पशुओं के चारे की पर्याप्त उपलब्धता पर काम करने की जरूरत है: श्री नरेंद्र सिंह तोमर

ग्रेटर नोएडा में चल रहे अंतरराष्ट्रीय डेयरी संघ के विश्व डेयरी सम्मेलन के तीसरे दिन बुधवार को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर की अध्यक्षता में चारा, भोजन और अपशिष्ट पर विशेष सत्र आयोजित किया गया। श्री तोमर ने भारत और विदेश से आए प्रतिनिधियों का ध्यान कृषि और डेयरी क्षेत्रों की चुनौतियों की ओर आकर्षित किया। उन्होंने आम मुद्दों पर साथ मिलकर काम करने की बात कही। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने चुनौतियों के समाधान के लिए छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दिया है, जिससे काफी जागरूकता आई है। मुख्य रूप से, इस दिशा में ध्यान देने की जरूरत है कि कैसे चारे की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए और इसके लिए क्या किया जा सकता है।

हर तरह से ‘वेस्ट से वेल्थ मैनेजमेंट’ पर जोर देते हुए श्री तोमर ने कहा कि आमतौर पर हम कचरे का सही तरीके से निपटारा नहीं करते हैं। चाहे फसल की पराली हो, या फलों और सब्जियों के कचरे का घरों में निपटारा, उन्हें वेल्थ (कमाई या सकारात्मक उपयोग) में परिवर्तित करना समय की मांग है। इस पर विचार और काम करने की जरूरत है कि हम कचरे का अलग-अलग तरीके से उपयोग कैसे कर सकते हैं, जैसे- पराली के निपटारे के लिए तकनीक का इस्तेमाल कर पूसा संस्थान ने डिकंपोजर बनाया है। इससे खेत की उत्पादकता बढ़ेगी, वहीं मवेशियों के लिए चारा भी उपलब्ध होगा, इस दिशा में बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत है।

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श्री तोमर ने कहा कि भारत मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान देश है और पशुपालन व सहकारिता क्षेत्रों के बगैर कृषि का कार्य क्षेत्र अधूरा है। इसे देखते हुए पीएम मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत कृषि और उससे संबंद्ध क्षेत्रों के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक के विशेष पैकेज की घोषणा की है। पशुपालन और दूध उत्पादन के क्षेत्र में महिलाओं का बड़ा योगदान है, इस क्षेत्र में महिला सशक्तीकरण उनकी भागीदारी का आंतरिक हिस्सा है। ऐसे में प्रधानमंत्री ने पशुपालन और सहकारिता क्षेत्रों के लिए अलग-अलग मंत्रालय बनाए हैं और उनके बजट में भी वृद्धि की है। इन सबके पीछे मूल भावना किसानों को लाभ पहुंचाना है। अब ज्यादा से ज्यादा कृषि स्टार्टअप शुरू किए जा रहे हैं।

अपने संसदीय क्षेत्र के गोरस इलाके का उदाहरण देते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि यह क्षेत्र गिर गायों का क्लस्टर हुआ करता था। इस समय भी वहां लगभग 30,000 गायें हैं, लेकिन गर्मी के दिनों में चारे के कमी के कारण मवेशियों को चराने के लिए दूर ले जाना पड़ता है, अब इस दिशा में काम शुरू हो गया है। इस बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए ध्यान देने की जरूरत है कि मवेशियों को भोजन कैसे मिले। उन्होंने कहा कि गाय का गोबर भी एक अपशिष्ट है। केंद्र सरकार ने गोवर्धन योजना शुरू की है। ऊर्जा संसाधन के रूप में गाय के गोबर का उपयोग किया जा सकता है। इससे आय बढ़ने के साथ ही पर्यावरण को नुकसान से भी बचाया जा सकेगा। इसके साथ ही प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि कोविड के बाद लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुए हैं और स्वच्छ व स्वास्थ्यकर भोजन की मांग बढ़ रही है। प्राकृतिक खेती की ओर लोगों का ध्यान बढ़ा है। जैविक खेती और प्राकृतिक खेती का दायरा बढ़ रहा है। पूरी दुनिया में इसकी मांग है। हाल में, भारत ने 3.75 लाख करोड़ रुपये के कृषि उत्पादों का निर्यात किया है, जिसमें जैविक उत्पादों का एक बड़ा हिस्सा शामिल है। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन से जो भी प्रस्ताव आएंगे, उस पर सरकार गंभीरता से आगे बढ़ेगी।

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