मूक बधिर बालिका से ज्यादती के प्रकरण में आखिर मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान करवाने में इतना विलंब क्यों?

मूक बधिर बालिका से ज्यादती के प्रकरण में आखिर मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान करवाने में इतना विलंब क्यों?
घटना के 20 दिन बाद भी आरोपी पकड़े नहीं जा सके हैं। प्राइवेट पार्ट की हो चुकी है प्लास्टिक सर्जरी।
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राजस्थान के अलवर शहर में गत 11 जनवरी को एक मूक बधिर बालिका के साथ ज्यादती की जो घटना हुई उसमें अब पीड़िता के पिता का कहना है कि उसे राजस्थान पुलिस पर भरोसा नहीं है। इसलिए घटना की जांच सीबीआई से करवाई जाए। पिता का आरोप है कि पुलिस और प्रशासन के अधिकारी रेप के सबूतों को समाप्त कर रहे हैं और उनके परिवार को पैसे और भूखंड देने का लालच दे रहे हैं। पिता ने अलवर के कलेक्टर नथमल पहाडिय़ा पर गंभीर आारेप लगाए हैं। गंभीर बात तो यह है कि पिता ने ऐसे आरोप तब लगाए जब अलवर के पुलिस अधीक्षक के पद पर तेजस्वनी गौतम विराजमन है। महिला एसपी होने के बाद भी ज्यादती की शिकार मूक बधिर बालिका को न्याय नहीं मिल पा रहा है। घटना के 20 दिन गुजर जाने के बाद भी राजस्थान की पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर सकी है। पुलिस की जांच में ढिलाई का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पीड़िता के बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज करवाने में लगातार विलंब किया जा रहा है। पुलिस का कहना है कि बयान के लिए अदालत में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर रखा है। सवाल उठता है कि क्या अलवर का प्रकरण ऐसा है कि जिसमें मजिस्ट्रेट की सहमति का इंतजार किया जाए? क्या पुलिस का बड़ा अधिकारी जिला न्यायाधीश से संपर्क कर बयान के लिए किसी मजिस्ट्रेट की नियुक्ति नहीं करवा सकता? पुलिस को विलंब करना है, इसलिए मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान के मामले में सामान्य प्रक्रिया अपनाई गई है। पुलिस को यदि अपनी जांच की ोल खुलने का डर नहीं होता तो अब तक पीड़िता के बयान मजिस्ट्रेट के सामने करवा दिए जाते। पीड़िता के पिता का आरोप है कि पुलिस ने खाली कागजों पर पीड़िता के हस्ताक्षर करवा कर बयान अपनी मर्जी से लिखे है। एसपी तेजस्वनी गौतम का कहना है कि पुलिस को दिए गए बयान में पीड़िता ने बलात्कार की बात नहीं की है। जबकि पिता का कहना है कि उनकी मूक बधिर बेटी के साथ रेप हुआ है। 11 जनवरी को मूक बधिर बालिका जब लहूलुहान स्थिति में अलवर में मिली थी, तब पुलिस ने इलाज के लिए उसे जयपुर के सरकार जेके लोन अस्पताल में भर्ती करवाया था। चूंकि बालिका के प्राइवेट पार्ट में जख्म थे, इसलिए प्राइवेट पार्ट की प्लास्टिक सर्जरी की गई। ऐसे में सवाल उठता है कि अब रेप की पुष्टि कैसे होगी? बालिका के पिता का कहना है कि पुलिस उनके घर से बालिका के पुराने कपड़े भी ले गई। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जांच के लिए पुराने कपड़ों को रखा गया हो। यानी घटना के समय जो कपड़े बालिका ने पहन रखे थे, उन्हें जांच में शामिल नहीं किया।