डीसी विद्युत क्षेत्र का उपयोग करते हुए गोल्ड-नैनोरोड्स के गुणों की ट्यूनिंग खाद्य प्रदूषण का अधिक कुशल तरीके से पता लगाने का मार्ग प्रशस्त करती है

अभी हाल में किए गए अध्ययन में  भारतीय शोधकर्ताओं ने यह पता लगया है कि गोल्ड-नैनोरोड्स के गुणों की सेंसर तैयार करने के लिए बाह्य बलों का उपयोग करते हुए ट्यूनिंग की जा सकती है जो अणुओं की छोटी मात्रा का भी पता लगा सकते हैं। इससे खाद्य प्रदूषण का पता लगाने के अधिक कुशल तरीके का मार्ग प्रशस्त होता है।

गोल्ड नैनोरोड्स में विशिष्ट प्लास्मोनिक गुण होते हैं। इनका उपयोग सूक्ष्म मात्रा में भी कणों (अणुओं के फीमेटो-मोल्स) का पता लगाने और लॉ-क्वांटम वाले अणुओं की फ्लोरोसेंट वृद्धि में सेंसरों के रूप में उपयोग किया जा सकता है। सेंसर के रूप में उपयोग करने के लिए इसके लिए कणों को 2डी सारणियों में व्यवस्थित करने की जरूरत होती है।

रमन अनुसंधान संस्थान बैंगलोर  भारत सरकार के  विज्ञान एव प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त संस्थान है। इस संस्थान के डब्ल्यू ज़ैबुदीन और रंजिनी बंद्योपाध्याय ने विद्युत क्षेत्र का उपयोग करते हुए आदेशित नैनोरोड्स के डोमेन (प्रक्षेत्र) आकार को बढ़ाने का प्रयास किया। उन्होंने विद्युत क्षेत्र की दिशा और आयाम को बदल दिया, जिसने उन्हें डोमेन मॉर्फोलॉजीज पर नियंत्रण प्राप्त हुआ।

गोल्ड नैनोरोड्स (एयू-एनआर) की एक कोलाइडल छोटी बूंद को वाष्पित होने के दौरान एक विद्युत क्षेत्र में रखा गया था। इस घटना के दौरान, नैनोरोड्स ने एक असेंबली का निर्माण किया जिससे बहुत ही सूक्ष्म और विशिष्ट संरचनाओं या पैटर्न का निर्माण हुआ। इन संरचनाओं के अवलोकन से अनुसंधानकर्ताओं को यह पता चला कि ये गोल्ड नैनोरोड बूंद में एक बाह्य प्रवाह की उपस्थिति के कारण छोटी बूंद को केंद्र से उसके किनारे की ओर धकेल गया है, जिसके कारण कॉफी के दाग जैसे पैटर्न का निर्माण हुआ है। 

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जब इन पैटर्नों को एक बहुत शक्तिशाली माइक्रोस्कोप (सूक्ष्मदर्शी) द्वारा देखा गया, तो यह पाया गया है कि अधिकांश नैनोरोड रिंग के बाहरी किनारे पर एकत्रित हुए और कुछ कण रिंग के मध्य भाग में बिखरी हुई व्यवस्था में बने रहे। इसका यह अर्थ हुआ कि कोई ऐसा प्रवाह जरूर रहा है जिसने बाह्य प्रवाह का प्रतिकार किया है। यह प्रति-प्रवाह मारंगोनी प्रभाव के कारण हुआ जो एक ऐसी घटना है जो सतही दवाब में झुकाव के परिणामस्वरूप पैदा होती है। यह प्रभाव ठोस कणों को किनारे पर एकत्र होने से रोकता है और पूरी प्रक्रिया को लम्बा करता है। यह शोधकार्य हाल ही में ‘सॉफ्ट मैटर’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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शोध दल ने यह अध्ययन भी किया कि गोल्ड नैनोरोड्स डीसी विद्युत क्षेत्र की अनुपस्थिति और उपस्थिति में किस प्रकार प्रतिक्रिया करते हैं। डीसी विद्युत क्षेत्र की अनुपस्थिति में समांगी रूप से संरेखित एयू-एनआर के कई क्षेत्रों का भी पता चला था। जब एक डीसी विद्युत क्षेत्र को सब्सट्रेट के लंबवत लागू किया गया था, तो कॉफी रिंग के बाहरी किनारे पर एयू-एनआर को घूमता हुआ पाया और लागू क्षेत्र की दिशा के साथ संरेखित पाया गया। हालांकि, कॉफी रिंग के अन्य क्षेत्रों में, एयू-एनआर समूहों का ऑरिएंटेशन विद्युत क्षेत्र की उपस्थिति में उदासीन पाया गया।

वैज्ञानिकों ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि, बाह्य बलों को लागू करके, इन नैनोरोड्स के गुणों की ट्यूनिंग की जा सकती है, जिससे अणुओं की सूक्ष्म मात्रा का पता लगाने के लिए सेंसर तैयार करने जैसे तकनीकी प्रभाव पड़ते हैं।

 

 

प्रकाशन लिंक: डीओआई: 10.1039/d1sm00820j

 

https://pubs.rsc.org/en/content/articlelanding/2021/sm/d1sm00820j

 

अधिक जानकारी के लिए रंजिनी बंद्योपाध्याय (rajnjini[at]rri[dot]res[dot]in) और अबीगैल डी सूजा (abigail[at]rri[dot]res[dot]in) से संपर्क किया जा सकता है।

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