भारत और नामीबिया ने वन्यजीव संरक्षण और सतत जैव-विविधता उपयोग पर समझौता-ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये

भारत और नामीबिया गणराज्य ने आज वन्यजीव संरक्षण और सतत जैव-विविधता उपयोग पर एक समझौता-ज्ञापन पूर्ण किया है, ताकि भारत में चीते को ऐतिहासिक दायरे में लाया जा सके।

 

नाबीबिया की उपराष्ट्रपति सुश्री नांगलो मुंबा और केंद्रीय पर्यावरण,वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेन्द्र यादव हस्ताक्षर करते हुए

 

 

Happy to share that India has signed a historic MoU with Namibia to promote Wildlife Conservation and Sustainable Biodiversity Utilization. The MoU seeks to promote conservation and restoration of cheetah in their former range from which the species went extinct. pic.twitter.com/MNVyw8S2eQ

 

इस समझौता-ज्ञापन के तहत वन्यजीव संरक्षण और सतत जैव-विविधता उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये पारस्परिक लाभप्रद सम्बंधों के विकास को दिशा दी जा सकेगी। यह पारस्परिक सम्मान, समप्रभुता, समानता और भारत तथा नामीबिया के सर्वोच्च हितों के सिद्धांतों पर आधारित है।

 

समझौता-ज्ञापन की मुख्य विशेषतायें इस प्रकार हैं:-

 

 

राष्ट्रीय संरक्षण और लोकाचार को मद्देनजर रखते हुये चीते का बहुत विशेष महत्त्व है। भारत में चीते की वापसी महत्त्वपूर्ण संरक्षण नतीजों में बराबर का महत्त्व रखती है। चीते की बहाली चीतों के मूल प्राकृतिक वास की बहाली में प्रतिमान का काम करेगी। यह उनकी जैव-विविधता के लिये महत्त्वपूर्ण है और इस तरह जैव-विविधता के क्षरण और उसमें तेजी से होने वाले नुकसान को रोकने में मदद मिलेगी।

अन्य बड़े मांसाहारी जंतुओं में चीते के साथ मनुष्यों के हितों का टकराव बहुत कम है, क्योंकि चीता मनुष्यों के लिये खतरा नहीं है तथा वे आम तौर पर मवेशियों के बड़े रेवड़ों पर हमला नहीं करते। शिकारी पशुओं की सर्वोच्च प्रजाति में से चीते की वापसी से ऐतिहासिक विकासपरक संतुलन कायम होगा, जिसका इको-प्रणाली के विभिन्न स्तरों पर भारी प्रभाव पड़ेगा। इस तरह वन्यजीवों के प्राकृतिक वासों (घास के मैदान, झाड़ियों वाले मैदान और खुली वन इको-प्रणालियां) की बहाली और उनका बेहतर प्रबंधन संभव होगा। साथ ही उन पशुओं का भी संरक्षण करके उनकी संख्या बढ़ाई जायेगी, जिनका शिकार चीता करता है। इसी तरह चीते के इलाके में रहने वाली लुप्तप्राय प्रजातियों को भी बचाया जा सकेगा। दूसरी तरफ शिकार करने वाले बड़े से लेकर छोटे जंतुओं तक के क्रम में इको-प्रणाली के निचले स्तर पर, जहां छोटे जंतुओं का शिकार किया जाता है, वहां तक विविधता को कायम रखने तथा उसे बढ़ाने में मदद मिलेगी।

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भारत में चीता परियोजना को दोबारा शुरू करने का मुख्य उद्देश्य भारत में चीते की सामूहिक संख्या को कायम करना है। इससे चीता सर्वोच्च शिकारी जंतु के रूप में अपनी भूमिका निभायेगा और अपने ऐतिहासिक इलाके के भीतर उसके लिये जगह का विस्तार होगा। इस तरह वैश्विक संरक्षण प्रयासों में बड़ा योगदान होगा।

दस स्थलों के लिये सर्वेक्षण 2010 और 2012 के बीच किया गया था। भारत में चीते की संख्या को जिन सक्षम स्थानों में कायम करना है और जो इसके लिये फायदेमंद हैं, यह तय करने के लिये आईयूसीएन दिशा-निर्देशों का पालन किया गया, जिनमें जनसांख्यिकी, जेनेटिक्स, सामाजिक-आर्थिक टकराव और आजीविका के मद्देनजर प्रजातियों को ध्यान में रखा गया है। इन सबके आधार पर देखा गया कि मध्यप्रदेश का कूनो राष्ट्रीय उद्यान चीते के लिये सर्वाधिक उपयुक्त है। वहां प्रबंधन सम्बंधी हस्तक्षेप न्यूनतम है, क्योंकि एशियाई शेरों को दोबारा कायम करने के लिये इस संरक्षित क्षेत्र में बहुत निवेश किया गया है।

