जयपुर, 11 अप्रैल: राजस्थान के चिकित्सा विभाग में चल रही भर्ती प्रक्रिया बेरोजगार युवाओं के लिए एक बड़ी उलझन और नाराजगी का कारण बन गई है। विभाग में स्थायी पदों पर तो बिना किसी परीक्षा के भर्तियां पूरी की जा रही हैं, जबकि अस्थायी यानी संविदा पदों के लिए लिखित परीक्षा अनिवार्य कर दी गई है। इस दोहरे मापदंड से प्रदेश के बेरोजगार आक्रोशित हैं और उन्होंने जल्द ही आंदोलन की चेतावनी दी है।
हाल ही में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य परिवार कल्याण संस्थान (सीफू) के माध्यम से 8 विभिन्न कैडर की स्थायी भर्ती बिना किसी लिखित परीक्षा के संपन्न हुई। वहीं, अब विभाग 22 कैडर के 8,256 संविदा पदों पर भर्ती के लिए कर्मचारी चयन बोर्ड के माध्यम से लिखित परीक्षा आयोजित करने जा रहा है। बेरोजगारों का कहना है कि यह नीति समझ से परे है और उनके साथ अन्याय किया जा रहा है।
विभाग का तर्क और बेरोजगारों के सवाल:
चिकित्सा विभाग का तर्क है कि जो स्थायी भर्तियां बिना परीक्षा के की गईं, वे अनुभवी संविदा कर्मियों के लिए थीं। हालांकि, बेरोजगारों का सवाल है कि यदि ऐसा है तो नए पदों पर संविदा भर्तियां क्यों की जा रही हैं? उनका मानना है कि यह भर्ती नीति न तो विभाग की दीर्घकालिक जरूरतों को पूरा कर रही है और न ही प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को न्याय दिला रही है। अब यह देखना होगा कि सरकार इस विरोधाभास को कैसे सुलझाती है।
बेरोजगारों में बढ़ता असंतोष:
पिछली सरकार द्वारा संविदा कर्मियों को बिना परीक्षा स्थायी करने के फैसले का भी बेरोजगारों ने पुरजोर विरोध किया था। अब नई संविदा भर्तियों की घोषणा ने उनके असंतोष को और बढ़ा दिया है। ऑल इंडिया मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन यूनाइटेड के अध्यक्ष भरत बेनीवाल ने इस दोहरे मापदंड को विभाग और बेरोजगार दोनों के लिए नुकसानदेह बताया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की है कि संविदा भर्तियों को तत्काल बंद कर स्थायी भर्ती की व्यवस्था लागू की जाए।
भरत बेनीवाल ने कहा, "चिकित्सा विभाग की भर्तियों में लंबे समय से इस तरह की चूक सामने आ रही है। इस मामले में अब मुख्यमंत्री को चिकित्सा विभाग में संविदा भर्ती बंद करने के संबंध में चर्चा हुई है। संविदा भर्तियों से विभाग के साथ बेरोजगारों को भी काफी नुकसान हो रहा है।"
संविदा कर्मियों का दर्द अनसुना:
प्रदेश में 28,000 से अधिक प्रेरक पिछले 20 सालों से स्थायी नौकरी का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन सरकार के वादों के बावजूद उन्हें कोई राहत नहीं मिली है। वहीं, स्कूलों में खाना बनाने वाली महिलाओं को आज भी न्यूनतम मजदूरी तक नहीं मिल रही है और उनके मानदेय में बढ़ोतरी और स्थायी नौकरी के दावे अधूरे ही रहे हैं।
स्थायी बनाम संविदा: भर्ती का उल्टा खेल:
आंकड़े बताते हैं कि चिकित्सा विभाग में पिछले 10 वर्षों में स्थायी भर्ती के लिए केवल दो बार परीक्षा आयोजित की गई है, जबकि संविदा भर्ती के लिए 8 बार लिखित परीक्षा ली गई है। नई संविदा भर्ती में सीएचओ, संविदा नर्स, डाटा एंट्री ऑपरेटर, फार्मा सहायक, मेडिकल लैब टेक्नीशियन, फिजियोथेरेपिस्ट सहायक, बायोमेडिकल इंजीनियर जैसे 22 पद शामिल हैं। विडंबना यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने संविदा भर्तियों का विरोध किया था, लेकिन अब उसी नीति पर चलने से बेरोजगारों में भारी आक्रोश है।
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