Rajasthan: अशोक गहलोत यदि एक वर्ष के लिए मुख्यमंत्री पद का लालच नहीं करते तो आज संयुक्त विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार होते।

अशोक गहलोत यदि एक वर्ष के लिए मुख्यमंत्री पद का लालच नहीं करते तो आज संयुक्त विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार होते।

यदि मल्लिकार्जुन खडग़े प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे तो फिर राहुल गांधी का क्या होगा?

============

2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए देश के 27 विपक्षी दलों की संयुक्त दलों की बैठक 19 दिसंबर को दिल्ली में हुई। बैठक में पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम प्रस्तावित किया। खडग़े प्रधानमंत्री बनेेंगे यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन खडग़े के लिए यह बड़ी राजनीतिक उपलब्धि है कि उनका नाम पीएम पद के लिए प्रस्तावित हुआ है। यदि अशोक गहलोत एक वर्ष के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री पद का लालच नहीं रखते तो आज खडग़े की जगह प्रधानमंत्री पद के लिए अशोक गहलोत का नाम होता। सब जानते हैं कि गत वर्ष अक्टूबर माह में जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव हो रहे थे, तब अशोक गहलोत ही अध्यक्ष बनने वाले थे। अशोक गहलोत पर सर्वसम्मति बन गई थी। इसलिए कांग्रेस की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने राजस्थान के कांग्रेस विधायकों की बैठक बुलाई ताकि नए मुख्यमंत्री का चयन हो सके। लेकिन तब गहलोत ने मुख्यमंत्री का पद त्यागने से इंकार कर दिया और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने विधायकों की जो बैठक बुलाई इसके समांतर विधायकों की बैठक बुलाकर हाईकमान के खिलाफ बगावत कर दी। इस बगावत से गहलोत एक वर्ष तक मुख्यमंत्री तो रह गए, लेकिन कांग्रेस में उनका सम्मान नहीं रहा। कांग्रेस हाईकमान खासकर गांधी परिवार का भरोसा भी खत्म हो गया। गांधी परिवार अब अशोक गहलोत का कितना सम्मान कर रहा है, इसका अंदाजा नेशनल अलायंस कमेटी के गठन से लगाया जा सकता है। इस कमेटी का संयोजक मुकुल वासनिक को बनाया गया है जो राजनीति में गहलोत से बहुत जूनियर हैं। गहलोत को इस कमेटी में सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है। यदि गांधी परिवार का भरोसा होता तो ऐसी कमेटी का अध्यक्ष गहलोत को ही बनाया जाता। गत वर्ष 25 सितंबर को गहलोत ने जो बगावत की उसी का परिणाम रहा कि मल्लिकार्जुन खडग़े को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। खडग़े गांधी परिवार के भरोसे पर खरे उतरे हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी खडग़े को राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाए रखा गया है। गांधी परिवार के भरोसे के कारण ही इंडि अलायंस में भी खडग़े महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 19 दिसंबर को भी जब विपक्षी दलों की बैठक में नाम प्रस्तावित हुआ तो बैठक के बाद खडग़े ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि अभी प्रधानमंत्री पद का कोई मुद्दा ही नहीं हंै। यदि चुनाव में जीत मिलेगी तभी प्रधानमंत्री बनाने की बात होगी। यानी खडग़े ने अपनी ओर से प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया है।

यह भी पढ़ें :   Rape: यानी कि मूर्खता की हद हो गई

राहुल गांधी का क्या होगा?:

विपक्षी दलों के इंडि अलायंस को बनाने में राहुल गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हों या फिर बिहार में नीतीश कुमार व तेजस्वी यादव, सभी के साथ तालमेल करने में राहुल गांधी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वैचारिक मतभेद होने के बाद भी राहुल गांधी ने विपक्षी दलों के नेताओं को एक जाजम पर बैठा ने का प्रयास किया। विपक्ष की एकजुटता के पीछे राहुल गांधी का क्या मकसद है यह सभी जानते हैं। वैसे भी देशभर में विपक्ष के किसी राजनीतिक दल पहचान है तो वह कांग्रेस ही है। आज भी तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं तथा कई राज्यों में प्रमुख विपक्ष की भूमिका में है। ऐसे में यदि मल्लिकार्जुन खडग़े को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया जाता है तो फिर राहुल गांधी की मेहनत का क्या होगा? जानकार सूत्रों के अनुसार जब ममता बनर्जी और केजरीवाल ने खडग़े का नाम प्रस्तावित किया तो सबसे पहले खडग़े ने ही ऐतराज किया। इसके साथ ही कांग्रेस के प्रभावित कई छोटे दलों ने भी खडग़े के नाम पर ऐतराज किया। सभी का कहना रहा कि चुनाव में जीत के बाद ही प्रधानमंत्री के नाम पर विचार किया जाना चाहिए। यदि अभी प्रधानमंत्री पद के लिए नाम रखा गया तो इंडी अलायंस की एकता पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। हो सकता है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस में ही बिखराव हो जाए।

यह भी पढ़ें :   प्रदेश में बाल श्रम रोकने हेतु विभागों का सामूहिक प्रयास

 

Report By S.P.MITTAL