चीते की मौजूदगी दक्षिणी अफ्रीका (दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया, बोत्सवाना और जिम्बाब्वे) में है, जहां वे प्रासंगिक पारिस्थितिकीय-जलवायु विविधता में रहते हैं। इसके मॉडल पर भारत में चीते के लिये स्थान बनाया जा रहा है। इसके तहत चीते के लिये ऐसा माहौल तैयार किया जायेगा, जो उसके अधिक से अधिक अनुकूल हो। विश्लेषण से पता चलता है कि दक्षिणी अफ्रीका के जिस वातावरण में चीते रहते हैं, उसे देखते हुये भारत का कूनो राष्ट्रीय उद्यान उनके प्राकृतिक वास के लिये सर्वाधिक अनुकूल है।

कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीते को स्थापित करने की कार्य-योजना आईयूसीएन के दिशा-निर्देशों के आधार पर विकसित की गई है। इसके तहत उस स्थान में शिकार की उपलब्धता का ध्यान रखा गया है। साथ ही अन्य मानकों के साथ यह भी ध्यान रखा गया है कि चीते के प्राकृतिक वास के लिये कूनो राष्ट्रीय उद्यान की क्षमता कितनी है।

कूनो राष्ट्रीय उद्यान की वर्तमान क्षमता अधिकतम 21 चीतों की है। एक बड़ा इलाका बहाल हो जाने के बाद वहां 36 चीतों को रखा जा सकता है। शिकार किये जाने वाले जंतुओं की उपलब्धता बढ़ाकर कूनो वन्यजीव प्रखंड (1280 वर्ग किलोमीटर) का शेष हिस्सा भी इसमें शामिल किया जा सकता है।

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भारत में चीते को दोबारा स्थापित करने सम्बंधी वित्तीय और प्रशासनिक समर्थन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, एनटीसीए के जरिये करेगा। सरकार और कॉर्पोरेट एजेंसियों की भागीदारी कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व के माध्यम से होगी। राज्य और केंद्रीय स्तर पर अतिरिक्त वित्तपोषण के लिये इन्हें प्रोत्साहित किया जायेगा। भारत वन्यजीव संस्थान, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मांसाहारी जंतु/चीता विशेषज्ञ/एजेंसियां कार्यक्रम के लिये तकनीकी जानकारी प्रदान करेंगी।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, एनटीसीए, डब्लूआईआई, राज्य वन विभागों के अधिकारियों को भारत में चीते को दोबारा स्थापित करने के प्रति जागरूक किया जायेगा। यह कार्य अफ्रीका के चीता संरक्षण क्षेत्रों में क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के जरिये किया जायेगा। इसके अलावा अफ्रीका के चीता प्रबंधन-कर्ताओं और जीव-विज्ञानियों को अपने भारतीय समकक्षों को प्रशिक्षित करने के लिये आमंत्रित किया जायेगा।

कूनो राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन आवश्वक सुरक्षा और प्रबंधन की निगरानी करने के लिये जिम्मेदार होगा, जिस समय चीता शोध दल वहां शोध की देखरेख कर रहा होगा। स्थानीय ग्रामीणों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये विभिन्न संपर्क और जागरूकता कार्यक्रम चलाये जायेंगे। सरपंच, स्थानीय नेता, अध्यापक, सामाजिक कार्यकर्ता, धार्मिक हस्तियां और गैर-सरकारी संगठन संरक्षण में हितधारक बनाये जायेंगे। स्कूलों, कॉलेजों और गांवों में लोगों को संरक्षण तथा वन विभाग में उपलब्ध विभिन्न योजनाओं के प्रति जागरूक करने के लिये जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा। स्थानीय समुदायों के लिये जन जागरूकता अभियान चलाये जा रहे हैं, जिनका स्थानीय शुभंकर “चिंटू चीता” है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने सभी राज्य अधिकारियों और कूनो राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के निर्वाचन क्षेत्रों से चुनकर आये विधायकों से आग्रह किया है कि वे चीता-मनुष्य पारस्परिक सम्बंधों के बारे में जानकारी का प्रसार करें।

वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप भारत में चीते को दोबारा स्थापित करने का कार्य पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) कर रहा है तथा उसका मार्गदर्शन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नामित विशेषज्ञ समिति कर रही है।

 

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