कोटा। कोटा रेल मंडल में लोको पायलटों की भारी कमी के बावजूद, एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। एक लोको पायलट को पिछले 10 सालों में 10 महीने भी ट्रेन चलाने का काम नहीं दिया गया है। इसके बावजूद, वह सभी भत्तों और लाभों का फायदा उठा रहा है, जिससे रेलवे को वित्तीय नुकसान हो रहा है। लोको पायलटों की कमी के कारण अन्य कर्मचारियों को समय पर छुट्टी और आराम नहीं मिल पा रहा है।
कर्मचारी दिसंबर 2015 में लोको पायलट के पद पर पदोन्नत हुआ था। पदोन्नति के कुछ ही महीनों बाद, अधिकारियों की मेहरबानी से इसे संरक्षा सलाहकार बना दिया गया, जबकि इस पद के लिए रेलवे बोर्ड के नियमों के अनुसार कम से कम 10 साल का अनुभव या 5 लाख किलोमीटर ट्रेन चलाने का अनुभव अनिवार्य है। सामान्यतः इस पद पर केवल एक सीएलआई (चीफ लोको इंस्पेक्टर) को ही नियुक्त किया जाता है।
इस लोको पायलट ने बिना किसी विशेष योग्यता के लगातार 8 साल तक इस पद पर काम किया, जबकि इस पद का कार्यकाल अधिकतम 3 साल होता है। कर्मचारियों के भारी विरोध के बाद ही उसे इस पद से हटाकर वापस लोको पायलट बनाया गया।
पद से हटाए जाने के बाद भी अधिकारियों की मेहरबानी जारी रही। इस लोको पायलट को अभी तक एक बार भी मोतीपुरा नहीं भेजा गया है, जबकि सभी रनिंग स्टाफ का दो-दो महीने के लिए मोतीपुरा में तबादला किया गया है। उसे फिर से कंट्रोल ऑफिस में तैनात कर दिया गया, जहाँ उसकी अनुभवहीनता के कारण रेल संचालन में बाधा भी आई।
रनिंग कर्मचारियों ने इस पूरे मामले से मंडल मुखिया को अवगत कराया था, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। आशंका जताई जा रही है कि सभी नियमों को दरकिनार करते हुए इस लोको पायलट को फिर से संरक्षा सलाहकार बनाया
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