राजस्थान में प्रतिदिन सैकडों लोग दम तोड़ रहे हैं

राजस्थान में प्रतिदिन सैकडों लोग दम तोड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं कि इन मौतों के लिए केन्द्र सरकार जिम्मेदार हैं और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया गहलोत सरकार के कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

71 वर्ष बाद भी रामधारी सिंह दिनकर की कविता सिंहासन खाली करो कि जनता आती है, आज भी प्रासंगिक है।
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राजस्थान में कोरोना संक्रमित मरीज अस्पतालों के बाहर और अंदर दम तोड़ रहे हैं। दैनिक अखबार जैसे अखबार की खबरों पर भरोसा किया जाए तो राजस्थान में सैकडों संक्रमित व्यक्ति प्रतिदिन मर रहे हैं। 14 मई को ही भास्कर ने बताया कि अजमेर जिले में कोरोना संक्रमित 30 मरीजों की मौत हुई, जबकि चिकित्सा विभाग ने मात्र 6 मरीजों की मौत बताई है। भास्कर की खबर के आधार पर प्रदेशभर का आंकड़ा निकाला जाए तो मृतकों की संख्या सैकडों में आएगी।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि इन मौतों के लिए केन्द्र सरकार जिम्मेदार हैं जो प्रदेश को ऑक्सीजन, वैक्सीन और जरूरी दवाइयां उपलब्ध नहीं करवा रही है। गहलोत अब कुछ भी कहे, लेकिन गत माह जब राज्य में विधानसभा के तीन उपचुनाव हुए थे, तब इन्हीं मुख्यमंत्री ने कहा था कि भाजपा को वोट देने से कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि भाजपा विधायकों की संख्या बढ़ कर सिर्फ 73 हो जाएगी, जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार जीतते हैं तो मेरी सरकार और मजबूत होगी तथा मैं जनता की सेवा ज्यादा कर सकूंगा। तब मुख्यमंत्री ने यह नहीं कहा था कि कोरोना संक्रमण के समय राज्य सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। लेकिन जब हजारों राजस्थानी प्रतिदिन मर रहे हैं तो मुख्यमंत्री केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वहीं राजस्थान में 25 में से 24 संसदीय क्षेत्रों में भाजपा के सांसद हैं। तीन सांसद तो केन्द्र में मंत्री हैं। 25 सांसदों वाली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का कहना है कि राजस्थानियों की मौत के लिए गहलोत सरकार का कुप्रबंधन जिम्मेदार हैं। यानी राजस्थानियों की मौत के लिए न तो कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री और न चौबीस सांसदों वाली भाजपा जिम्मेदार हैं। सवाल उठता है कि तो फिर चुनाव में जनता की सेवा का वायदा कर भाजपा और कांग्रेस के नेता वोट क्यों मांगते हैं? क्या कोरोना काल में भाजपा और कांग्रेस के नेता आपस में मिल कर लोगों की सेवा नहीं कर सकते हैं?
आज भी प्रासंगिक हैं दिनकर जी की कविता:
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है शीर्षक वाली कविता रामधारी सिंह दिनकर ने कोई 71 साल पहले लिखी थी। 1950 में 26 जनवरी को देश में संविधान लागू हुआ और भारत एक गणराज्य देश बना तब दिनकर जी ने यह कविता लिखी थी, उस समय का दौर आजादी के जश्न का था, लेकिन दिनकर जी ने जनता की व्यथा को व्यक्त किया। आज 71 वर्ष बाद कोरोना काल में दिनकर जी कविता प्रासंगिक बनी हुई है। मैं यहां दिनकर जी की पूरी कविता प्रदर्शित कर रहा हंू। इस कविता को भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को पढ़ना चाहिए। यदि कोरोना काल में दम तोड़ती जनता की सेवा नहीं की गई तो यही जनता सिंहासन को खाली करवा लेगी। नेताओं को कुछ तो शर्म करनी चाहिए।

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सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है।
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

जनता हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े.पाले की कसक सदा सहने वाली,
जब अँग.अँग में लगे साँप हो चूस रहे,
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।
जनता, हाँ, लम्बी बडी जीभ की वही कसम,
जनता, सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।
सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है,
है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है।
मानो, जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में,
अथवा कोई दुधमुँही जिसे बहलाने के,
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।

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लेकिन होता भूडोल, बवण्डर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ,
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।

अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अन्धकार,
बीताय गवाक्ष अम्बर के दहके जाते हैं,
यह और नहीं कोईए जनता के स्वप्न अजय,
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं ।
सब से विराट जनतन्त्र जगत का आ पहुँचा,
तैंतीस कोटि.हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।

आरती लिए तू किसे ढूँढ़ता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों मे,
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।

फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है,
दो राह समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
………..रामधारी सिंह (दिनकर)