता है और जरा सी असावधानी जानलेवा साबित हो सकती है। विकलांग यात्रियों के लिए तो इन डिब्बों में चढ़ना लगभग असंभव है, जबकि उनका डिब्बा अक्सर ट्रेन के आगे या पीछे के हिस्से में होता है।

पारसोली स्टेशन पर दिखा जोखिम भरा नज़ारा

बूंदी रेलखंड स्थित पारसोली स्टेशन पर ऐसा ही एक चिंताजनक दृश्य देखने को मिला। यहां एक लंबी ट्रेन के रुकने पर, एक महिला प्लेटफार्म न होने के कारण अपने छोटे बच्चे के साथ जान जोखिम में डालकर ट्रेन में चढ़ने को मजबूर हुई। गिट्टियों पर लड़खड़ाते हुए महिला ने पहले अपने बच्चे को डिब्बे में बैठे यात्रियों को पकड़वाया। इसके बाद, यात्रियों की मदद से ही उसने अपना सामान और फिर खुद ट्रेन में चढ़ी। यदि अन्य यात्री सहायता न करते, तो उस महिला का ट्रेन में सवार होना अत्यंत कठिन था।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि पारसोली स्टेशन पर ट्रेन का ठहराव केवल दो मिनट का है। यदि इस दौरान ट्रेन चल देती, तो संतुलन बिगड़ने से महिला और उसका बच्चा गंभीर दुर्घटना का शिकार हो सकते थे। महिला के ट्रेन में चढ़ने की तस्वीरों से इस समस्या की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

हर छोटे स्टेशन पर आम है ऐसी स्थिति

कोटा मंडल के लगभग हर छोटे स्टेशन पर ऐसे जोखिम भरे दृश्य आम हैं। रेलवे, जो अमृत भारत योजना के तहत करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, इन स्टेशनों पर प्लेटफार्मों की लंबाई बढ़ाने के लिए कुछ लाख रुपये खर्च करना शायद जरूरी नहीं समझती। यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा को ताक पर रखकर, केवल कुछ स्टेशनों को विश्व स्तरीय बनाने का यह दृष्टिकोण सवाल खड़े करता है।

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