तथ्य बनाम मिथक

2007-08 में भारत के पास -16.6 फीसदी विद्युत की भारी कमी थी। 2011-12 में भी यह आंकड़ा -10.6 फीसदी था। सरकार के बहुआयामी, व्यापक और आक्रामक हस्तक्षेपों के जरिए अब यह घाटा लगभग समाप्त होने के करीब है। पिछले 3 वर्षों में इसमें लगातार कमी आई है। 2020-21 में यह आंकड़ा -.4 फीसदी, 2019-20 में -.7 फीसदी और 2018-19 में -.8 फीसदी रहा है। वहीं, चालू वर्ष के दौरान अक्टूबर तक यह -1.2 फीसदी रहा है। इसमें मामूली बढ़ोतरी वार्षिक मानसून के बाद विद्युत उत्पादन पर पड़ने वाले दबाव की वजह से हुई है। हालांकि, इसके भी साल के अंत तक सामान्य होने की संभावना है। विद्युत की भारी कमी वाले देश से, एक फीसदी से कम की अत्यंत मामूली कमी को छोड़कर, मांग के अनुरूप पूर्ति की स्थिति में यह परिवर्तन मौजूदा सरकार द्वारा इस दु:खद स्थिति के समाधान के लिए शुरू की गई निम्नलिखित योजनाओं के जरिए संभव किया गया है।

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25 जुलाई, 2015 को दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेवाई) की शुरुआत की गई थी। यह योजना ग्रामीण क्षेत्र में ट्रांसमिशन (पारेषण) और सब-ट्रांसमिशन प्रणाली की स्थापना करके बुनियादी ढांचे को आगे बढ़ाने के लिए लाई गई थी। वहीं, 20 नवंबर 2014 को शहरी क्षेत्रों में विद्युत संबंधी बुनियादी ढांचे में कमी को दूर करने के लिए एकीकृत विद्युत विकास योजना (आईपीडीएस) शुरू की गई थी। इसके अलावा 25 सितंबर, 2017 को प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना योजना (सौभाग्य) की शुरुआत हर घर (इच्छुक) तक विद्युत पहुंचाने की सोच के साथ की गई। इस योजना के जरिए वैसे 2.8 करोड़ घरों में विद्युत कनेक्शन दिया गया, जो अब तक अंधेरे में रहने को मजबूर थे।

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इन प्रयासों के परिणामस्वरूप पिछले लगभग 7 वर्षों में देश की स्थापित विद्युत क्षमता में 1,55,377 मेगावाट की बढ़ोतरी हुई है।

संदर्भ के लिए 2007-08 से देश में विद्युत आपूर्ति की स्थिति निम्नलिखित है।

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