उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज स्कूलों और माता-पिता से भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने और बढ़ावा देने के प्रयासों के तहत बच्चों को उनकी पसंद की किसी भी कला विधा को सीखने के लिए प्रोत्साहित करने का आग्रह किया। अपनी बुनियाद की तरफ वापस जाने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने भारतीय समाज में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की अपील की।
उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि पश्चिमी संस्कृति के प्रति दीवानगी के कारण कठपुतली जैसी हमारे समृद्ध पारंपरिक लोक-कला विधा लुप्त हो रही है। न सिर्फ सरकार बल्कि व्यापक स्तर पर समाज की सक्रिय भागीदारी के साथ उन्हें पुनर्जीवित करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि कम उम्र में रचनात्मकता और कला के संपर्क में आने से बच्चों को अपने परिवेश के बारे में अधिक जागरूक बनने और उन्हें अधिक सार्थक जीवन जीने में मदद मिलेगी। श्री नायडु के मुताबिक शैक्षणिक संस्थानों को अपने पाठ्यक्रम में कला विषयों को समान महत्व देना चाहिए।
उपराष्ट्रपति संगीत नाटक अकादमी और ललित कला अकादमी फेलोशिप के साथ-साथ 2018 के अकादमी पुरस्कार और 62वें कला पुरस्कारों की राष्ट्रीय प्रदर्शनी के अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने विभिन्न कलाकारों को प्रदर्शन कला और ललित कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए सम्मान प्रदान किया।
The Vice President, Shri M. Venkaiah Naidu presenting the Sangeet Natak Akademi and Lalit Kala Akademi Awards and Fellowships at Vigyan Bhavan today. #AkademiAwards pic.twitter.com/pnT398VHjp— Vice President of India (@VPSecretariat) April 9, 2022
’आजादी का अमृत महोत्सव’ समारोह का जिक्र करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि कई गुमनाम नायकों ने हमारी आजादी के लिए बलिदान दिया लेकिन आम जनता उनकी गाथाओं से काफी हद तक अनजान हैं क्योंकि हमारी इतिहास की किताबों में पर्याप्त उन पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया। उन्होंने इन विकृतियों को दुरुस्त करने और इन अल्प ज्ञात नायकों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किए गए योगदान पर प्रकाश डालने की अपील की।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान देशभक्ति की भावना जगाने में दृश्य और प्रदर्शन कला की भूमिका को याद करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि ब्रिटिश उत्पीड़न की कहानियों को प्रभावी ढंग से बताने के लिए कला को एक ’शक्तिशाली राजनीतिक हथियार’के रूप में इस्तेमाल किया गया था। उन्होंने बताया कि कैसे रवींद्रनाथ टैगोर, सुब्रमण्यम भारती, काजी नजरूल इस्लाम और बंकिम चंद्र चटर्जी के ओजपूर्ण देशभक्ति गीतों और कविताओं ने जनता के बीच राष्ट्रवाद की भावना भरने का काम किया। उन्होंने जोर देते हुए कहा, ’’शक्तिशाली कलात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से हमारे स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान हमारे स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा है और इसे भुलाया नहीं जाना चाहिए’’ ।
’’हमारे समृद्ध अतीत को वर्तमान और भविष्य से जोड़ने वाली निरंतरता के सूत्र को मजबूत करने में कलाकारों के योगदान की सराहना करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि कला संस्कृतियां लोगों को एकजुट करती है, प्रभावित करती हैं और प्रेरित करती हैं और इस प्रकार ’इस प्रक्रिया में परिवर्तन का एक शक्तिशाली एजेंट बन जाती है। उन्होंने कहा, ’’यह हम सबका कर्तव्य है कि हम अपनी भव्य सांस्कृतिक परंपराओं और विभिन्न कला विधाओं को संरक्षित करें और उन्हें बढ़ावा दें।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में अति परिष्कृत कला की एक महती परंपरा है, जो प्राचीन ग्रंथों में वर्णित सिद्धांतों पर आधारित है। श्री नायडु ने दृश्य और प्रदर्शन कलाओं को संरक्षित करने की अपील की। उन्होंने कहा कि ये कलाएं से ’राष्ट्र की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के साथ जुड़े हुए हैं और हमारी राष्ट्रीय पहचान बनाती हैं।
