भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का संसद के संयुक्त अधिवेशन में अभिभाषण

माननीय सदस्यगण,

 

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“मेरा आदर्श एक ऐसा समाज होगा जो स्वाधीनता, समानता और भाई-चारे पर आधारित हो।… प्रजातन्त्र, सरकार का एक स्वरूप मात्र नहीं है।… प्रजातन्त्र का मूल है, अपने साथियों के प्रति आदर और सम्मान की भावना।”  

बाबा साहब के इन आदर्शों को मेरी सरकार अपने लिए ध्येय वाक्य मानती है। मेरी सरकार की आस्था, अंत्योदय के मूल मंत्र में है, जिसमें सामाजिक न्याय भी हो, समानता भी हो, सम्मान भी हो और समान अवसर भी हों। इसलिए आज सरकार की नीतियों में गाँव, गरीब, पिछड़े, अनुसूचित जाति एवं जनजातियों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। हाल के वर्षों में पद्म पुरस्कारों के चयन में भारत की यह भावना भलीभाँति झलकती है। विविधता से भरे भारत में, देश के कोने-कोने में समर्पित जीवन जीने वाले लोग राष्ट्र-सेवा में जुटे हुए हैं। उनमें भारत की शक्ति के दर्शन होते हैं।

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कर्क्क कसड्डर कर्पवइ कट्रपिन्,

निर्क्क अदर्क्क तग ।

अर्थात, एक व्यक्ति जो कुछ भी सीखता है, वह उसके आचरण में दिखाई देता है।

 

आत्म-निर्भर भारत के संकल्प व सामर्थ्य को आकार देने के लिए मेरी सरकार, देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू कर रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से स्थानीय भाषाओं को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। स्नातक पाठ्यक्रमों की महत्वपूर्ण प्रवेश परीक्षाएं भारतीय भाषाओं में भी संचालित करने पर जोर दिया जा रहा है। इस वर्ष 10 राज्यों के 19 इंजीनियरिंग कॉलेजों में 6 भारतीय भाषाओं में पढ़ाई शुरू हो रही है।

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जय हिन्द!

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DS/BM