Rajasthan : 280 दिन के बजाए 200 दिन ही मां के गर्भ में रहने वाले नवजात भी अब स्वस्थ रह सकते हैं।

Rajasthan : 280 दिन के बजाए 200 दिन ही मां के गर्भ में रहने वाले नवजात भी अब स्वस्थ रह सकते हैं।
प्रीमैच्योर शिशुओं को अजमेर के मित्तल अस्पताल में संभाल रहे हैं डॉ. रमेश गौतम और डॉ. मैसी जैन।
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इसे आधुनिक चिकित्सा का चमत्कार ही कहा जाएगा कि जो बच्चे 9 माह से पहले ही जन्म ले रहे हैं उन्हें भी अब न केवल जिंदा रखा जा रहा है बल्कि स्वास्थ्य भी। चिकित्सा के इस चमत्कार का लाभ नागौर के मकराना के खीरीशिला गांव की निवासी श्रीमती मैना जाट को मिला है। मैना को मिर्गी की बीमारी की वजह से अजमेर के पुष्कर रोड स्थित मित्तल अस्पताल और रिसर्च सेंटर में भर्ती करवाया गया। इस समय मैना सात माह की गर्भवती भी थी। बीमारियों की वजह से मैना की प्रीमैच्योर डिलीवरी करवानी पड़ी। लेकिन अब मैना और उसका परिवार खुश है कि मां और नवजात शिशु स्वास्थ्य हैं। मैना शिशु को 58 दिनों तक अस्पताल में सुरक्षित रखा गया। मित्तल अस्पताल के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमेश गौतम और गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. मैंसी जैन ने बताया कि ईश्वर और प्रकृति द्वारा निर्धारित व्यवस्था के अनुसार शिशु मां के गर्भ में नौ माह यानी करीब 280 दिन रहना होता है। यह ईश्वर का चमत्कार ही है कि भ्रूण जब मां के गर्भ में रहता है, तब शरीर के आंख, कान, पैर अंगुलियां आदि सभी अंग स्वत: ही विकसित होते हैं। विकसित शिशु सांस भी मां के गर्भ में ही लेता है। लेकिन समस्या तब खड़ी होती है, जब किन्हीं कारणों से बच्चे का जन्म 280 दिन से पहले हो जाता है। 200 दिन या उससे भी कम दिन वाले बच्चे के अंग तो बन जाते हैं, लेकिन विकसित नहीं होते हैं। 200 दिन वाले शिशु की आंख तक नहीं खुल पाती है। 280 दिन गर्भ में रहने वाले बच्चे का वजन सामान्य तौर पर दो किलो तक होता है, जबकि 200 दिन वाले बच्चे का वजन मात्र 800 ग्राम या इससे कम होता है। इतने कम वजन के बच्चे को जिंदा रखना और विकसित करने के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। हमारा मकसद सिर्फ बच्चे को जिंदा रखना नहीं होता है, बल्कि उसके अंगों को विकसित कर स्वस्थ रखना होता है। यदि बच्चा जिंदा रहे, लेकिन दिमाग सही न हो या फिर वह गूंगा बहरा हो तो ऐसे बच्चे के जन्म से माता पिता को जिंदगी भर परेशान होना पड़ता है। 190 या 200 दिन वाले शिशु (भ्रूण) को अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाइयों में वो ही वातावरण दिया जाता है जो मां के गर्भ का होता है। ऐसे भ्रूण को हाथ से पकडऩा भी मुश्किल होता है, लेकिन तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए शिशु को मां का दूध तक पिलाया जाता है। मां के स्तनों से दूध संग्रहित कर बच्चे को पिलाना बेहद जटिल चिकित्सा होती है। शिशु के अंगों के विकास पर भी बारिकी से नजर रखी जाती है। जब कोई शिशु स्वस्थ नजर आता है, तब कंगारू मदर कयेर पद्धति को भी अपनाया जाता है। इसमें शिशु को मां की छाती से चिपका दिया जाता है। इस पद्धति से न केवल शिशु प्रसन्न होता है, बल्कि उसका विकास भी तेजी से होता है। डॉ. रमेश गौतम ने बताया कि मित्तल अस्पताल में वे सब सुविधाएं हैं जो प्रीमैच्योर बच्चों को स्वस्थ्य रखने के लिए जरूरी है। पिछले दो माह की अवधि में करीब 40 प्रीमैच्योर शिशुओं को सुरक्षित रखा गया है। देश में प्रीमैच्योर शिशुओं की मृत्यु दर 30 प्रतिशत तक है, लेकिन यदि देखभाल सही तरीके से की जाए तो 190 दिन के शिशु को भी बचाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए अनुभवी चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ जरूरी है। मित्तल अस्पताल में यह कार्य सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
अस्पताल में सुपरस्पेशियलिटी की सुविधाएं:
निदेशक मनोज मित्तल ने बताया कि मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में एक ही छत के नीचे नवजात शिशु से संबंधित सुपरस्पेशियलिटी सेवाओं में नियोनेटोलॉजिस्ट सहित प्रसूति एवं स्त्री रोग तथा बाल एवं शिशु रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों की वृहद अनुभवी टीम है। इसके अलावा हार्ट, न्यूरो, यूरो, ओंको, नेफ्रो, गैस्ट्रो आदि सभी तरह की सुपरस्पेशियलिटी चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता के कारण गंभीर अवस्था में पहुंचने वाले मरीजों को पूरी शिद्दत से संभाला जाता है। ज्ञातव्य है कि मित्तल हॉस्पिटल केंद्र (सीजीएचएस) राज्य सरकार (आरजीएचएस) व रेलवे कर्मचारियों एवं पेंशनर्स, भूतपूर्व सैनिकों (ईसीएचएस), (ईएसआईसी) द्वारा बीमित कर्मचारियों एवं सभी टीपीए द्वारा उपचार के लिए अधिकृत है। अस्पताल के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9116049809 पर जनसंपर्क अधिकारी संतोष गुप्ता से ली जा सकती है।