केंद्रीय पर्यटन, संस्कृति और पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास मंत्री, श्री जी किशन रेड्डी, अध्यक्ष, संगीत नाटक अकादमी और ललित कला अकादमी, श्रीमती उमा नंदूरी, सचिव, संगीत नाटक अकादमी, श्रीमती तेम्सुनारो जमीर, सचिव, ललित कला अकादमी, श्री रामकृष्ण वेडाला, संयुक्त सचिव, वाणिज्य मंत्रालय, श्रीमती संजुक्ता मुद्गल, संयुक्त सचिव, संस्कृति, प्रतिष्ठित कलाकार और अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे।
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इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा कि भारतीय परंपरा के ध्वज को धारण करते हुए इसे देश के भीतर और बाहर ऊंचा उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले फेलो और पुरस्कार विजेताओं के योगदान को मान्यता देना मंत्रालय और भारत सरकार के लिए काफी प्रसन्नता और गर्व की बात है। उन्होंने यह भी कहा, ’’मुझे यह जानकर बहुत खुशी हो रही है कि ललित कला अकादमी ने इस वर्ष पुरस्कारों को 15 से बढ़ाकर 20 कर दिया है।’’
केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा, ’’हम सभी इस बात से सहमत हैं कि कला एक सभ्य समाज का सूचक है। यह न सिर्फ एक सांस्कृतिक पहचान बनाती है बल्कि लोगों को एकजुट करने का भी काम करती है। यह भारत जैसे विविधता वाले देश के लिए विशेष रूप से सही है। हमारे आरंभिक दौर के स्वतंत्रता सेनानियों ने इसे पहचाना और इतिहास की धारा को बदलने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया।
श्री जी.के. रेड्डी ने यह भी कहा, ’’आज हम सभी गर्व के साथ पीछे मुड़कर देख सकते हैं और देख सकते हैं कि आजादी के 75 साल में हम कितने आगे आ गए हैं। पूरा भारत हर्ष के साथ आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और हमारे स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों को श्रद्धांजलि दे रहा है। उनमें से कई कलाकार थे जिन्होंने अपने शांतिपूर्ण और रचनात्मक तरीके से भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। नाटकों और संगीतपूर्ण नाटकों ने कहानियों को इस तरह से बताया जिससे आम आदमी आसानी से जुड़ सके। इसी तरह कवियों और चित्रकारों ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई।
उपराष्ट्रपति, श्री एम. वेंकैया नायडु ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त समारोह में वर्ष 2018 के लिए संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप और संगीत नाटक पुरस्कार, और वर्ष 2021 के लिए ललित कला अकादमी के फैलोशिप और राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए।
संगीत नाटक पुरस्कार विजेताओं में मधुप मुद्गल – हिंदुस्तानी गायन मल्लादी सुरीबाबू – कर्नाटक गायन मणि प्रसाद – हिंदुस्तानी गायन एस करीम और एस बाबू – कर्नाटक वाद्य यंत्र – नागस्वरम (संयुक्त पुरस्कार)। ललित कला अकादमी के राष्ट्रीय पुरस्कार आनंद नारायण दाबली, भोला कुमार, देवेश उपाध्याय, दिग्विजय खटुआ, घनश्याम कहार सहित अन्य विजेताओं को प्रदान किया गया।
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एमजी/एएम/पीकेजे
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’आजादी का अमृत महोत्सव’ समारोह का जिक्र करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि कई गुमनाम नायकों ने हमारी आजादी के लिए बलिदान दिया लेकिन आम जनता उनकी गाथाओं से काफी हद तक अनजान हैं क्योंकि हमारी इतिहास की किताबों में पर्याप्त उन पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया। उन्होंने इन विकृतियों को दुरुस्त करने और इन अल्प ज्ञात नायकों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किए गए योगदान पर प्रकाश डालने की अपील की।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान देशभक्ति की भावना जगाने में दृश्य और प्रदर्शन कला की भूमिका को याद करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि ब्रिटिश उत्पीड़न की कहानियों को प्रभावी ढंग से बताने के लिए कला को एक ’शक्तिशाली राजनीतिक हथियार’के रूप में इस्तेमाल किया गया था। उन्होंने बताया कि कैसे रवींद्रनाथ टैगोर, सुब्रमण्यम भारती, काजी नजरूल इस्लाम और बंकिम चंद्र चटर्जी के ओजपूर्ण देशभक्ति गीतों और कविताओं ने जनता के बीच राष्ट्रवाद की भावना भरने का काम किया। उन्होंने जोर देते हुए कहा, ’’शक्तिशाली कलात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से हमारे स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान हमारे स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा है और इसे भुलाया नहीं जाना चाहिए’’ ।
