रेलवे पैसे की बर्बादी, वाटर हार्वेस्टिंग के नाम पर खोदा तालाब – गंगापुर का मामला

रेलवे पैसे की बर्बादी, वाटर हार्वेस्टिंग के नाम पर खोदा तालाब, गंगापुर का मामला
कोरोना काल में भी कोटा मंडल के विभाग रेलवे का पैसा बर्बाद करने में एक-दूसरे से होड़ लगा रहे हैं। वाणिज्य के बाद अब यही कारनामा इंजीनियरिंग विभाग द्वारा किया जा रहा है। ताजा मामला गंगापुर का सामने आया है।
सूत्रों ने बताया कि अधिकारियों ने गंगापुर में वाटर हार्वेस्टिंग के नाम पर एक तालाब खुदवाया है। मामले में खास बात यह है कि इसके लिए अधिकारियों ने अलग से कोई टेंडर जारी करना भी जरुरी नहीं समझा। बयाना स्टेशन के पास पटरियों के किनारे मिट्टी डालने के वर्क से बची रकम से यह काम कराया गया है। यह रकम करीब 20 लाख रुपए बताई जा रही है।
सूत्रों ने बताया कि मामले की जानकारी उच्चाधिकारियों को भी हो सकती है। क्योंकि अलग जगह और अलग प्रकृति के काम कि मंजूरी उच्चाअधिकारियों द्वारा ही दी जाती है। सूत्रों ने बताया कि यह तालाब 5 फीट गहरा 500 फीट लंबा और करीब 225 फुट चौड़ा है। रेलवे की योजना इसके चारों ओर फेंसिंग कर इस तालाब में पौधारोपण करने की है।
पानी एकत्रित होने पर संदेह
सूत्रों ने वाटर हार्वेस्टिंग के नाम पर बनाए गए इस तालाब में पानी के एकत्रित होने पर संदेह जताया है। सूत्रों ने बताया कि पहाड़ी क्षेत्र और रेलवे कॉलोनी की ओर से आया बारिश का सारा पानी स्टेशन के पास बने नालों में होता हुआ शहर की ओर निकल जाता है। ऐसे में इस तालाब में बहकर आने वाले बारिश के पानी के एकत्रित होने की कोई संभावना नहीं है। इस तालाब में सिर्फ आसमान से गिरने वाला बारिश का पानी ही सीमित मात्रा एकत्रित हो सकता है।
नालियों के जरिए पानी पहुंचना भी असंभव
सूत्रों ने बताया कि यह तालाब रेलवे कॉलोनी से दूर सहायक मंडल अभियंता के बंगले के पीछे बनाया गया है। यह क्षेत्र थोड़ा ऊंचाई है। इसके चलते इस तालाब में नालियों के जरिए भी कॉलोनी का पानी लाना लगभग असंभव है। अगर अधिकारियों द्वारा ऐसी कोई कोशिश की भी गई तो इस काम में करोड़ों रुपए खर्च होना निश्चित है।
वापस भर सकता है तालाब
सूत्रों ने बताया कि गंगापुर क्षेत्र की भुरभुरी बालू जेसी मिट्टी है। यह बारिश के पानी के साथ तेजी से बहती है। खुदाई की गई मिट्टी अभी तालाब के चारों और ही पड़ी है। ऐसे में यह मिट्टी बारिश के पानी के बहकर वापस तलाब में भर सकती है। ऐसे में यह तालाब बारिश के एक सीजन में ही दोबारा से भर सकता है।
वाटर हार्वेस्टिंग के नियमों का नहीं रखा ध्यान
सूत्रों ने बताया कि इस तालाब को बनाने में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के नियमों की पूरी तरह अवहेलना की गई है। सूत्रों ने बताया कि हार्वेस्टिंग सिस्टम ऐसी जगह बनाया जाता है जहां बारिश का पानी एकत्रित होकर आगे बह जाता हो या पानी को आसानी से एकत्रित करके लाया जा सके।
वाटर हार्वेस्टिंग के लिए गड्ढे में बोरिंग भी खोदे जाते हैं। ताकि पानी नीचे तक रिचार्ज हो सके। गड्ढे में पत्थर और गिट्टी आदि भी डाली जाती है ताकि पानी में बहकर आने वाला कचरा ऊपर ही रुक जाए।
के उलट गंगापुर में जो हार्वेस्ट सिस्टम बनाया गया है उसमें ऐसी कोई सुविधा नहीं है। नीचे तलाक पानी पहुंचाने के लिए तलाब में कोई बोरिंग नहीं किए गए। तालाब में बह कर आने वाला बारिश का पानी आ नहीं सकता। तालाब में बारिश का पानी पहुंचाने की फिलहाल कोई व्यवस्था की गई है।
अतिक्रमण रोकने के लिए बनाया मामले में कई रेलवे अधिकारियों ने तर्क दिया कि तालाब को विशेष तौर से अतिक्रमण रोकने के लिए बनाया गया है। यह जमीन पहले अधिकारियों के कब्जे में थी। दोबारा से अतिक्रमण नहीं हो जाए इसके लिए एक तालाब बनाया गया है। साथ ही इसमें बारिश का पानी भी एकत्रित हो सकेगा। जरूरत पड़ने पर नालियां बनाकर पानी तालाब में लाया जा सकेगा।
हालांकि सूत्रों के गले में अधिकारियों के तर्क नहीं उतर रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि तालाब के आगे रेलवे की बहुत सारी जमीन पड़ी है। यह जमीन भी खाली है। रेलवे में संभवत यह पहला मामला है जब अतिक्रमण रोकने के लिए रेलवे ने कोई तालाब बनाया हो। अगर रेलवे को तालाब ही बनाना था इसके लिए बाकायदा टेंडर निकाला जाना चाहिए था। इससे काम और भी बेहतर तरीके से और प्रतिस्पर्धी दरों पर होता। इसे चोरी छुपे किसी अन्य काम के बचे पैसों से आनन-फानन में बनाने की कोई वजह सामने नहीं आ रही है।
20 लाख खर्चने का अनुमान
सूत्रों ने बताया कि इस काम के लिए करीब 20 लाख रुपए खर्च का अनुमान है। इसके उलट निजी क्षेत्र में इतना बड़ा तालाब ज्यादा से ज्यादा 50 हजार में आसानी से बनवाया जा सकता है। अभी तक इस तालाब में जैसीबी से खुदाई के अलावा कुछ नहीं किया गया है।
अधिकारियों ने नहीं दिया जवाब इस संबंध में वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक अजय कुमार पाल से बात करने की कोशिश की गई। लेकिन अपना फोन व्यस्त रखा अजय पाल ने हमेशा की तरह बात करना जरूरी नहीं समझा।