नेताजी के आगे नतमस्तक रेल प्रशासन - बाल शिविर का शेड्यूल किया जारी

नेताजी के आगे नतमस्तक रेल प्रशासन - बाल शिविर का शेड्यूल किया जारी

कोटा रेल प्रशासन पर नियमों की अनदेखी का आरोप, नेताजी के आगे झुके अधिकारी

कोटा: कोटा मंडल रेल प्रशासन पर नियमों को ताक पर रखकर एक प्रभावशाली व्यक्ति के आगे झुकने का आरोप लगा है। प्रशासन ने अपने ही जारी किए नियमों का उल्लंघन करते हुए उक्त व्यक्ति के दो बच्चों को बाल शिविर में जाने की अनुमति दे दी है।

रेलवे द्वारा स्टाफ बेनिफिट फंड से हर साल रेल कर्मचारियों के बच्चों को घुमाने के लिए ले जाया जाता है। इस बार शिविर देहरादून और मसूरी जा रहा है। इस शिविर में लगभग 37 बच्चों को ले जाने की योजना थी।

प्रशासन ने पहले नियम जारी किया था कि एक कर्मचारी का केवल एक बच्चा शिविर में जा सकता है। नियम में कहीं भी यह उल्लेख नहीं था कि कम संख्या होने पर एक कर्मचारी के दो बच्चों को अनुमति दी जाएगी। कर्मचारियों का कहना है कि यदि ऐसा कोई नियम होता, तो कई कर्मचारी अपने दो बच्चों के लिए आवेदन करते।

आरोप है कि अधिकारियों ने इस मामले में नियमों का उल्लंघन किया है। 7 दिन पहले इस मनमानी का खुलासा होने और कई कर्मचारियों द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद, अधिकारियों ने बिना किसी संशोधन के शिविर का कार्यक्रम जारी कर दिया।

अधिकारियों पर कल्याण निरीक्षक पर भी मेहरबानी दिखाने का आरोप है। ड्यूटी पर जाने वाले कल्याण निरीक्षकों के बच्चों को भी शिविर में जाने वाली सूची में शामिल किया गया है। कर्मचारियों का कहना है कि ऐसी स्थिति में कल्याण निरीक्षक अन्य बच्चों की देखभाल कितनी गंभीरता से कर पाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है।

कर्मचारियों ने बताया कि कई और बच्चे भी शिविर में जाना चाहते थे, लेकिन उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गई। सोशल मीडिया के माध्यम से सूची में गड़बड़ी की खबर मिलने पर उन्हें इस शिविर के बारे में पता चला। कर्मचारियों ने यह भी बताया कि कोटा मंडल के 100 में से अधिकांश स्टेशनों पर इस शिविर की आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं थी। इसलिए, शिविर में जाने वाले लगभग सभी बच्चे कोटा शहर के ही हैं।

कर्मचारियों का आरोप है कि कई बच्चों के भरे हुए फॉर्म उनके पर्यवेक्षकों के पास पड़े रहे। इसके अलावा, कई कर्मचारी विभिन्न कारणों से समय पर अपना फॉर्म जमा नहीं करा सके। कर्मचारियों का कहना है कि कम संख्या में फॉर्म आने के बावजूद, अधिकारियों ने अंतिम तिथि को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा। यदि तारीख बढ़ाई जाती, तो निश्चित रूप से कुछ और फॉर्म जमा हो जाते, लेकिन ऐसी स्थिति में अधिकारियों को अपनी मनमानी करने का मौका नहीं मिलता। संभवतः यही कारण था कि कम फॉर्म आने के बावजूद तारीख आगे नहीं बढ़ाई गई और न ही सभी स्टेशनों पर शिविर की जानकारी पहुंचाई गई।

इस घटना ने रेल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं और कर्मचारियों में असंतोष है।

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