तो क्या कांग्रेस शासन में विधानसभा में राज्यपाल कलराज मिश्र से झूठ बुलवाया गया।
तो क्या कांग्रेस शासन में विधानसभा में राज्यपाल कलराज मिश्र से झूठ बुलवाया गया।

Rajasthan: तो क्या कांग्रेस शासन में विधानसभा में राज्यपाल कलराज मिश्र से झूठ बुलवाया गया।

तो क्या कांग्रेस शासन में विधानसभा में राज्यपाल कलराज मिश्र से झूठ बुलवाया गया।
दो निजी यूनिवर्सिटी के मामले में दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही होनी चाहिए। क्योंकि यह मामला विधानसभा की पवित्रता से जुड़ा हुआ है।
मुख्यमंत्री भजनलाल का शांत स्वभाव। किरोड़ी, बालकनाथ आदि कई विधायक राज्यपाल का अभिभाषण शुरू होने के बाद सदन में आए।
वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत भी विधानसभा से नदारद रहे। अलबत्ता सचिन पायलट ने प्रभावी उपस्थिति दर्ज करवाई।
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19 जनवरी को नवगठित राजस्थान विधानसभा के सत्र के दूसरे चरण में राज्यपाल कलराज मिश्र का भाषण हुआ। राज्यपाल के संबोधन के साथ ही विधानसभा की कार्यवाही विधिवत तौर पर होती है। प्रदेश में सरकार बदलने के बाद यह पहला अवसर रहा जब राज्यपाल ने अपना भाषण पढ़ा। राज्यपाल ने अपने अभिभाषण में कांग्रेस के पिछले शासन को भ्रष्टाचारी तो बताया ही साथ ही आरोप लगाया कि कांग्रेस शासन में जनहित का कोई काम नहीं हुआ। पूरे पांच साल अंधेर नगरी चौपट राजा की व्यवस्था कायम रही। राज्यपाल ने कांग्रेस सरकार की एक एक योजना की पोल खोली। यहां तक कहा गया कि ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट पर कांग्रेस सरकार ने राजनीति की, चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना से लेकर पेपर लीक तक के मामलों पर राज्यपाल ने कठोर टिप्पणियां की। सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस के शासन में राज्यपाल से झूठ बुलवाया गया। सब जानते हैं कि 19 जनवरी को राज्यपाल ने जो भाषण दिया, उसके उलट कांग्रेस शासन में राज्यपाल कलराज मिश्र ही कांग्रेस की योजनाओं की प्रशंसा करते रहे। तब राज्यपाल ने न केवल कांग्रेस के शासन को जनकल्याणकारी बताया बल्कि योजनाओं की भी जमकर तारीफ की। यह सही है कि राज्यपाल विधानसभा में वही भाषण पढ़ते हैं जो निर्वाचित सरकार तैयार कर देती है। कांग्रेस शासन में गहलोत सरकार का और अब भाजपा शासन में भजनलाल सरकार का तैयार भाषण पढ़ा। लोकतंत्र में राज्यपाल का पद संवैधानिक पद है। सवाल उठता है कि क्या इस पद पर बेठे व्यक्ति को अपने विवेक का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है? यदि कांग्रेस का पिछला शासन अंधेर नगरी चौपट राजा वाला था तो फिर राज्यपाल ने उस शासन को कल्याणकारी केसे बताया? अच्छा हो कि राज्यपाल के अभिभाषण की परंपरा में सुधार किया जाए। राज्यपाल का अभिभाषण विरोधाभासी होगा तो फिर राज्यपाल पद की गरिमा पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। प्रदेश की जनता भ्रमित है कि राज्यपाल ने कांग्रेस शासन में जो बात कही वह सही थी या झूठी।
अधिकारियों पर कार्यवाही हो:
