आखिर पायलट और उनके समर्थकों को कब तक दूर रखा जाएगा?

उधर सुष्मिता सेन ममता बनर्जी की गोदी बैठी इधर राजस्थान में अजय माकन ने कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सचिन पायलट की मिजाजपुर्सी की।
आखिर पायलट और उनके समर्थकों को कब तक दूर रखा जाएगा?
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16 अगस्त को महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुष्मिता सेन ने कांग्रेस छोड़कर पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी की सदस्यता ग्रहण कर ली। सुष्मिता सेन का इस तरह चला जाना कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए झटका है। सुष्मिता को भी राहुल गांधी की टीम का सदस्य माना जाता था, इसलिए उन्हें महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। सुष्मिता का जाना कांग्रेस के लिए इसलिए भी मायने रखता है कि पूर्व में मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया, उत्तर में जितिन प्रसाद भी युवा नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। युवाओं में सुष्मिता सेन तीसरी बड़ी नेता है, जिनका कांग्रेस से मोह भंग हुआ। सब जानते हैं कि राजस्थान में भी पिछले एक वर्ष से युवा नेता सचिन पायलट असंतुष्ट चल रहे हैं। पायलट के भाजपा में जाने की खबरें उड़ती रही हैं,लेकिन विपरीत परिस्थितियों के बाद भी पायलट अपने 18 समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस में बने हुए हैं। इन हालातों को देखते हुए ही 17 अगस्त को कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान के प्रभारी अजय माकन ने सचिन पायलट की मिजाजपुर्सी वाला बयान दिया। गांधी परिवार के भरोसे मंद माकन ने कहा कि सचिन पायलट की नाराजगी को जल्द दूर किया जाएगा। माकन ने यह भी कहा कि अशोक गहलोत मंत्रिमंडल में फेरबदल भी जल्द होगा। असल में अजय माकन ऐसा कई बार कह चुके हैं, लेकिन कोई परिणाम सामने नहीं आया है। कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व यह नहीं चाहेगा कि सुष्मिता सेन के बाद पायलट भी कांग्रेस छोड़ दें। हालांकि खुद पायलट भी कई बार कह चुके हैं कि वे कांग्रेस में ही बने रहेंगे, लेकिन पायलट का यह सार्वजनिक तौर पर कहना है कि गत विधानसभा चुनाव के मौके पर उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने जो वादे किए थे, उन्हें अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने पूरे नहीं किए है तथा जिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाजपा के पांच वर्ष के शासन में संघर्ष किया, उन्हें सरकार और संगठन में सम्मान नहीं मिला है। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनाने में भले ही पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका रही हो, लेकिन आज मुख्यमंत्री गहलोत, पायलट को पसंद नहीं करते हैं। यह सही है कि मौजूदा समय में गहलोत अपने दम पर कांग्रेस की सरकार चलाने की स्थिति में हैं, लेकिन क्या अगला विधानसभा चुनाव सचिन पायलट के सहयोग के बगैर कांग्रेस जीत पाएगी? सवाल यह भी है कि यही हालात रहे तो विधानसभा चुनाव में पायलट के वायदों पर कौन भरोसा करेगा। 2018 में सचिन पायलट ही मुख्यमंत्री बनेंगे इसलिए भाजपा का एक भी गुर्जर उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका। इससे गुर्जर समुदाय पर पायलट के असर का अंदाजा लगाया जा सकता है। आखिर अशोक गहलोत अपनी राजनीति से पायलट और उनके समर्थकों को कब तक कांग्रेस से दूर रखेंगे?