Rajasthan : सचिन पायलट दिल्ली में सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी से तो मुलाकात करते हैं, लेकिन जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात नहीं कर पाते।

Rajasthan : सचिन पायलट दिल्ली में सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी से तो

मुलाकात करते हैं, लेकिन जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात नहीं कर

पाते।

सीएम गहलोत की सहमति होने पर ही पायलट राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में भाग ले सकते हैं।
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पूर्व डिप्टी सीएम और सात वर्ष तक राजस्थान में कांग्रेस की कमान संभालने वाले सचिन पायलट यदि यह समझते हों कि दिल्ली में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके दोनों बच्चे राहुल और प्रियंका से मुलाकात कर लेने से वे राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति करने लगेंगे तो यह उनकी गलतफहमी है। पायलट माने या नहीं, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सहमति के बगैर पायलट को कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय होने का अवसर नहीं मिलेगा।
22 अप्रैल को अखबारों में छपा है कि पायलट ने पिछले 12 दिनों में दूसरी बार दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की है। राहुल और प्रियंका से भी मुलाकात होने की खबरें छपती रही हैं। कहा जा रहा है कि पायलट ने सोनिया गांधी को राजस्थान में कांग्रेस सरकार के रिपीट होने का फार्मूला भी दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पायलट की लोकप्रियता आज भी प्रदेशभर में बनी हुई है। यह लोकप्रियता तब है, जब पिछले साढ़े तीन वर्ष में सीएम गहलोत ने पायलट को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। गहलोत आज भी पायलट पर उनकी सरकार गिराने की साजिश का आरोप लगाते हैं।
पायलट और उनके समर्थकों को अब यह भी समझना होगा कि कांग्रेस में असली हाईकमान अशोक गहलोत ही हैं। सोनिया गांधी तो खुद अशोक गहलोत से राय लेकर कांग्रेस को चला रही हैं। प्रशांत किशोर जैसे धंधेबाज लोग कांग्रेस को मजबूत करने की कितनी भी राय दे दें, लेकिन इन सभी रायों पर गहलोत की राय भारी है। सचिन पायलट यदि राजस्थान कांग्रेस में सक्रिय होने की इच्छा रखते हैं तो दिल्ली के बजाए जयपुर में अशोक गहलोत से ही बात करनी होगी और यदि अशोक गहलोत से बात नहीं करना चाहते हैं तो पायलट को 2023 के विधानसभा चुनाव के परिणाम का इंतजार करना होगा, क्योंकि चुनाव से पहले तक गहलोत को कोई नहीं हटा सकता। अशोक गहलोत अपना रिकॉर्ड खुद तोड़ते हैं। 2008 में 57 विधायक बने तो 2013 में कांग्रेस विधायकों की संख्या 21 थी। इस रिकॉर्ड को अब 2023 में गहलोत ही तोड़ेंगे। लेकिन यदि पायलट को विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान की राजनीति में सक्रिय होना है तो फिर उन्हें नया रास्ता चुनना पड़ेगा।
मौजूदा राजनीतिक माहौल में पायलट के पास कई विकल्प हैं। लेकिन नए विकल्पों पर विचार करते हुए पायलट को यह ध्यान रखना होगा कि गहलोत की खुफिया एजेंसियों की नजर उन पर लगी है। गहलोत को सब पता है कि पायलट की लोगों से मिल रहे हैं। सचिन पायलट की हर गतिविधि पर गहलोत सरकार की नजर है।