रीट परीक्षा में तकनीकी शिक्षा मंत्री सुभाष गर्ग के दखल पर आखिर स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा क्यों चुप रहे?

रीट परीक्षा में तकनीकी शिक्षा मंत्री सुभाष गर्ग के दखल पर आखिर स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा क्यों चुप रहे?
डीपी जारोली ने शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष पद पर रहते हुए वो ही किया जो सुभाष गर्ग ने कहा।
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राजस्थान में राज्य स्तरीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (रीट) में हुए घोटालों की जांच सीबीआई से करवाने की मांग वाली याचिका पर 8 फरवरी को हाईकोर्ट जयपुर में सुनवाई होनी है। यदि हाईकोर्ट ने सीबीआई से जांच के आदेश दे दिए तो अशोक गहलोत के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस सरकार पर संकट आ जाएगा। अभी तक राज्य की एसओजी ने जो जांच की है, उसमें रीट का पेपर परीक्षा से पूर्व ही परीक्षार्थियों तक पहुंचने की बात साबित हो चुकी हैै। एसओजी ने परीक्षा कार्य से जुड़े कई व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया है तो सरकार ने परीक्षा आयोजित करने वाले माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डीपी जारोली को बर्खास्त कर दिया है, लेकिन अब जो खबरें सामने आ रही है, उसमें रीट परीक्षा में तकनीकी शिक्षा मंत्री सुभाष गर्ग के जबर्दस्त दखल के सबूत मिल रहे हैं। डीपी जारोली ने सुभाष गर्ग की सिफारिश पर ही प्रदीप पाराशर और रामकृपाल मीणा को जयपुर जिले का कॉर्डिनेटर बनाया था। जयपुर के शिक्षा संकुल से 25 सितंबर यानी परीक्षा से एक दिन पहले पाराशर और मीणा ने ही एक लिफाफे से पेपर चुराया। रीट परीक्षा में सुभाष गर्ग के दखल का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2011 में जब सुभाष गर्ग माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष थे, तब परीक्षा के पेपर कोलकाता कि जिस प्रिंटिंग प्रेस से पेपर छपवाए उसी प्रेस से जारोली ने 2021 की रीट परीक्षा के प्रश्न पत्र भी छपवाए। इसी प्रकार बोर्ड अध्यक्ष रहते हुए सुभाष गर्ग ने अजमेर की कम्प्यूटर फर्म माइक्रोनिक कम्प्यूटर्स से ओएमआर शीट का काम करवाया, उसी फर्म से ही जारोली ने रीट परीक्षा के आवेदन फार्म से लेकर ओएमआर शीट जांचने का काम करवाया। यानी जारोली ने वो ही किया जो सुभाष गर्ग ने कहा। सब जानते हैं कि रीट परीक्षा आयोजित करने वाला माध्यमिक शिक्षा बोर्ड स्कूली शिक्षा विभाग के अधीन आता है। 26 सितंबर 2021 को हुई रीट परीक्षा के समय गोविंद सिंह डोटासरा स्कूली शिक्षा मंत्री थे। सवाल उठता है कि सुभाष गर्ग के दखल पर आखिर डोटासरा चुप क्यों रहे? ऐसी कौन सी मजबूरियां थी, जिनके कारण डोटासरा को तकनीकी शिक्षा मंत्री सुभाष गर्ग का दखल बर्दाश्त करना पड़ा। खुद शिक्षा विभाग ने माना है कि बोर्ड अध्यक्ष डीपी जारोली ने शिक्षा विभाग के आदेशों की अवहेलना की है। जब डोटासरा को यह पता था कि शिक्षा बोर्ड आदेशों की अवहेलना कर रहा है, तब डोटासरा क्यों चुप रहे? रीट परीक्षा में घोटालों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नियमों के मुताबिक राजस्थान की किसी फर्म को ओएमआर शीट जांचने का काम नहीं दिया जा सकता, लेकिन शिक्षा बोर्ड ने अजमेर की फर्म को ही कम्प्यूटर का सारा कार्य ठेके पर दे दिया। सीबीआई की जांच होगी तो सरकार के कई मंत्रियों के चेहरे से नकाब उतार जाएगी। यह सही है कि कांग्रेस शासन में एसओजी सरकार के मंत्रियों को जांच के दायरे में शामिल नहीं कर सकती है, लेकिन यदि सीबीआई जांच हुई तो कई प्रभावशाली लोग कानून की गिरफ्त में होंगे। चूंकि रीट परीक्षा में खुलकर नियमों की अनदेखी हो रही थी, इसलिए अजमेर में भी मनमाना रवैया अपनाया गया। अजमेर के सरकारी कॉलेज में रीट का परीक्षा केंद्र बनाकर कॉलेज के लेक्चरारों को ही केंद्र का आब्र्जवर बना दिया। जबकि आब्र्जवर बाहर के होने चाहिए। उन्हें आब्र्जवर बनाया गया जो तकनीकी शिक्षा मंत्री सुभाष गर्ग के राजीव गांधी स्टडी सर्किल से जुड़े थे। इस संस्था से जुड़ी और अजमेर के सरकारी कॉलेज की सह आचार्य सुनीता पचौरी को अजमेर का रीट परीक्षा कॉर्डिनेटर बना दिया। पचौरी ने अपने परिवार की शिक्षण संस्था सुनीता आईटीआई में ही रीट का परीक्षा केंद्र बना दिया। इतना ही नहीं पचौरी ने अपने रिश्तेदार को ही इस घर के परीक्षा केंद्र का पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिया। अजमेर के टांक शिक्षक संस्थान में टीटी कॉलेज के शिक्षक डॉ. राकेश टाक को ऑब्जर्वर नियुक्त कर दिया, जबकि यह संस्थान राकेश टाक की बेटी ही चलाती है। इन सब कृत्यों से रीट परीक्षा की निष्पक्षता का अंदाजा लगाया जा सकता है। यानी सिर्फ पेपर आउट नहीं हुआ, बल्कि हर स्तर पर गड़बड़ी हुई है। सीबीआई जांच के साथ साथ रीट परीक्षा को निरस्त भी किया जाना चाहिए।