कोटा रेलवे अस्पताल में 29 साल सेवा देने वाली डॉ लीला जोशी को पद्मश्री, कोटा को मानती हैं कर्मभूमि, अभी ‘मदर ऑफ रतलाम’

कोटा रेलवे अस्पताल में 29 साल सेवा देने वाली डॉ लीला जोशी को पद्मश्री, कोटा को मानती हैं कर्मभूमि, अभी ‘मदर ऑफ रतलाम’
कोटा। कोटा को अपनी कर्मभूमि मानने वाली डॉक्टर की लीला जोशी को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है। जोशी को यह अवार्ड राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में दिया। उल्लेखनीय है कि जोशी ने कोटा रेलवे अस्पताल में 29 साल अपनी सेवा दी है। जोशी फिलहाल ‘मदर ऑफ रतलाम’ के नाम से जानी जाती हैं।
जोशी को पद्मश्री मिलने की जानकारी मिलते ही कोटा रेल मंडल कर्मचारियों में हर्ष की लहर छा गई। कर्मचारियों ने इसे कोटा मंडल के लिए गर्व की बताया।
पहली पोस्टिंग कोटा में
अवार्ड से काफी खुश नजर आ रही जोशी ने बातचीत के दौरान संवाददाता को बताया कि कोटा उनकी कर्मभूमि रही है। डॉक्टर की डिग्री मिलने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग कोटा रेल मंडल चिकित्सालय में स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में 1962 में हुई थी। इसके बाद उन्हे 1991 तक यहां लगातार काम करने का मौका मिला। इसके बाद उनका स्थानांतरण रेलवे बोर्ड में हो गया। यहां करीब डेढ़ साल काम करने के बाद उनका स्थानांतरण मुंबई हो गया। मुंबई में 4 साल काम करने के बाद उनका स्थानांतरण नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर गुवाहाटी रेलवे में मुख्य चिकित्सा निदेशक के पद पर हो गया। यहां से वह अक्टूबर 1996 को सेवानिवृत्त हो गईं।
संयोग से पहुंची रतलाम
जोशी ने बताया कि वह मूलतः उत्तराखंड नैनीताल अल्मोड़ा जिले की रहने वाली है। इसके चलते सेवानिवृत्ति के बाद उनका इरादा देहरादून में ही बसने का था। लेकिन सेंट्रल स्कूल में प्रिंसिपल उनकी बहन का स्थानांतरण देहरादून से रतलाम हो गया। इसके चलते वे उनके साथ रतलाम आ गई। यहां पर वह जैन दिवाकर अस्पताल में काम करने लगी। काम के दौरान उन्हें आदिवासियों की हालत नहीं देखी गई। इसके चलते दो-तीन साल बाद उन्होंने जैन दिवाकर अस्पताल छोड़ दिया और आदिवासियों के बीच काम करने का निर्णय लिया। यहां उन्होंने जनजातीय महिलाओं और बच्चों के एनीमिया रोग के खिलाफ करीब 22 साल काम किया। इसके चलते यहां के लोग उन्हें ‘मदर ऑफ रतलाम’ के नाम से पुकारने लगे। इसके बाद मेडिकल क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सरकार ने उन्हें पद्मश्री अवार्ड के लिए चुन लिया।
जोशी ने बताया कि आदिवासियों में अवेयरनेस की कमी है। यहां संसाधनों की कोई विशेष कमी नहीं है लेकिन इसका यूटिलाइजेशन सही तरीके से नहीं हो रहा है। इसके चलते आदिवासियों को परेशान होना पड़ता है।
जन्मभूमि रही रतलाम
जोशी ने बताया कि रतलाम उनकी जन्मभूमि रही है। उनके पिताजी रतलाम में रेलवे स्कूल में हेडमास्टर थे। एक निजी प्रश्न पर जोशी ने बताया कि लगातार काम के चलते हैं उन्हें शादी करने का समय ही नहीं मिला।
उल्लेखनीय है कि कोटा में काम के दौरान जोशी अपने व्यवहार को लेकर कर्मचारियों के बीच काफी लोकप्रिय थीं। पुरानी कर्मचारी आज भी जोशी को शिद्दत से याद करते हैं। कर्मचारियों ने जोशी को अवार्ड का सही अवतार बताया है।