Indian Railways : 180 की रफ्तार से डबल डेकर कोच का परीक्षण

Indian Railways : कोटा में हुआ डबल डेकर कोच का परीक्षण, 180 की रफ्तार से

दौड़ाया

Kota Rail News : कोटा मंडल में रविवार को डबल डेकर कोच का परीक्षण किया गया। परीक्षण के दौरान कोच को अधिकतम 180 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ाया गया। कोटा-नागदा रेल खंड में हुए इस परीक्षण को अधिकारियों ने पूरी तरह सफल बताया।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले एलएचबी रेक के पैंट्रीकार (रसोईया) कोच का भी परीक्षण किया गया था। इन कोचों के परीक्षण के लिए लखनऊ स्थित आरडीएसओ की एक टीम इन दिनों कोटा आई हुई है।
परीक्षण के लिए एक साल से खड़े थे कोच
गौरतलब है कि परीक्षण के लिए यह दोनों कोच पिछले एक साल से अधिक समय से कोटा में खड़े थे। परीक्षण के लिए यह कोच गत वर्ष मई में कोटा पहुंच चुके थे। लेकिन कोरोना और अन्य कारणों से इनका परीक्षण टलता जा रहा था।
सूत्रों ने बताया कि परीक्षण के दौरान कोच की स्प्रिंग की खास तौर से जांच की गई। इसके लिए डबल डेकर कोच से लोहे की हटाकर रबर की एयर स्प्रिंगें लगाई गई थीं। इन स्प्रिंगों की खासियत यह है कि बस्ट होने के बाद ट्रेन में अपने आप ब्रेक लग जाते हैं। इससे स्प्रिंग लीकेज होने, फूटने या बस्ट होने के बाद ट्रेन के दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा नहीं रहता। मौके पर स्प्रिंग ठीक नहीं होने के कारण ट्रेन को 60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से भी दौड़ाया जा सकता है।
अधिकारियों ने बताया कि यह स्प्रिंगें कोच के अनुसार अलग-अलग क्षमता की होती हैं। इस डबल डेकर कोच में 160 न्यूटन मीटर कैपेसिटी की एयर स्प्रिंगें लगाई गई हैं।
अधिकारियों ने बताया कि यह पूरा फेलियर इंडिकेशन ब्रेक अप्लाई (फिबा) सिस्टम कहलाता है। एयर स्प्रिंग के चलते घुमाव वाली जगह पर भी ट्रेनों की रफ्तार कम करने की जरूरत नहीं रहती। यह स्प्रिंगें कोच के वजन को आपस में एडजस्ट कर लेती हैं।
लोहे की स्प्रिंग में ट्रेन गिरने का खतरा
इसके उलट दौड़ती ट्रेन में लोहे की स्प्रिंग टूटने का पता नहीं चलता है। इसके चलते तेज रफ्तार से दौड़ती ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो सकती है। इस खतरे को टालने के लिए अब हर ट्रेन में लोहे की जगह एयर स्प्रिंगें लगाई जा रही हैं।
परीक्षण के लिए एक साल से खड़े थे कोच
गौरतलब है कि परीक्षण के लिए यह दोनों कोच पिछले करीब एक साल से अधिक समय से कोटा में खड़े थे। परीक्षण के लिए यह कोच गत वर्ष मई में ही कोटा पहुंच चुके थे। लेकिन कोरोना और अन्य कारणों से इनका परीक्षण टलता जा रहा था।
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