मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उपस्थित होते तो राजस्थान विधानसभा में इतना हंगामा नहीं होता।
सीपी जोशी, शांति धारीवाल, गोविंद सिंह डोटासरा, प्रताप सिंह खाचरियावास समझते हैं कि उन्हीं की वजह से गहलोत सरकार गिरने से बची। इस बार मंत्री रघु शर्मा लो प्रोफाइल में दिखे।
कांग्रेस और विपक्षी दलों के हंगामे के कारण संसद का मानसून सत्र भी नहीं चल सका था। तब कांग्रेस ने कहा था कि सदन चलाने की जिम्मेदारी सरकार की है।
सहमति के बाद 17 सितंबर से फिर शुरू होगा विधानसभा का सत्र।
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15 सितंबर को यदि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उपस्थित होते तो राजस्थान विधानसभा में इतना हंगामा नहीं होता। सब जानते हैं कि सीएम गहलोत ने 26 अगस्त को एंजियोप्लास्टी करवाई थी, तभी से वे जयपुर स्थित सरकारी आवास पर आराम कर रहे हैं। 15 सितंबर को विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोश गहलोत सरकार के मंत्रियों से इतना खफा हुए कि उन्होंने समय से पहले ही विधानसभा सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। विधानसभा के मानसून सत्र को 18 सितंबर तक चलना था, लेकिन जोशी ने तीन दिन पहले ही सत्र को स्थगित कर दिया। इससे फिलहाल संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है, क्योंकि जनहित के कई बिल विधानसभा में लंबित है। राजस्थान के विधायी इतिहास में यह पहला अवसर है, जब अध्यक्ष ने सरकार के मंत्रियों से खफा होकर विधानसभा सत्र को बीच में ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। 15 सितंबर को सदन में जो कुछ भी हुआ उसमें मुख्यमंत्री गहलोत की अनुपस्थिति बहुत खली। यदि गहलोत उपस्थित होते तो मंत्री शांति धारीवाल, गोविंद सिंह डोटासरा और प्रताप सिंह खाचरियावास इस तरह अध्यक्ष जोशी के निर्देशों की अवहेलना नहीं कर पाते। आमतौर पर विधानसभा अध्यक्ष का रुख सरकार के साथ ही होता है। मुख्यमंत्री भी अपनी पार्टी के किसी भरोसेमंद विधायक को ही विधानसभा का अध्यक्ष बनाते हैं। सीपी जोशी भी सीएम गहलोत के भरोसे के हैं। भरोसे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जोशी ने अपने स्थान पर सीएम गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बनवाया। गत वर्ष जब कांग्रेस के राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ तो दिल्ली जाने वाले सभी 19 विधायकों को जोशी ने नोटिस जारी कर दिया, जिससे विधायकी छिनने का खतरा हो गया। तब जोशी की भूमिका को अशोक गहलोत के साथ माना गया। उन्हीं दिनों एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इस वीडियो में सीपी जोशी सरकार के प्रति चिंता और सद्भावना प्रकट कर रहे हैं। ऐसे में 15 सितंबर को कोई कारण नहीं था कि गहलोत सरकार के मंत्रीगण सीपी जोशी की व्यवस्था का उल्लंघन करें। वरिष्ठ मंत्री शांति धारीवाल, गोविंद सिंह डोटासरा और प्रताप सिंह खाचरियावास के रवैये को देखते हुए जोशी ने विधानसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। असल में इन तीनों मंत्रियों को भी लगता है कि गहलोत सरकार उन्हीं की वजह से गिरने से बची थी। मंत्रिमंडल में धारीवाल की स्थिति सीएम के बाद दूसरे नंबर पर मानी जाती है। गत वर्ष जुलाई में जब सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस के 18 विधायक दिल्ली गए, तब धारीवाल ने जयपुर और जैसलमेर की होटलों में 100 विधायकों को एकजुट रखा। तब धारीवाल ने खुल कर पायलट का विरोध किया। डोटासरा को भी लगता है कि गहलोत सरकार उन्हीं के कंधों पर टिकी हुई है। गत वर्ष जुलाई में पायलट को प्रदेशाध्यक्ष के पद से बर्खास्त कर डोटासरा को ही नया अध्यक्ष बनाया गया था। अभी भी डोटासरा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष बने हुए हैं। डोटासरा को लगता है कि यदि संकट के समय वे साथ नहीं देते तो गहलोत सरकार चली जाती। इसी प्रकार प्रताप सिंह खाचरियावास भी मानते हैं कि गहलोत सरकार उनकी पीठ पर लदी हुई है। जानकार सूत्रों के अनुसार गत वर्ष जुलाई में सचिन पायलट के साथ खाचरियावास को भी कुछ विधायकों के साथ दिल्ली जाना था, लेकिन खाचरियावास ने ऐन मौके पर पाला बदल लिया और गहलोत गुट में चले गए। यदि खाचरियावास भी दिल्ली चले जाते तो गहलोत सरकार गिर जाती। चूंकि खाचरियावास के पास भी गहलोत सरकार को बचाने का बल है, इसलिए वे हमेशा अति उत्साह में रहते हैं। शायद इसलिए 15 सितंबर को खाचरियावास ने अध्यक्ष के निर्देशों का पालन नहीं किया। चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा को भी उत्तेजित होते देखा गया है, लेकिन 15 सितंबर को रघु शर्मा लो प्रोफाइल में ही नजर आए। रघु ने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे अध्यक्ष जोशी खफ हो। पूर्व में कई बार रघु की जोशी से भिड़ंत हुई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार विधानसभा में हुए हंगामे से सीएम गहलोत बहुत दुखी है। उन्हें लगता है कि इससे सरकार की छवि खराब हो रही है।
संसद का मानसून सत्र भी नहीं चला:
यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों संसद का मानसून सत्र भी कांग्रेस और विपक्षी दलों के सांसदों के हंगामे के कारण नहीं चला। यहां तक कि नए मंत्रियों का परिचय भी संसद के दोनों सदनों में नहीं हो सका। संसद नहीं चलने के संबंध में कांग्रेस का कहना था कि संसद को चलाने की जिम्मेदारी सरकार की है।
17 सितंबर से फिर शुरू होगा विधानसभा का सत्र:
15 सितंबर को हुए हंगामे के बाद 16 सितंबर को विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से संवाद किया। जोशी ने सरकार के मंत्रियों के व्यवहार के बारे में भी मुख्यमंत्री को बताया। जानकार सूत्रों के अनुसार सीएम गहलोत ने जोशी से आग्रह किया कि लंबित विधेयकों को देखते हुए विधानसभा के मानसून सत्र को फिर से शुरू किया जाएगा। मुख्यमंत्री से संवाद के बाद जोशी सदन की कार्यवाही चलाने पर सहमत हुए। विधानसभा सूत्रों के अनुसार 17 सितंबर से सत्र फिर से शुरू हो रहा है, इसकी जानकारी प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया और सभी विधायकों को दी जा रही है।