प्रधानमंत्री बजट के मद्देनजर कल ‘कोई भी नागरिक पीछे न छूटे’ विषय पर वेबिनार को संबोधित करेंगे

उप-विषय

केंद्रीय बजट 2022-23 में घोषित पहलों पर चर्चा करने के लिए 23.02.2022 को एक वेबिनार का आयोजन किया जा रहा है। वेबिनार के उद्घाटन सत्र को प्रधानमंत्री संबोधित करेंगे। वेबिनार में छह ब्रेकआउट सत्र होंगे। इसमें भूमि अभिलेख प्रबंधन से संबंधित बजट में घोषित पहलों को भी शामिल किया जाएगा। वेबिनार के पांचवें ब्रेकआउट सत्र का विषय एंड-टु-एंड डिजिटलीकरण के माध्यम से भूमि प्रबंधन प्रणाली को आसान बनाना है।

ब्रेकआउट सत्र की अध्यक्षता इस्पात और ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते करेंगे। श्री अजय तिर्की, सचिव, डीओएलआर संचालन करेंगे और श्री सुनील कुमार सचिव, एमओपीआर सह-संचालन करेंगे। श्री एच एस मीणा, अपर सचिव, डीओएलआर; श्री पी एस आचार्य, सीई, एनएसडीआई; श्री अजय कुमार, सी-डीएसी; श्री रोहन वर्मा सीईओ, मैपमाईइंडिया; लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) गिरीश कुमार, भारत के पूर्व महासर्वेक्षक वक्ता/विशेषज्ञ होंगे।

वेबिनार के दौरान निम्नलिखित उप-विषयों पर चर्चा की जाएगी।

विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या (यूएलपीआईएन)

भूमि के टुकड़े की यूनिक भूखंड पहचान संख्या (यूएलपीआईएन) किसी भी व्यक्ति के आधार नंबर की तरह होती है। डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के तहत यूएलपीआईएन को लॉन्च किया गया है। यूएलपीआईएन देश में प्रत्येक भूखंड के लिए 14 अंकों की एक विशिष्ट आईडी है। यह भूखंड के देशांतर और अक्षांश निर्देशांक पर आधारित होती है और सर्वेक्षण व भूमि के मानचित्रों पर निर्भर करता है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की होती है और इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स कोड मैनेजमेंट एसोसिएशन मानक और ओपन जियोस्पेशियल कंसोर्टियम मानकों का अनुपालन करती है। यह ऐसी होती है, जिससे सभी राज्य आसानी से इसे अपना सकें।

यूएलपीआईएन के अनेक लाभ हैं। सूचना का एकल स्रोत स्वामित्व को प्रमाणित करता है और बदले में, यह संदिग्ध स्वामित्व को समाप्त कर सकता है। इससे सरकारी जमीनों की आसानी से पहचान करने और जमीन के लेनदेन में गड़बड़ी से बचाव होगा। यूएलपीआईएन विभागों, वित्तीय संस्थानों और सभी हितधारकों के बीच भूमि रिकॉर्ड डेटा साझा करना भी सुनिश्चित करेगा।

अब तक इसे 13 राज्यों में लागू किया जा चुका है और अन्य 6 राज्यों में पायलट परीक्षण किया जा चुका है। विभाग ने वित्त वर्ष (वित्त विर्ष 2022-23) के अंत तक पूरे देश में भूखंड को विशिष्ट आईडी आवंटित करने की प्रक्रिया को पूरा करने का निर्णय लिया है।

राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज पंजीकरण प्रणाली (एनजीडीआरएस) का विकास

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एनआईसी द्वारा विकसित पंजीकरण प्रणाली के लिए एनजीडीआरएस एक इन-हाउस आधुनिक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है। यह सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन देश में राज्य की विशिष्ट जरूरतों के हिसाब से लचीला और सुसंगत है। यह पारदर्शिता, दस्तावेजों के निष्पादन में अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करता है, साथ ही पंजीकरण दस्तावेजों के लिए बार-बार कार्यालय आने की जरूरत नहीं पड़ती और खर्च व समय भी कम लगता है। अब तक कुल 12 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने एनजीडीआरएस को अपनाया है, जिसमें इन राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की 22 करोड़ से अधिक आबादी कवर होती है। अब तक (10.02.2022 तक) 29.91 लाख से अधिक दस्तावेज पंजीकृत किए जा चुके हैं। इसके तहत सरकार के लिए कारोबार सुगमता को बढ़ाने और नागरिकों के लिए जीवन यापन में सुगमता प्रदान करने के बारे में सोचा गया है।

