Reet Exam : तो दोयम दर्जे के भाजपा नेताओं के आंदोलन से घबरा कर कांग्रेस सरकार को रीट परीक्षा रद्द करनी पड़ी?

तो दोयम दर्जे के भाजपा नेताओं के आंदोलन से घबरा कर कांग्रेस सरकार को रीट परीक्षा रद्द करनी पड़ी?
आखिर जल्दबाजी में रीट का परिणाम घोषित क्यों किया गया।
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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस के कई नेता-मंत्री अनेक बार सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि प्रदेश में भाजपा का नेतृत्व दोयम दर्जे के नेताओं के हाथों में है। सीएम गहलोत भाजपा नेताओं में मुख्यमंत्री पद के छह-छह दावेदार होने की बात भी कह चुके हैं। गहलोत ने भाजपा के मौजूदा नेतृत्व को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन 7 फरवरी को रीट लेवल-2 की परीक्षा निरस्त करने की घोषणा के समय सीएम ने कहा कि वे इस फैसले से खुश नहीं है। लेकिन विपक्ष की हरकतों से तंग आकर हमें यह फैसला करना पड़ रहा है। यानी सीएम ने इस बात को स्वीकार किया कि रीट परीक्षा को लेकर भाजपा की ओर से प्रदेश भर में जो जन आंदोलन शुरू किया गया उससे घबरा कर ही सरकार ने परीक्षा निरस्त करने का फैसला किया है। सवाल उठता है कि जब भाजपा का मौजूदा नेतृत्व दोयम दर्जे का है तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आंदोलन से क्यों घबरा रहे हैं? सीएम गहलोत मौजूदा भाजपा नेतृत्व के बारे में कुछ भी कहे, लेकिन उन्होंने स्वयं ही यह स्वीकार किया है कि लेवल-2 की परीक्षा निरस्त करने का निर्णय दबाव में लिया गया है। इतना ही नहीं कांग्रेस विधायकों के चिंतन शिविर में भी सीएम गहलोत ने माना कि उनकी सरकार की योजनाओं की जानकारी आम लोगों तक नहीं पहुंच रही है, जबकि भाजपा की ओर से जो प्रचार प्रसार किया जा रहा है वह आम लोगों तक पहुंच रहा है। सीएम ने कहा कि यदि विधायकों ने सरकार की उपलब्धियों को आम जनता तक नहीं पहुंचाया तो फिर राजस्थान में कांग्रेस सरकार की रिपिट नहीं होगी। यानी विधायकों के चिंतन शिविर में भी सीएम गहलोत ने भाजपा की गतिविधियों को कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा प्रभावी बताया। 8 फरवरी को भाजपा विधायक दल की बैठक भी हुई। इस बैठक के बाद भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि भाजपा संगठन ने प्रदेश भर में जो जन आंदोलन खड़ा किया है, उसकी वजह से गहलोत सरकार चौतरफा दबाव में है। पूनिया ने कहा कि अशोक गहलोत के नेतृत्व में राजस्थान में कभी भी कांग्रेस सरकार रिपीट नहीं हुई है।
परिणाम जल्दबाजी में क्यों?:
रीट लेवल-2 की परीक्षा निरस्त किए जाने के बाद यह सवाल उठा है कि आखिर रीट का परिणाम जल्दबाजी में घोषित किया गया? रीट के दोनों लेवल की परीक्षा 26 सितंबर को हुई थी। परीक्षा का परिणाम 35 दिन में घोषित कर दिया गया, जबकि परीक्षा होने के साथ ही पेपर लीक के मामले सामने आ गए थे। एसओजी ने भी यह मान लिया था कि 26 सितंबर को परीक्षा शुरू होने से पहले ही अनेक परीक्षार्थियों के मोबाइल पर प्रश्न पत्र आ गया था। एसओजी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को भी दे दी थी। लेकिन एसओजी की रिपोर्ट की अनदेखी कर रीट का परिणाम घोषित कर दिया गया। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को परिणाम घोषित करने की इतनी जल्दबाजी थी कि बोर्ड परिसर में एक अतिरिक्त कम्प्यूटर लगवाकर रात और दिन ओएमआर शीट की जांच करवाई गई। परिणाम घोषणा के बाद भी अनेक विसंगतियां सामने आई। आज भी हजारों अभ्यर्थी शिक्षा बोर्ड के रीट कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं। अब सबसे ज्यादा पीड़ा उन 7 लाख 73 हजार 612 अभ्यर्थियों को है जिन्हें लेवल-2 के लिए पात्र घोषित कर दिया गया था। यदि शिक्षा बोर्ड परिणाम की घोषणा नहीं करता तो कम से कम इन 7 लाख 73 हजार 612 पात्र अभ्यर्थियों को मानसिक पीड़ा तो नहीं होती। अब रीट लेवल-2 की परीक्षा दोबारा से होगी तो सरकार का भी करीब 100 करोड़ रुपया खर्च होगा और एक बार फिर अभ्यर्थियों को कोचिंग सेंटरों में प्रवेश लेना पड़ेगा। जानकारों की मानें तो रीट लेवल-2 की परीक्षा की कोचिंग पर करीब दो हजार करोड़ रुपया अभ्यर्थियों का खर्च हो जाएगा। सरकार को इस बात की भी जांच करवानी चाहिए कि शिक्षा बोर्ड ने परीक्षा का परिणाम जल्दबाजी में घोषित क्यों किया।