प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाल में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को “खोलने” के बाद इसरो के साथ लगभग 60 स्टार्ट-अप्स पंजीकरण करा चुके हैं; उनमें से कुछ अंतरिक्ष के मलबे के प्रबंधन से सबंधित परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं : डॉ. जितेंद्र सिंह

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हाल में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलने के बाद इसरो के साथ लगभग 60 स्टार्ट-अप्स पंजीकरण करा चुके हैं और उनमें से कुछ अंतरिक्ष के मलबे के प्रबंधन से सबंधित परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। अन्य स्टार्टअप के प्रस्ताव नैनो सैटेलाइट, लॉन्च व्हीकल, ग्राउंड सिस्टम, अनुसंधान आदि से संबंधित हैं।

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार),  प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज बेंगलुरू में इसरो नियंत्रण केंद्र पर “सुरक्षित और सतत संचालन के लिए इसरो की प्रणाली” (आईएस4ओएम) का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में यह बात कही।

 

डॉ. जितेंद्र सिंह ने याद दिलाया कि पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अहमदाबाद में इन-स्पेस के मुख्यालयों के उद्घाटन के दौरान कहा था, “जब सरकारी अंतरिक्ष संस्थानों की ताकत और भारत के निजी क्षेत्र का जुनून मिल जाएगा तो कुछ भी हासिल करना संभव हो सकेगा।”

केंद्रीय मंत्री ने दोहराया कि निजी कंपनियों के जुनून और स्टार्ट-अप्स के नवाचार से अंतरिक्ष परिवहन, कचरा प्रबंधन, इन्फ्रास्ट्रक्चर और एप्लीकेशंस के क्षेत्र में चहुंमुखी क्षमताओं के विकास के द्वारा अंतरिक्ष में भारत के हितों की रक्षा में अंतरिक्ष विभाग की भूमिका और बढ़ जाएगी।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, आईएस4ओएम की सुविधा से भारत को उपयोगकर्ताओं को अंतरिक्ष के बारे में एक समग्र और समयबद्ध जानकारी उपलब्ध कराने के अपने एसएसए (अंतरिक्ष स्थितिजन्य सतर्कता) लक्ष्यों को हासिल करने में सहायता मिलेगी। कई क्षेत्रों की सूचना से जुड़े इस मंच से कक्षा में टकराव, विखंडन, वायुमंडल में फिर से प्रवेश के खतरे, अंतरिक्ष आधारित सामरिक जानकारी, खतरनाक एस्टेरॉइड्स और अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान पर त्वरित, सटीक एवं उपयुक्त जानकारी मिलेगी।

 

डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय विकास के लिए बाहरी अंतरिक्ष के सतत उपयोग के लाभों को प्राप्त करते हुए सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने की दिशा में एक समग्र दृष्टिकोण के साथ फैसिलिटी की कल्पना की गई है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, इसरो परिचालित अंतरिक्षयान और अंतरिक्ष के मलबे सहित अंतरिक्ष की वस्तुओं के द्वारा इरादतन या दुर्घटनावश आकस्मिक रूप से नजदीक आने से अपनी अंतरिक्ष संपदाओं की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाता रहा है। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष स्थितिजन्य सतर्कता गतिविधियों के कई सामरिक परिणाम होते हैं, जैसे- नजदीक आने वाले अन्य परिचालित, भारतीय क्षेत्र के ऊपर से गुजरने वाले, संदिग्ध उद्देश्य के साथ जानबूझकर युद्धाभ्यास करने वाले और भारतीय क्षेत्र के भीतर फिर से आने वाले अंतरिक्षयान की पहचान और निगरानी।

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केंद्रीय मंत्री ने विस्तार से बताते हुए कहा कि आईएस4ओएम सुविधा भारतीय अंतरिक्ष संपदाओं की सुरक्षा, टकराव से बचने के कौशल के जरिये अंतरिक्ष की वस्तुओं के टकराने के खतरों को कम करने, सामरिक उद्देश्यों के लिए जरूरी सूचना और अंतरिक्ष के मलबे में अनुसंधान गतिविधियां एवं अंतरिक्ष स्थितिजन्य सतर्कता से जुड़े सभी नियमित अभियानों में समर्थन दे सकती है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि अंतरिक्ष मलबे सहित अंतरिक्ष की वस्तुओं पर नजर रखने के लिए मुख्य जमीन-आधारित सुविधाओं के रूप में रडार और ऑप्टिकल टेलीस्कोप के महत्व पर जोर देने की जरूरत है, क्योंकि इस तरह के जमीन-आधारित सेंसर्स से सटीक कक्षीय जानकारी अन्य संचालित अंतरिक्ष संपदाओं को किसी अन्य वस्तु से टकराव के खतरे को कम करने के लिए जरूरी है। निगरानी सुविधाओं का नेटवर्क एसएसए प्रणाली की रीढ़ है, जिसमें राष्ट्र अन्य देशों से पिछड़ रहा है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एक सार्थक और मूल्य वर्धित एसएसए प्रणाली विकास तथा अलर्ट जारी करने के लिए आवश्यक भारतीय निगरानी सुविधाओं की स्थापना की जरूरत है।