यह भी अनुभव किया गया है कि एक व्यक्ति को संपत्तियों का पंजीकरण पूरा करने के लिए केवल एक या दो बार कार्यालय जाना पड़ता है जबकि पहले पंजीकरण पूरा करने के लिए उसे 8-9 बार विभिन्न कार्यालयों की दौड़ लगानी होती थी। रजिस्ट्री कार्यालय के अन्य कार्यालयों के साथ एकीकरण पर अधिक जोर दिया जाता है, जहां पंजीकरण कार्यों को पूरा करने के लिए कुछ जानकारी की आवश्यकता होती है। डीड पंजीकरण के बाद म्यूटेशन की सूचना अपने आप संबंधित विभाग को भेज दी जाती है। विभाग को पंजीकरण प्रक्रिया में डिजिटलीकरण की पहल के लिए डिजिटल इंडिया अवॉर्ड्स-2020 से सम्मानित किया गया है।

भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण भूमि के स्वामित्व के छेड़छाड़ को लेकर सबूत भी प्रदान करेगा।

बहुभाषी भूमि अभिलेख- भूमि अभिलेखों में भाषायी बाधाओं को खत्म करने के लिए

वर्तमान में, प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में अधिकारों का रिकॉर्ड स्थानीय भाषाओं में रखा जाता है। सूचना हासिल करने, उसे समझने और उसके इस्तेमाल के लिहाज से भाषीय रुकावटें गंभीर चुनौती पेश करती हैं।

भूमि प्रबंधन प्रणाली में भाषायी अड़चनों की समस्या को दूर करने के लिए, भूमि संसाधन विभाग ने सी-डैक, पुणे के तकनीकी सहयोग से इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) के तहत स्थानीय भाषा में उपलब्ध जानकारी को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में से किसी एक में करने (लिप्यंतरण) की पहल की है। पायलट टेस्ट (7 राज्यों- बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, पुदुचेरी, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और त्रिपुरा में) चल रहा है और अप्रैल 2022 तक अखिल भारतीय आधार पर उक्त पहल को शुरू करने का लक्ष्य रखा गया है।

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इस पहल से केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को फायदा होगा:

गांवों की आबादी का सर्वेक्षण और ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीक के इस्तेमाल से मैपिंग (स्वामित्व)

प्रधानमंत्री ने 20 अप्रैल 2020 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर स्वामित्व योजना की शुरुआत की। स्वामित्व योजना का उद्देश्य नवीनतम सर्वेक्षण ड्रोन तकनीक के जरिए बसावट वाली (आबादी) भूमि का सीमांकन करना और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकार/संपत्ति कार्ड का रिकॉर्ड प्रदान करना है। यह पंचायती राज मंत्रालय, राज्य के राजस्व विभागों, राज्य पंचायती राज विभागों और भारतीय सर्वेक्षण विभाग का एक सहयोगी प्रयास है। इस योजना में विविध पहलुओं को शामिल किया गया है जैसे- संपत्तियों के मुद्रीकरण को सुगम बनाना, बैंक लोन सरल होना, संपत्ति संबंधी विवाद कम करना और व्यापक ग्राम स्तरीय योजना को सुगम बनाना। योजना का पायलट प्रोजेक्ट 9 राज्यों के साथ साल 2020 में शुरू किया गया था। वर्तमान में, यह योजना 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में चल रही है और 2025 तक सभी गांवों को कवर करने का लक्ष्य है।

योजना की उपलब्धियां

22 फरवरी 2022 तक, 28 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 110,469 गांवों में ड्रोन उड़ाने का काम पूरा कर लिया गया है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दादरा नगर हवेली और दमन एवं दीव, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, छत्तीसगढ़ के 101 जिलों में ड्रोन ने उड़ान भरी।

हरियाणा के सभी गांवों और दादरा नगर हवेली और दमन एवं दीव में ड्रोन उड़ाने का काम पूरा कर लिया गया है। 31,316 गांवों के लिए करीब 41 लाख संपत्ति कार्ड तैयार किए गए हैं और 28,072 गांवों के लिए 36 लाख संपत्ति कार्ड बांटे गए हैं।

आर्थिक क्षमता

स्वामित्व योजना ने आउटसोर्सिंग के लिए सेवा कंपनियों के रूप में निर्माताओं, ड्रोन पायलटों, प्रशिक्षण संस्थानों और ड्रोन के माध्यम से देश में ड्रोन पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने की पहल की है। एमएसएमई और स्टार्ट-अप्स को शामिल करके, यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में कुशल कार्यबल को रोजगार देने के अवसर खोलता है। स्वामित्व योजना के तहत उच्च रिजॉलूशन वाले डिजिटल मैप उपलब्ध होने से जीआईएस स्पेस में नवाचार का मार्ग प्रशस्त होगा।

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