19 जनवरी को विधानसभा में जोधपुर के व्यास विद्यापीठ विश्वविद्यालय और हिंडौन के सौरभ विश्वविद्यालय विधेयक पर भी चर्चा हुई। विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने बताया कि यह दोनों विश्वविद्यालयों की मान्यता देने के लिए पिछली कांग्रेस सरकार में विधेयक स्वीकृत किया गया था। इन विधेयकों की स्वीकृति के लिए राज्यपाल को भेजा गया, लेकिन राज्यपाल ने दोनों विधेयकों को खामियां बताकर लौटा दिया है। अध्यक्ष देवनानी ने उस रिपोर्ट को भी पढ़ा, जिसमें दोनों विधेयकों की कमियां बताई गई। राज्यपाल मिश्र ने इन विधेयकों पर अपने स्तर पर जो जानकारी जुटाई गई उसमें माना गया कि अधिकारियों ने दूसरे शिक्षण संस्थान के भवनों के इन विश्वविद्यालयों का बता दिया। विधेयक में बताई गई जमीन का रिकॉर्ड भी राज्यपाल की जांच में सही नहीं माना गया। राज्यपाल ने अपनी जांच रिपोर्ट में माना कि यह दोनों संस्थाएं विश्वविद्यालय बनाने के लायक नहीं है। इतना ही नहीं राज्यपाल ने दोनों शिक्षण संस्थाओं द्वारा दी गई जानकारियों की जांच कराने की सलाह भी दी है। राज्यपाल की जांच रिपोर्ट वाकई गंभीर है। सवाल उठता है कि जिन अधिकारियों ने प्रस्ताव को विधानसभा में रखवाया उन्होंने किस तरह जांच की। किसी भी निजी शिक्षण संस्थान को विश्वविद्यालय का दर्जा देने के लिए विधानसभा में विधेयक प्रस्तुत किया जाता है, तब संबंधित विभाग के अधिकारी विस्तृत जांच पड़ताल करते हैं। सभी मापदंडों पर खरा उतरने के बाद ही प्रस्ताव को विधानसभा में रखा जाता है, लेकिन राज्यपाल की जांच रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछली सरकार ने विधेयक के नाम पर झूठ का पुलिंदा रख दिया गया। अब जब राज्यपाल ने दोनों विधेयकों को लौटा दिया है,तब सरकार की जिम्मेदारी है कि उन अधिकारियों की भूमिका की जांच करवाई जाए। जिन्होंने व्यास विद्यापीठ विश्वविद्यालय और सौरभ विश्वविद्यालय का प्रस्ताव तैयार किया।
भजनलाल का शांत स्वभाव:
19 जनवरी को विधानसभा में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का शांत स्वभाव देखने को मिला। सीएम शर्मा लगातार दो घंटे तक विधानसभा में बैठे रहे। राज्यपाल के आगमन पर भी शर्मा ने शालीनता बनाए रखी। अधिकारियों ने जो सलाह दी उसकी पालना सीएम की ओर से की गई। विधानसभा में सीएम शर्मा अकेले ही बैठे रहे। हालांकि उनके पास दो मंत्रियों के बैठने का स्थान खाली था, लेकिन डिप्टी सीएम दीया कुमार और डॉ. प्रेमचंद बैरवा प्रथम पंक्ति में अगली सीट पर बेठे रहे। सीएम ने किसी मंत्री और विधायक की ओर भी इशारा नहीं किया और न ही किसी को दिशा निर्देश दिए। सीएम शर्मा राज्यपाल के साथ ही सदन में आ गए जबकि कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा, विधायक बाबा बालक नाथ जैसे कई विधायक राज्यपाल का अभिभाषण शुरू होने के 15 मिनट बाद सदन में आए। किरोड़ी लाल मीणा पहले तो पीछे की पंक्ति में बैठे रहे, लेकिन बाद में मंत्रियों के लिए निर्धारित सीट पर आकर बैठे। बाबा बालकनाथ आखिरी पंक्ति में बैठे रहे। ऐसा प्रतीत हुआ कि किरोड़ी लाल मीणा विभाग वितरण और बाबा बालक नाथ मंत्री न बनाए जाने से नाखुश हैं। अलबत्ता उद्योग मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने पूरे उत्साह के साथ उपस्थिति दर्ज करवाई।
राजे और गहलोत नदारद:
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे भी विधायक निर्वाचित हुए हैं, लेकिन नवगठित विधानसभा के प्रथम सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण के समय गहलोत और राजे नादर रहे। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट पूरी जिम्मेदारी के साथ सदन में मौजूद रहे। पायलट की लगातार उपस्थिति कांग्रेस की राजनीति में चर्चा का विषय बनी हुई है।
Report By S.P.MITTAL