Rajasthan: आखिर गांधीवादी अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए सरकारी पैसे से अपनी प्रतिमा क्यों बनवाई।
Rajasthan: आखिर गांधीवादी अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए सरकारी पैसे से अपनी प्रतिमा क्यों बनवाई।

Rajasthan: आखिर गांधीवादी अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए सरकारी पैसे से अपनी प्रतिमा क्यों बनवाई।

Rajasthan: आखिर गांधीवादी अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए सरकारी पैसे से अपनी प्रतिमा क्यों बनवाई।
जल जीवन मिशन के 20 हजार करोड़ के घोटाले में भी पूर्व सीएम गहलोत को ही जवाब देना है।
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यदि मूर्तियों की सुपुर्दगी समय पर हो जाती तो कोटा के हैरिटेज चंबल रिवर फ्रंट पर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्रतिमा भी लग जाती। मालूम हो कि कांग्रेस के पिछले शासन में कोटा में सौंदर्यीकरण का जो कार्य हुआ, उसमें सरकारी पैसे से तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल, आर्किटेक्ट अनूप भरतरिया आदि की प्रतिमाएं भी बनाई गई। स्वाभाविक है कि जब किसी मुख्यमंत्री की प्रतिमा सरकारी पैसे बनवाई जाती है तो मुख्यमंत्री की स्वीकृति भी ली जाती है। किसी भी अधिकारी की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह मुख्यमंत्री से पूछे बिना प्रतिमा बनवा ले। कोटा के चंबल रिवर फ्रंट पर गहलोत की प्रतिमा लगवाने के लिए मंत्री धारीवाल ने गहलोत की स्वीकृति ली। इसके बाद अधिकारियों ने मूर्ति बनाने का आदेश जारी किया। गहलोत और धारीवाल की प्रतिमाए पिछले कांग्रेस शासन में ही स्थापित होनी थी, लेकिन प्रतिमाओं की सुपुर्दगी समय पर नहीं हो सकी विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लग जाने के बाद प्रतिमाओं को रिवर फ्रंट पर स्थापित नहीं किया जा सका, इसलिए अब गहलोत की प्रतिमा कोटा के रिवर फ्रंट के स्टोर में पड़ी हुई है। सवाल उठता है कि आखिर गहलोत ने सरकारी पैसे से अपनी प्रतिमा क्यों बनवाई? गहलोत स्वयं को गांधीवादी मानते हैं। गहलोत ये दावा करते हैं कि वे सरल और सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या सरकारी पैसे से प्रतिमा बनाने वाला कोई नेता सादगी का जीवन जी सकता है? सरकारी पैसे जो नेता अपने जीते जी प्रतिमा बनाता है उसकी जीवन शैली का अंदाजा लगाया जा सकता है। सवाल यह भी है कि अब जब गहलोत की प्रतिमा रिवर फ्रंट पर नहीं लगेगी तब प्रतिमा के खर्च का जिम्मेदार कौन होगा? इस मामले में आर्किटेक्ट अनूप भरतरिया की प्रतिमा भी बनना भीचर्चा का विषय है। भरतरिया को पेशेवर आर्किटेक्ट है। जब उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग का मेहनताना सरकार से वसूल लिया तब प्रतिमा क्यों बनाई गई। अच्छा हो कि भरतरिया की प्रतिमा पर खर्च हुई राशि अब भरतरिया से ही वसूल की जाए। कोटा के चंबल रिवर फ्रंट पर करोड़ों रुपए का जो खर्च हुआ, उसमें भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। धारीवाल ने नगरीय विकास मंत्री रहते हुए कोटा नगर सुधार न्यास के फंड से ही करोड़ों रुपया खर्च करवा दिया।
जेजेएम के भ्रष्टाचार पर भी गहलोत जवाब दे:
केंद्र सरकार की जल जीवन मिशन योजना में राजस्थान में हुए भ्रष्टाचार को लेकर 16 जनवरी को कांग्रेस सरकार में जलदाय मंत्री रहे महेश जोशी के जयपुर स्थित आवास पर ईडी ने छापामार कार्यवाही की। आरोप है कि 20 हजार करोड़ रुपए के इस घोटाले में जलदाय मंत्री की हैसियत से महेश जोशी की भी भूमिका रहीहै। फर्जी टेंडरों के आधार पर सौ सौ करोड़ रुपयों का भुगतान कर दिए गए। सब जानते हैं कि अगस्त 2020 में कांग्रेस के सियासी संकट के समय महेश जोशी सरकारी मुख्य सचेतक थे। जोशी ने ही सचिन पायलट गुट के विधायकों को अनुशासनहीन माना और फिर विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने संबंधित विधायकों को नोटिस जारी किए। इतना ही नहीं हमेश जोशी ने ही पायलट समर्थक विधायकों के विरुद्ध पुलिस को शिकायत दी। इस शिकायत के आधार पर ही विधायकों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ। कहा जा सकता है कि अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाए रखने में महेश जोशी की खास भूमिका रही। महेश जोशी ने मुख्य सचेतक रहते हुए सरकार बचाने का जो काम किया उसी के उपहार स्वरूप गहलोत ने जोशी को जलदाय विभाग ाक कैबिनेट मंत्री बनाया। जोशी ने मंत्री बनते ही सरकार बचाने की कीमत वसूलना शुरू कर दिया। अब महेश जोशी का कहना है कि उन्हें राजनीतिक द्वेषता की वजह से फंसाया जा रहा है। सवाल उठता है कि जब इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा था, तब जलदाय मंत्री की हैसियत से महेश जोशी चुप क्यों रहे? जानकारों की मानें तो जल जीवन मिशन के भ्रष्टाचार की जानकारी अशोक गहलोत को भी थी, लेकिन गहलोत भी चुप रहे। अब जब ईडी ने 20 हजार करोड़ रुपए का घोटाला उजागर किया है,तब पूर्व सीएम की हैसियत से गहलोत को भी जवाब देना चाहिए।
Report By S.P.MITTAL