 

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि दैनिक जीवन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग को देखते हुए, मानव की भावी पीढ़ियों के लिए बाहरी अंतरिक्ष के उपयोग को योग्य बने रहने देने के उद्देश्य से बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों का दीर्घकालिक स्थायित्व (एलटीएस) सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है। उन्होंने कहा कि बाहरी अंतरिक्ष में सुरक्षित और टिकाऊ अभियानों के प्रभावी प्रबंधन के लिए अंतरिक्ष की वस्तुओं के अवलोकन एवं निगरानी, कक्षीय निर्धारण के लिए अवलोकन, वस्तु लक्षण वर्णन और सूचीकरण, अंतरिक्ष पर्यावरण के विकास का विश्लेषण, जोखिम का आकलन और उसे दूर करने, डाटा का आदान प्रदान तथा भागीदारी से संबंधित विविध क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक समग्र दृष्टिकोण जरूरी है।

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अंतरिक्ष विभाग में सचिव एस. सोमनाथ ने कहा, अंतरिक्ष मौसम की निगरानी और पूर्वानुमान के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर अहम सौर गतिविधियों से अंतरिक्ष के साथ ही भूमि आधारित इन्फ्रास्ट्रक्चर की रक्षा में अहम भूमिका निभाता है। इसके साथ ही मानव कल्याण के लिए एस्टेरॉयड्स के प्रभाव का पता लगाना और उनसे बचाव समान रूप से जरूरी है। अंतरिक्ष मौसम सेवाओं और ग्रह रक्षा पहल की दिशा में आईएस4ओएम का विजन भी एसएसए के अहम क्षेत्रों में शामिल हैं।

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत से अभी तक, अंतरिक्ष आधारित संपदाओं ने संचार, मौसम और संसाधन निगरानी, नेविगेशन आदि के क्षेत्र में अहम सेवाएं उपलब्ध कराकर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमका निभाई है। हालांकि, संचालित उपग्रहों और कक्षीय कचरे आदि की तेजी से बढ़ती संख्या और टकराने से जुड़े खतरों से बाह्य अंतरिक्ष के सुरक्षित और टिकाऊ उपयोग के लिए एक गंभीर खतरा पैदा हुआ है। उन्होंने कहा कि पृथ्वी की कक्षाओं की बढ़ती भीड़ बड़े मलबों के बीच टकराव का खतरा पैदा करती है, जिससे आगे टकरावों की स्वतः बढ़ती प्रक्रिया देखने को मिल सकती है, जिसे केसलर सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप अंतरिक्ष मलबे के घनत्व में भारी वृद्धि हो सकती है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए बाह्य अंतरिक्ष दुर्गम यानी पहुंच से दूर हो जाएगा।

याद रखना चाहिए कि भारतीय उपग्रहों और कक्षा में अन्य उपकरणों की रक्षा के लिए इसरो, बाह्य अंतरिक्ष के दीर्घकालिक स्थायित्व के लिए अंतरिक्ष मलबे में बढ़ोतरी को रोकने के सभी अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में सक्रिय रूप से भागीदारी करता है। उन्होंने बताया कि इसरो इंटर एजेंसी स्पेस डेबरीस कोऑर्डिनेशन कमेटी (आईडीएसी), आईएएफ डेबरीस वर्किंग ग्रुप, आईएए स्पेस ट्रैफिक मैनेजमेंट वर्किंग ग्रुप, आईएसओ स्पेस डेबरीस वर्किंग ग्रुप और यूएनसीओपीयूओएस लॉन्ग टर्म सस्टेनेबिलिटी वर्किंग ग्रुप का एक सक्रिय सदस्य है। ये सभी अंतर्राष्ट्रीय संगठन अंतरिक्ष मलबे के अध्ययनों और अंतरिक्ष स्थितिजन्य सतर्कता में अपना योगदान दे रहे हैं।

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