भगवान बिरसा मुंडा के पोते श्री सुखराम मुंडा ने आदि महोत्सव का उद्घाटन किया – यह जनजातीय संस्कृति, शिल्प और वाणिज्य की भावना का उत्सव है

 

आज़ादी के अमृत महोत्सव और जनजातीय गौरव दिवस के समारोह के उपलक्ष्य में जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ लिमिटेड (ट्राइफेड), जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार अनेक कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। इनमें से एक “आदि महोत्सव”, दिल्ली हाट, नई दिल्ली में 16 से 30 नवंबर, 2021 तक आयोजित किया जाने वाला एक बड़ा राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव है। इस उत्सव का उद्घाटन 16 नवंबर, 2021 को शाम 6.30 बजे भगवान बिरसा मुंडा के पोते श्री सुखराम मुंडा ने किया। केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता की। शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष सरकार,  सांसद श्रीमती एम.सी. मैरी कॉम, ट्राइफेड के अध्यक्ष श्री रामसिंह राठवा उद्घाटन समारोह के विशिष्ट अतिथि थे।

             

 

समारोह की अध्यक्षता करते हुए श्री अर्जुन मुंडा ने कहा, “मुझे इस बात पर बहुत गर्व और प्रसन्नता हो रही है कि आदि महोत्सव को जनजातीय उत्पादों और जनजातीय संस्कृति के प्रदर्शन के लिए एक मंच के रूप में स्थापित किया गया है। ट्राइफेड और जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा आयोजित आदि महोत्सव न केवल जनजातीय वाणिज्य का विस्तार करने का अवसर प्रदान करता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि जनजातीय शिल्प, खान-पान और अन्य परंपराओं का भी रखरखाव किया जाए। इस उद्यम की सफलता और उसके बाद के विस्तार ने जनजातियों को एक नए जोश और आत्मविश्वास की बड़ी भावना से भर दिया है और वे इस वार्षिक आयोजन की प्रतीक्षा करते हैं। मैं सभी दिल्लीवासियों से यह अनुरोध करना चाहता हूं कि वे इस 15 दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय उत्सव में आए और इनके व्यंजनों, शिल्प, कला और अन्य उत्पादों के माध्यम से समृद्ध और स्वदेशी आदिवासी संस्कृति का हिस्सा बने। ”

 

इस अवसर पर श्री सुखराम मुंडा ने कहा, “इस उत्सव का उद्घाटन करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है, जो आजादी का अमृत महोत्सव और मेरे दादा, महान स्वतंत्रता सेनानी, बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि के रूप में जनजातीय गौरव दिवस का एक हिस्सा है।  उन्होंने औपनिवेशिक शासन के अत्याचार के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी और जनजातीय समुदाय के बीच ज, जंगल और जमीन के महत्व की नींव रखी। यह बात मुझे बहुत खुशी देती है कि सरकार हमारे देश की जनजातियों को सशक्त बनाने और गुमनाम आदिवासी नायकों की स्मृति को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित करने के अपने विज़न के साथ आगे बढ़ रही है।”

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आदि महोत्सव – जनजातीय संस्कृति, शिल्प, खान-पान और वाणिज्य की भावना का समारोह है और यह एक सफल वार्षिक पहल है, जिसकी शुरूआत वर्ष 2017 में हुई थी। यह उत्सव देश के जनजातीय समुदायों की समृद्ध, विविध शिल्प और जनजातीय संस्कृति से लोगों को एक ही स्थान पर परिचित कराने का एक प्रयास है।

 

महामारी के कारण पैदा हुई अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण आदि महोत्सव का  आयोजित नहीं किया गया था, लेकिन अब ट्राइफेड ने फरवरी में एक सफल संस्करण के साथ इस परम्परा को फिर से शुरू किया। फरवरी 2021 में दिल्ली हाट में आयोजित राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव में जनजातीय कला और शिल्प, चिकित्सा और उपचार, व्यंजन और लोक कलाओं का प्रदर्शन किया गया और इन वस्तुओं की बिक्री भी की गई। इस हाट में देश के 20 से अधिक राज्यों के लगभग 1000 जनजातीय कारीगरों, कलाकारों और रसोइयों ने भाग लिया और अपनी समृद्ध पारंपरिक संस्कृति की झलक का प्रदर्शन किया हैं।

 

नवंबर संस्करण में पूरे देश की हमारी जनजातियों की समृद्ध और विविध विरासत का प्रदर्शन किया जाएगा, जो इनकी कला, हस्तशिल्प, प्राकृतिक उत्पाद और मनोरम व्यंजनों में देखा जाता है। 200 से अधिक स्टॉल लगने की उम्मीद है और इस 15 दिवसीय उत्सव में एक बार फिर 1000 से अधिक जनजातीय कारीगर और कलाकार भाग लेंगे। जनजातियों से जुड़ने के लिए दो दिवसीय कार्यशाला एवं जनजातीय वार्ता भी आयोजित की जाएगी। आयोजित किए जाने वाले चर्चा सत्रों की योजना उद्यमिता विकास, विपणन और प्रचार, जनजातीय व्यवसाय को ऑनलाइन करने, जनजातीय कलाकृतियों के लिए नए रुझानों और बाजार की संभावनाओं को समझने, वित्तीय संस्थानों की भागीदारी और जनजातीय लोगों की शिक्षा के बारे में बनाई गई है। ये सत्र भारतीय मशरूम परिषद, एंड्रयू यूल, रिलायंस फाउंडेशन, अमेजॉन, फेसबुक, ओएनजीसी, टाटा ट्रस्ट, पेटीएम, एसबीआई के विशेषज्ञों द्वारा लिए जाएंगे। इस दो दिवसीय कार्यशाला में भारत की 20 प्रमुख जनजातियों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया जा रहा है।

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जनजातियों की हमारी आबादी में 8 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी हैं, हालांकि वे समाज के वंचित वर्गों में से हैं। हमारी मुख्यधारा में इस दृष्टिकोण की गलत धारणा व्याप्त है कि जनजातियां सिखाने और मदद करने के लिए है। हालांकि सच्चाई कुछ और ही है जनजातियों के पास शहरी भारत को सिखाने के लिए बहुत कुछ है। प्राकृतिक सादगी की विशेषता से उनकी रचनाओं में एक कालातीत अपील मौजूद है। उनकी हस्तशिल्प की विस्तृत श्रृंखला में हाथ से बुने हुए सूती, रेशमी कपड़े, ऊन, धातु शिल्प, टेराकोटा, मनका-कार्य शामिल हैं और इन सभी को संरक्षित करने और बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है।

 

जनजातीय कार्य मंत्रालय के तहत ट्राइफेड एक नोडल एजेंसी के रूप में जनजातीय लोगों के जीवन और परंपराओं को संरक्षित करते हुए उनकी आय और आजीविका में सुधार लाने के लिए लगातार कार्य कर रहा है।

 

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