Rajasthan : अशोक गहलोत की सरकार को बचाने वाले विधायकों पर कार्यवाही होगी तो राजस्थान में असंतोष बढ़ेगा ही।

अशोक गहलोत की सरकार को बचाने वाले विधायकों पर कार्यवाही होगी तो राजस्थान में असंतोष बढ़ेगा ही।
डूंगरपुर के कांग्रेसी विधायक गणेश घोघरा का इस्तीफा इसी सोच का है। गहलोत समर्थक कई विधायक कानून के शिकंजे में हैं।
डूंगरपुर के एसडीएम मणिलाल तिरगर के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज। विधायक घोघरा ढाई घंटे तक थाने में बैठे रहे।
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डूंगरपुर के कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा ने विधायक पद से जो इस्तीफा दिया है, वह कोई मायने नहीं रखता है, क्योंकि यह इस्तीफा सिर्फ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को डराने के लिए है। वैसे भी मुख्यमंत्री को लिखा पत्र तकनीकी दृष्टि से इस्तीफा नहीं माना जा सकता। इस्तीफा तभी माना जाएगा, जब बिना शर्त सीधे विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा जाए। लेकिन घोघरा की यह कार्यवाही बताती है कि गहलोत सरकार को बचाने वाला कोई विधायक नहीं चाहता है कि उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही हो। डूंगरपुर के एसडीएम को बंधक बनाने पर तहसीलदार की रिपोर्ट पर पुलिस ने विधायक घोघरा के विरुद्ध नामजद एफआईआर दर्ज कर ली। घोघरा को पुलिस और प्रशासन की इस हिमाकत पर ही नाराजगी है। स्वाभाविक है कि तहसीलदार ने जिला कलेक्टर के निर्देश पर शिकायत दी और पुलिस ने एसपी के निर्देश पर मुकदमा दर्ज किया। समर्थकों का यह तर्क सही है कि जिन गणेश घोघरा ने जुलाई 2019 में गहलोत सरकार बचाई अब उसी सरकार के कलेक्टर एसपी घोघरा के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर रहे हैं।
यदि उस समय गणेश घोघरा साथ नहीं देते तो आज अशोक गहलोत मुख्यमंत्री नहीं होते। सब जानते हैं कि जुलाई 2019 के राजनीतिक संकट के समय सीएम गहलोत ने ही घोघरा को युवक कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनवाया था। तब गहलोत सरकार को बचाने में घोघरा ने कोई कसर नहीं छोड़ी। सीएम ने तो तब कहा था कि जो विधायक मेरे साथ हैं, उन्हें ब्याज सहित भुगतान करुंगा, लेकिन अब तो उल्टा हो रहा है। गणेश घोघरा अकेले ऐसे विधायक नहीं है जो सरकार और प्रशासन की कार्यशैली से नाराज है। धौलपुर में विद्युत निगम के एक एईएन की पिटाई के आरोप में विगत दिनों ही पुलिस ने बाडी के कांग्रेसी विधायक गिर्राज मलिंगा को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। मलिंगा हाईकोर्ट से जमानत के बाद बाहर आ सके। मलिंगा भी राजनीतिक संकट में सीएम गहलोत के साथ खड़े थे। मलिंगा ने भी पुलिस की कार्यवाही का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि विद्युत निगम का एईएन ग्रामीणों को तंग करता था, इसलिए मारपीट हुई। इतना ही नहीं 16 मई को सरकार के उप मुख्य सचेतक और नागौर-नावां के कांग्रेसी विधायक महेंद्र चौधरी के सगे भाई मोती सिंह चौधरी और बहनोई कुलदीप सिंह को पुलिस ने हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इस कार्यवाही से चौधरी के समर्थक भी सरकार से खफा हैं।
गहलोत सरकार को टिकाए रखने में महेंद्र चौधरी की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। विधायकों के समर्थकों का कहना है कि जब जरुरत थी, तब विधायकों का इस्तेमाल कर लिया, लेकिन अब जन आंदोलनों में भी विधायकों पर मुकदमे दर्ज हो रहे हैं। सवाल यह भी है कि गिर्राज मलिंगा की गिरफ्तारी के बाद क्या विधायक गणेश घोघरा की भी गिरफ्तारी होगी? विधायकों पर मुकदमे दर्ज होना, इसलिए भी गंभीर है कि गृह विभाग मुख्यमंत्री गहलोत के पास ही है। स्वाभाविक है कि सत्तारूढ़ दल के विधायक के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने से पहले गृहमंत्री से भी अनुमति ली गई होगी। पुलिस अपने स्तर पर किसी विधायक पर मुकदमा दर्ज नहीं कर सकती है। देखना होगा कि मौजूदा संतोष से सीएम गहलोत कैसे निपटते हैं। जानकारों की मानें तो इस बार अशोक गहलोत को सरकार चलाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सबसे बड़ी परेशानी की बात तो यह है कि हर समस्या से गहलोत को खुद जूझना पड़ रहा है। भरोसेमंद माने जाने वो मंत्री महेश जोशी अपने पुत्र रोहित पर लगे बलात्कार के आरोप से परेशान हैं। दिल्ली पुलिस रोहित की तलाश कर रही है। विधायकों में असंतोष के समय महेश जोश अपने पुत्र को गिरफ्तारी से बचाने में लगे हुए हैं। विधायक महेंद्र चौधरी अपने भाई और बहनोई को पुलिस के शिकंजे से बाहर लाने में लगे हुए हैं।
एसडीएम के खिलाफ भी मुकदमा:
कांग्रेस के विधायक गणेश घोघरा की अपनी ही सरकार के प्रति नाराजगी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 19 मई को डूंगरपुर जिले की सुरसुरा ग्राम पंचायत की सरपंच की ओर से एसडीएम मणिलाल तिरगर व अन्य कार्मिकों के विरुद्ध भी मुकदमा दर्ज करवा दिया है। मालूम हो कि 17 मई को एसडीएम तिरगर को बंधक बनाने पर ही विधायक घोघरा और कुछ ग्रामीणों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ था। एसडीएम के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करवाने के लिए विधायक घोघरा खुद ढाई घंटे तक पुलिस थाने में बेठे। सरपंच ने जब लिखित में शिकायत दी तो थानाधिकारी हरीराम ने एसडीएम के विरुद्ध मुकदमा दर्ज नहीं किया। इस पर विधायक घोघरा ने स्पष्ट कहा कि जब तक मुकदमा दर्ज नहीं होगा, तब तक वे थाने पर ही बेठे रहेंगे। विधायक की इस घोषणा के बाद थानेदार ने पुलिस अधीक्षक सहित बड़े अधिकारियों से निर्देश प्राप्त किए और फिर एसडीएम व अन्य कार्मिकों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया। यह मुकदमा 17 मई के घटनाक्रम को लेकर ही है।