Rajasthan : कांग्रेस सरकार के खिलाफ होने वाले जन आंदोलन में अब राजस्थान भाजपा का कोई चेहरा नहीं होगा।

Rajasthan : कांग्रेस सरकार के खिलाफ होने वाले जन आंदोलन में अब राजस्थान भाजपा का कोई चेहरा नहीं होगा।

भाजपा हाईकमान के इस निर्णय से कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार होगा।

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राजस्थान में भाजपा संगठन और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के बीच फंसे आम कार्यकर्ताओं के लिए राहत की बात है कि भाजपा के अधिकृत बैनर में राजस्थान के किसी नेता को स्थान नहीं मिला है। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने राजस्थान में अगले एक वर्ष कांग्रेस की गहलोत सरकार के खिलाफ जन आंदोलन करने का निर्णय लिया है। गहलोत सरकार के चार वर्ष पूर्ण होने पर 29 नवंबर से जन आक्रोश यात्रा प्रदेशभर में निकाली जाएगी, लेकिन यह यात्रा राजस्थान के किसी नेता के नेतृत्व में नहीं निकलेगी। भाजपा हाईकमान ने इस यात्रा के लिए जो अधिकृत बैनर जारी किया है, उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का ही फोटो है। यानी जन आक्रोश यात्रा के अधिकृत बैनर में प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, भाजपा विधायक दल के नेता गुलाबचंद कटारिया और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे तक के फोटो नहीं है। इससे भाजपा हाईकमान ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि राजस्थान में अब भी पीएम मोदी का ही चेहरा होगा। एक वर्ष बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में किसी एक नेता को महत्व नहीं मिलेगा। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को भी अब यह अहसास हो गया है कि आम कार्यकर्ता भाजपा संगठन और पूर्व सीएम राजे के बीच फंस हुआ है। जो कार्यकर्ता वसुंधरा राजे के कार्यक्रमों में जाते रहे, उन्हें संगठन में कोई महत्व नहीं मिल रहा है। हालांकि राष्ट्रीय नेतृत्व ने कभी वसुंधरा राजे के कार्यक्रमों को उचित नहीं माना, लेकिन फिर भी राजे के कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं के साथ साथ विधायक और सांसद शामिल होते रहे। लेकिन अब राजस्थान की कमान भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने संभाल ली है। गहलोत सरकार के विरुद्ध विधानसभा चुनाव तक जन आंदोलन होते रहेंगे। जन आक्रोश यात्रा का एक बड़ा कार्यक्रम जयपुर में भी होगा। इस कार्यक्रम में पीएम मोदी के आने की संभावना है। लेकिन यह कार्यक्रम गुजरात चुनाव के परिणाम के बाद होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद सतीश पूनिया ने संगठन को सक्रिय बनाए रखा, लेकिन पूर्व सीएम राजे के कार्यक्रमों और समर्थकों ने पूनिया को सर्वमान्य नेता नहीं बनने दिया। पूनिया ने कहा कि भी है कि वे संगठन के कार्यकर्ता हैं। संगठन जो भूमिका देगा, उसको निभाएंगे। हालांकि भाजपा की राजनीति में वसुंधरा राजे का कद बहुत बड़ा था, लेकिन उन्होंने अपनी सारी ताकत राजस्थान में लगाए रखी। गहलोत सरकार में राजे के चार साल अपने वजूद को दिखाने में ही गुजर गए। अब राजे के मुकाबले में जगदीप धनखड़, ओम बिरला, गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुनराम मेघवाल जैसे कई नेता खड़े हो गए हैं। भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के नाते वसुंधरा राजे यदि राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहती तो आज उनका कद बहुत ऊंचा होता। राजस्थान की राजनीति में तो राजे कभी भी लौट सकती थीं। पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह भी राजे के प्रशंसक रहे हैं, लेकिन अब पहले वाली बात नहीं है। जहां विधानसभा चुनाव का सवाल है तो कांग्रेस अपने आंतरिक विवादों में ही उलझी हुई है, चुनाव तक अशोक गहलोत मुख्यमंत्री रहेंगे या नहीं यह भी पता नहीं है।