’’हमारे समृद्ध अतीत को वर्तमान और भविष्य से जोड़ने वाली निरंतरता के सूत्र को मजबूत करने में कलाकारों के योगदान की सराहना करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि कला संस्कृतियां लोगों को एकजुट करती है, प्रभावित करती हैं और प्रेरित करती हैं और इस प्रकार ’इस प्रक्रिया में परिवर्तन का एक शक्तिशाली एजेंट बन जाती है। उन्होंने कहा, ’’यह हम सबका कर्तव्य है कि हम अपनी भव्य सांस्कृतिक परंपराओं और विभिन्न कला विधाओं को संरक्षित करें और उन्हें बढ़ावा दें।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में अति परिष्कृत कला की एक महती परंपरा है, जो प्राचीन ग्रंथों में वर्णित सिद्धांतों पर आधारित है। श्री नायडु ने दृश्य और प्रदर्शन कलाओं को संरक्षित करने की अपील की। उन्होंने कहा कि ये कलाएं से ’राष्ट्र की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के साथ जुड़े हुए हैं और हमारी राष्ट्रीय पहचान बनाती हैं।
केंद्रीय पर्यटन, संस्कृति और पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास मंत्री, श्री जी किशन रेड्डी, अध्यक्ष, संगीत नाटक अकादमी और ललित कला अकादमी, श्रीमती उमा नंदूरी, सचिव, संगीत नाटक अकादमी, श्रीमती तेम्सुनारो जमीर, सचिव, ललित कला अकादमी, श्री रामकृष्ण वेडाला, संयुक्त सचिव, वाणिज्य मंत्रालय, श्रीमती संजुक्ता मुद्गल, संयुक्त सचिव, संस्कृति, प्रतिष्ठित कलाकार और अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे।
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इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा कि भारतीय परंपरा के ध्वज को धारण करते हुए इसे देश के भीतर और बाहर ऊंचा उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले फेलो और पुरस्कार विजेताओं के योगदान को मान्यता देना मंत्रालय और भारत सरकार के लिए काफी प्रसन्नता और गर्व की बात है। उन्होंने यह भी कहा, ’’मुझे यह जानकर बहुत खुशी हो रही है कि ललित कला अकादमी ने इस वर्ष पुरस्कारों को 15 से बढ़ाकर 20 कर दिया है।’’
केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा, ’’हम सभी इस बात से सहमत हैं कि कला एक सभ्य समाज का सूचक है। यह न सिर्फ एक सांस्कृतिक पहचान बनाती है बल्कि लोगों को एकजुट करने का भी काम करती है। यह भारत जैसे विविधता वाले देश के लिए विशेष रूप से सही है। हमारे आरंभिक दौर के स्वतंत्रता सेनानियों ने इसे पहचाना और इतिहास की धारा को बदलने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया।
श्री जी.के. रेड्डी ने यह भी कहा, ’’आज हम सभी गर्व के साथ पीछे मुड़कर देख सकते हैं और देख सकते हैं कि आजादी के 75 साल में हम कितने आगे आ गए हैं। पूरा भारत हर्ष के साथ आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और हमारे स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों को श्रद्धांजलि दे रहा है। उनमें से कई कलाकार थे जिन्होंने अपने शांतिपूर्ण और रचनात्मक तरीके से भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। नाटकों और संगीतपूर्ण नाटकों ने कहानियों को इस तरह से बताया जिससे आम आदमी आसानी से जुड़ सके। इसी तरह कवियों और चित्रकारों ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई।
उपराष्ट्रपति, श्री एम. वेंकैया नायडु ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त समारोह में वर्ष 2018 के लिए संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप और संगीत नाटक पुरस्कार, और वर्ष 2021 के लिए ललित कला अकादमी के फैलोशिप और राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए।
संगीत नाटक पुरस्कार विजेताओं में मधुप मुद्गल – हिंदुस्तानी गायन मल्लादी सुरीबाबू – कर्नाटक गायन मणि प्रसाद – हिंदुस्तानी गायन एस करीम और एस बाबू – कर्नाटक वाद्य यंत्र – नागस्वरम (संयुक्त पुरस्कार)। ललित कला अकादमी के राष्ट्रीय पुरस्कार आनंद नारायण दाबली, भोला कुमार, देवेश उपाध्याय, दिग्विजय खटुआ, घनश्याम कहार सहित अन्य विजेताओं को प्रदान किया गया।
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