राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा, खासतौर से आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय में कमी संबंधी अनुमानों में अशुद्धियों पर मीडिया में आई खबरें गलत और भ्रामक हैं

राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (एनएचए) में विशेष रूप से आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय में कमी के दावे में अशुद्धि बताने वाली मीडिया में आई रिपोर्ट भ्रामक और गलत है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा रिपोर्ट देश में स्वास्थ्य क्षेत्र पर किए गए व्यय पर विस्तृत जानकारी प्रदान करती है। ये अनुमान महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये न केवल देश की मौजूदा स्वास्थ्य प्रणाली का प्रतिबिंब हैं बल्कि सरकार को विभिन्न स्वास्थ्य वित्त पोषण संकेतकों में हुई प्रगति की निगरानी करने में सक्षम बनाते हैं।

हाल के एनएचए अनुमान (2018-19) में आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (ओओपीई) में पर्याप्त कमी दिखाई गई है, जो नागरिकों के वित्तीय बोझ को कम करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है। इस डेटा को एक निजी भारतीय विश्वविद्यालय में काम कर रहे स्वास्थ्य अर्थशास्त्र के एक विशेषज्ञ द्वारा “मृगतृष्णा” कहना और मीडिया के कुछ वर्गों में उनकी बात को उद्धृत किया जाना अनुचित और असंगत है।

आइए इन अनुमानों- राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (एनएसओ) के आंकड़ों के आधार पर उठाए गए सवालों से शुरू करते हैं। ओओपीई के लिए सूचना का मुख्य स्रोत 2017-18 के एनएसओ डेटा पर आधारित था जबकि पिछले अनुमान 2014 पर आधारित थे। 71वें और 75वें दौर के दोनों सर्वेक्षण घरों के चयन के लिए एक ही नमूना डिजाइन का उपयोग करते हैं ताकि यह दोनों दौर की तुलनात्मकता सुनिश्चित कर सके।

इसके अलावा 2017-18 का डेटा एक साल का सर्वेक्षण था जबकि 2014 का डेटा छह महीने की अवधि में किए गए सर्वेक्षण पर आधारित था। इस बात के मद्देनजर कि इस मामले में मौसम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, 2017-18 का सर्वेक्षण निश्चित रूप से पिछले सर्वेक्षण की तुलना में अधिक मजबूत था। और जबकि उन्हीं विशेषज्ञों ने 2014 के आंकड़ों को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है, उनका 2017-18 के आंकड़ों को ‘संदिग्ध’ बताना अनुचित है।

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इस तरह की आलोचना उनके द्वारा अपने विशिष्ट तर्क को आगे बढ़ाने के लिए डेटा का चयनात्मक ढंग से उपयोग करने पर आधारित है। उनका अपने दावे के समर्थन में यह कहना कि  “गड़बड़ लगता है/असंभव लगता है”, केवल काल्पनिक असहमति लगता है।

सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग में वृद्धि एनएसओ 2017-18 का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू रहा है। प्रतिष्ठित आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक ‘इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली’ में एनएसएस के इन राउंड्स के संबंध में प्रकाशित मुरलीधरन एट अल (2020) के अध्ययन में कहा गया है कि 2017-18 में ओओपीई में गिरावट देखी गई है।

इसके अलावा, उनका कहना है कि यह गिरावट दो एनएसएस दौरों के बीच आउट पेशेंट और इनपेशेंट सेवाओं के लिए सार्वजनिक सुविधाओं के उपयोग में वृद्धि से प्रेरित है। वे यह भी पाते हैं कि न केवल सार्वजनिक सुविधाओं के उपयोग में वृद्धि हुई है बल्कि सार्वजनिक सुविधाओं में औसत ओओपीई में भी गिरावट आई है। एनएसएस के उपलब्ध साक्ष्य सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग में बढ़ती प्रवृत्ति को भी दर्शाते हैं।  

 

एनएसएस के अनुसार, अंतिम 15 दिनों में चिकित्सा सलाह लेने वालों में सरकारी सुविधाओं के उपयोग में लगभग 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अस्पताल में भर्ती होने के मामले में, यह वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 4 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 3 प्रतिशत है। प्रसव के मामले में ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी सुविधाओं की हिस्सेदारी में 13 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

साथ ही, अस्पताल में भर्ती होने के मामलों में सरकारी सुविधाओं में औसत चिकित्सा व्यय में 20 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। संस्थागत प्रसव के मामले में शहरी क्षेत्रों में 9 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 16 प्रतिशत की गिरावट आई है।

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कुछ विशेषज्ञों ने अस्पताल में भर्ती होने की दरों में गिरावट पर भी सवाल उठाया है, उनका दावा है कि इसके लिए “कोई तार्किक स्पष्टीकरण नहीं” मिला है। वे जो देखने या स्वीकार करने में विफल रहे हैं, वह है इनपेशेंट देखभाल से आउट पेशेंट देखभाल में वैश्विक बदलाव, कई देशों ने विशेष रूप से इस बदलाव को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियों को डिजाइन किया है।

अंतिम 15 दिनों में चिकित्सा सलाह के आधार पर उपचार लेने वालों में आउट पेशेंट चाहने वालों की तुलना में कुछ प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एनएसएस 71वें राउंड और एनएसएस 75वें राउंड के बीच चिकित्सा सलाह के आधार पर उपचार लेने वालों में, आउट पेशेंट देखभाल चाहने वाले लोगों की हिस्सेदारी में लगभग 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि इन पेशेंट सेवाओं से आउट पेशेंट सेवाओं की ओर बदलाव को इंगित करती है यानी लोग इन पेशेंट देखभाल की जगह आउट पेशेंट देखभाल को तरजीह दे रहे हैं।  

अतः एनएचए 2018-19 को लेकर की जा रही आलोचना  तथ्यों और ठोस कारणों की उपेक्षा करने और इसे उचित साबित करने का दायित्व दूसरों पर डालने का विशिष्ट उदाहरण है।

सरकारी स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि की एक आलोचना पूंजीगत व्यय को शामिल करना है। यदि हम वर्तमान स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में देखें, तो भी इसमें 2013-14 से लगातार वृद्धि हुई है।

 

 

सरकार का मौजूदा स्वास्थ्य खर्च 2013-14 और 2017-18 के बीच लगातार बढ़ा है। सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में, यह समान अवधि के लिए 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि है।

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एमजी/एएम/एसएम/ओपी