Kota: कोटा में बंद 300 उद्योगों को शुरू करने की कौन देगा गारंटी, जनता से छिनता रहा रोजगार, नेताओं की बढ़ती गई संपत्ति
Kota: कोटा में बंद 300 उद्योगों को शुरू करने की कौन देगा गारंटी, जनता से छिनता रहा रोजगार, नेताओं की बढ़ती गई संपत्ति

Kota: कोटा में बंद 300 उद्योगों को शुरू करने की कौन देगा गारंटी, जनता से छिनता रहा रोजगार, नेताओं की बढ़ती गई संपत्ति

Kota: कोटा में बंद 300 उद्योगों को शुरू करने की कौन देगा गारंटी, जनता से छिनता रहा रोजगार, नेताओं की बढ़ती गई संपत्ति

कोटा। कभी कानपुर की तरह औद्योगिक क्षेत्र में पहचान रखने वाला कोटा आज उद्योग-धंधों के लिए तरस रहा है। पिछले 20 सालों में कोटा में 300 से अधिक छोटे-बड़े उद्योग धंधे पूरी तरह बंद हो चुके हैं। एक के बाद एक दम तोड़ते इन उद्योग-धंधों को बचाने के लिए सरकारें कभी गंभीर नहीं आईं। इसका नतीजा रहा कि लोगों का रोजगार छिनता रहा और नेताओं की संपत्ति बढ़ती चली गई। अब कोई भी नेता अपने भाषणों में बंद हो चुके इन उद्योग-धंधों को दुबारा शुरु करने की घोषणा नहीं कर रहा। तमाम लोक लुभावन वादे करने वाली में से एक भी पार्टी इन उद्योग-धंधों को दुबारा शुरु करने की गारंटी आखिर क्यों नहीं दे रही। जनता द्वारा वोट मांगने आने वाले नेताओं से यह सवाल जरुर पूछा जाना चाहिए। क्यों कि इसके बाद नेता अगले पांच साल से पहले आपके पास नहीं आने वाले। उद्योग-धंधों से ज्यादा जरुरी नेताओं का अहम रहा। एक-दूसरे को नीचा दिखाने में व्यस्त हाड़ौती के नेताओं ने इस सबसे बड़ मामले पर भी कभी एक मंच पर आना भी जरुरी नहीं समझा।
एक-एक कर तोड़ा दम
1970 के अपने सुनहरे दौर के बाद कोटा में एक-एक कर उद्योग धंधे दम तोड़ते रहे। इनमें 1975 में गोपाल मिल, 1986 में ओरिएंटल पॉवर केबल लिमिटेड एवं कोटा प्रीमियर बोर्ड, 1997 में जेके फैक्ट्री की चारों यूनिट, 2003 में केशवराय पाटन शुगर मिल, 2012 में सेमटेल ग्लास एवं कलर इंडस्ट्री तथा 2017 में आईएल जेसे बड़े उद्योग बंद हो गए। इसके अलावा प्रीमियर केबल इंडस्ट्री, नागपाल वेफर्स मिल, स्टेशन की माचिस फैक्ट्री, 20 राइस मिलें, 18 दाल मिलें, पोहा मिलें, 5 सोया प्लांट तथा 250 से अधिक स्टोन फैक्ट्री भी नहीं चली। इतनी बड़ी संख्या उद्योग-धंधे बंद होने पर भी सरकारें चुप बैठी तमाशा देखती रहीं। सरकारों की ओर से इन उद्योग-धंधों को बचाने के लिए कभी कोई सार्थक और गंभीर प्रयास नजर ही नहीं आए। इसका असर यह रहा कि नमकीन बनाने की बड़ी कंपनी बालाजी वेफर्स सहित कई फर्म कोटा से लौट गईं।
जन आंदोलन का नहीं हुआ असर
इतनी बड़ी संख्या में उद्योग-धंधे बंदे होने से मजदूरों, कर्मचारी संगठनों, व्यापारिक और औद्योगिक संगठन और शहर वासियों ने खूल जन आंदोलन किए। यह आंदोलन सालों तक लगातार चलते रहे। इन आंदोलन के चलते नए रिर्काड भी बने। इन आंदोलनों के बीच ही गरीबी और कर्ज झेलते-झेलते तंग आ चुके कई मजदूर धीरे-धीरे काल के गाल में समाते चले गए। जीवन बचाने के लिए कई मजदूर रिक्शा चलाने, ऑटो चलाने, सब्जी बेचने, दुकानों पर काम करने तथा अन्य धंधों से जुड़ गए। उद्योग-धंधों के साथ ही देखते ही देखते हजारों परिवार उजड़ते चले गए। लेकिन सरकार पर न जन आंदोलनों का असर हुआ और न ही मजदूरों की हालत देखकर नेता पिघले। वह तो गनिमत रही की समय रहते उभरी कोचिंग इंडस्ट्री ने शहर को संभाल लिया। अन्यथा हालात और भी ज्यादा बूरे होते। अब कुछ ताकतें इन कोचिंग संस्थानों के भी पिछे पड़ गई हैं।